जनजातीय कल्याण व हिंदुत्व के मेल से मिली भाजपा को मदद

नई दिल्ली, 19 मई | दिखावे से परहेज करने वाले एवं हमेशा मुस्कान बिखेरते रहने वाले सर्बानंद सोनोवाल का असम का दूसरा जनजातीय मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है। पिछली सदी के 70 के दशक में जोगेन हजारिका राज्य के पहले जनजातीय मुख्यमंत्री बने थे। विकास के लिए जूझते असम में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के पूर्व अध्यक्ष 53 वर्षीय सोनोवाल ने जनजातीय नेतृत्व एवं हिंदुत्व राजनीति का अनोखा मेल पेश किया है। उनका संबंध काचारी जनजातीय समुदाय से है।

सोनोवाल असम के अनुसूचित जनजाति से होने की वजह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) एवं भाजपा दोनों के अनुकूल हैं। सोनेवाल ने बांग्लादेश आव्रजकों के खिलाफ कड़ा रुख अपना कर एक ‘उत्तर भारतीय पार्टी’ की हिंदुत्व की राजनीति को पूर्वोत्तर के आदिवासियों के बीच वैधता प्रदान की है।

गुवाहाटी स्थित राजनीतिक विश्लेषक रतनदीप गुप्ता का कहना है, “ऊंची जातियों के बीच भाजपा हमेशा से एक स्वीकार्य राजनीतिक ताकत रही है, लेकिन सोनोवाल और चाय जनजाति के नेता कमाख्या तासा जैसे जनजातीय नेताओं ने भाजपा को एक नया आधार दिया। असम के चुनाव का आज का (गुरुवार का) परिणाम इसका उदाहरण है कि निर्णायक बदलाव हो रहा है और सोनोवाल के नेतृत्व में एक नई शुरुआत हो रही है। ”

इसका श्रेय सोनोवाल को जाता है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को असम जीत कर दे सके जहां वर्ष 2014 की कथित मोदी लहर का प्रभाव नहीं था।

ऐसा लगता है कि सोनोवाल की मौजूदगी ने भाजपा को पहली बार खुद को जनजातीय समर्थक के रूप में पेश करने में मदद की है। इससे एक बड़ा लाभ मिला है। सोनोवाल खुद काचारी जनजाति के हैं। मोरान, मुट्टौक, ताई अहोम, कोछ राजबोंगशी, सूतिया और चाय जनजाति भी भाजपा से जुड़ीं।

इन जनजातियों की ऊपरी असम के जोरहाट, गोलाघाट, शिवसागर, डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, लखीमपुर और धेमाजी में अच्छी संख्या है।

15 साल से सत्ता पर काबिज एक सरकार को उखाड़ फेंकने का भाजपा का काम इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में इसे केवल छह सीटें ही मिल पाई थीं।

इस सफलता से खुश सोनोवाल ने इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी, भाजपा प्रमुख शाह और पार्टी में कांग्रेस से आए हिमंता बिस्वा सरमा और भाजपा नेताओं के ‘परिवार की तरह टीम वर्क’ को दिया है।

जनजातीय समूह बोडो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) से भाजपा के गठबंधन ने भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की जीत में मदद की।

पर्यवेक्षकों का मानना है कि इसका श्रेय उस रणनीति को जाता है जिसने भाजपा नेतृत्व को सोनोवाल को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश करने और बीपीएफ के साथ गठबंधन की सलाह दी।

पिछले विधानसभा चुनाव में बीपीएफ का कांग्रेस के साथ गठबंधन था। इस बार भी कांग्रेस ने छोटे बोडो समूह युनाइटेड पीपुल्स पार्टी (यूपीपी) के साथ गठबंधन की कोशिश की लेकिन इससे मदद नहीं मिली।