छत्तीसगढ़ में सालों से खुले में पड़ी है पुरातत्व महत्व की बौद्ध प्रतिमाएं

जगदलपुर, 19 जनवरी। छत्तीसगढ़ के  कोण्डागांव जिले के बड़े डोंगर के पास ग्राम भोंगापाल में बुद्ध की दुर्लभ प्रतिमा 20 से भी अधिक वर्षों से खुले में पड़ी है। इस बेशकीमती बौद्ध स्मारक को सुरक्षित करने में पुरातत्व विभाग की कोई रूचि नहीं है।

ग्रामवासियों ने बताया कि इन पुरातात्विक महत्व की प्रतिमा को बचाने आज तक कोई अधिकारी वहां तक पहुंचा ही नहीं है। यही नहीं ग्राम भोंगापाल में बौद्ध प्रतिमा के अलावा शिवलिंग भी है जो उपेक्षित पड़ा हुआ है।

भोंगापालवासी इन प्रतिमाओं को संरक्षित करने हेतु कई बार विभाग सहित जिला प्रशासन को आवेदन सौंप चुके है, परंतु आज  तक इस दिशा में कोई पहल नहीं की गई है।

भोंगापाल के युवक भानुराम नाग ने बताया कि वर्ष 1990 में खुदाई के वक्त पुरातत्व विभाग के अमृत लाल पैकरा के बाद पुरातत्व विभाग का कोई भी अधिकारी आज तक वहां नहीं पहुंचा है।

उन्होंने बताया कि सभी ग्रामवासी चाहते हैं कि गांव में बेशकीमती मूर्तियों का संरक्षण हो यहां विकास हो और पर्यटक यहां आएं। किसी समय यहां बौद्ध धर्म का प्रचार रहा होगा। इसे बौद्ध स्मारक के रूप में विकसित रखने की बात कही गई है। 

यहां सुरक्षा हेतु एक ही चौकीदार है। बस्तर की यह दुर्लभ बौद्ध प्रतिमा बड़े डोंगार होते हुुए पावड़ा से नाला पार करते हुए दो किमी अंदर घने जंगल में स्थापित है। बताया गया है कि यहां बौद्ध चैत्य का ध्वंसावशेष है। जहां यह प्रतिमा स्थापित है। मलबे की सफाई के बाद यहां वर्ष 90-91 में मूर्ति स्थापित की गई जो 5 से 6 फीट है। यहां शेड के अभाव में प्रतिमा क्षतिग्रस्त तो हुई है साथ ही बाउंड्रीवाल व सुरक्षा न होने के कारण मूर्ति को खरोंच-खरोंच कर नष्ट किया जा रहा है। इसके अलावा यहां तीन शिवलिंग व सप्तमातृका की प्रतिमा भी है जो देखरेख के अभाव में क्षतिग्रस्त हो रही है।

पुरातत्व विभाग बस्तर की पुरातात्विक महत्व की बेशकीमती मूर्तियों को सहजने में कोई रूचि नहीं ले रहा है। बस्तर संभाग  के क्षेत्रीय कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों व अधिकारियों के पास इसे लेकर न तो कोई योजना है न ही कोई पहल की जा रही है। वहीं अधिकारियों का कहना है कि  यहां के सभी कार्य रायपुर से संचालित होते हैं, जिसके चलते वे कुछ भी कर सकने में सक्षम नहीं है। वहीं रायपुर में बैठे इस विभाग के अधिकारी बस्तर की पुरा संपदाओं को घोर अपमान व उपेक्षा कर रहे हैं। इन्हें संरक्षित किये जाने की दिशा में कोई पहल वर्षों से नहीं हुई है।

कार्यालय प्रमुख अमृतलाल पैकरा का कहना है कि वर्ष भर बजट ही नहीं मिला। मूर्तियों को संरक्षित करने व रिसेटिंग के लिए 8 से 10 बार मुख्यालय रायपुर को आवेदन भेजा गया है, परंतु अब तक कोई भी जवाब नहीं मिला है। – एजेंसी