भोपाल, 27 जनवरी। गणतंत्र दिवस पर मध्यप्रदेश के वनों का संरक्षण और संवर्धन का काम केवल किसी विभाग का नहीं बल्कि जन-सहयोग और भागीदारी से जंगलों की हिफाजत की जा सकती है। वर्ष 1980 में वन संरक्षण अधिनियम लागू किया जाना एक बड़ा फैसला था। इसका सकारात्मक प्रभाव यह हुआ कि वन संरक्षण का लगभग पचास फीसदी काम इस अधिनियम के लागू होने से ही हो गया। यह बात विषय-विशेषज्ञ पी.एम. राजवाड़े ने आज यहाँ ‘मध्यप्रदेश में वानिकी इतिहास’ पर व्याख्यान देते हुए कही। मध्यप्रदेश पर्यटन इतिहास व्याख्यान श्रृंखला की कड़ी में राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा यह आयोजन किया गया।
राजवाड़े ने कहा कि वनों की जो विविधता मध्यप्रदेश है है, शायद ही किसी अन्य प्रदेश में हो। हमें इसको सहेजकर रखना होगा। वन-सम्पदा के नुकसान का खामियाजा पीढ़ियों को भुगतना होगा। इस दृष्टि से वन्य-संरक्षण हम सभी का दायित्व है।
राजवाड़े ने बस्तर, मण्डला, शिवपुरी, देवास जिलों के अपने सेवाकाल के अनुभव साझा किये। उन्होंने कहा कि मैदानी स्तर पर आपसी सहयोग और समन्वय से ही वन संरक्षण किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि शिवपुरी एक हिल स्टेशन के रूप में था और वहाँ का माधव नेशनल पार्क भी काफी पहले से है।
प्रारम्भ में निगम के एमडी हरिरंजन राव ने बताया कि पर्यटन वर्ष में पिछले एक साल से व्याख्यान माला की यह श्रंखला जारी है। सुधी श्रोताओं का अच्छा प्रतिसाद मिलने पर इसे आगे भी जारी रखा जा सकता है। राव ने कहा कि पर्यटन शांति काल का विषय है जो विश्रांति के पल गुजारने से जुड़ा हुआ है। इस मौके पर जिज्ञासु श्रोता मौजूद थे।
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