भभुआ (बिहार), 5 जून | आम तौर पर आज जहां लोग तमाम तरह की सुख सुविधाओं के साथ जीवन बिताने के लिए शहर की ओर भाग रहे हैं, वहीं बिहार के कैमूर जिले का एक युवक शहरी जीवन छोड़कर गांव में अपना भविष्य तलाशने पहुंचा है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में शोध कर रहे (रिसर्च स्कॉलर) 30 वर्षीय अमृत आनंद ने न केवल गांव में अपना भविष्य बनाने को सोचा है, बल्कि गांव की तकदीर बदलने की भी ठान ली है। अमृत ग्राम पंचायत चुनाव में पसांई पंचायत के मुखिया का चुनाव भी जीत गए हैं।
जेएनयू में जर्मन साहित्य पर शोध कर रहे अमृत अक्सर अपने गांव खजूरा आते रहते थे। इस दौरान गांव के रहन-सहन और यहां की समस्या को देखकर उन्हें दुख होता था। वे गांव की समस्या को दूर करने की सोचते थे। इसी दौरान बिहार ग्राम पंचायत चुनाव की घोषणा हुई और वे मुखिया के प्रत्याशी बन गए और आज मुखिया भी बन गए हैं।
अमृत ने आईएएनएस से कहा कि जब वे अपने गांव वापस आए और चुनाव के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया तो उनके गांव के दोस्त उन पर हंस रहे थे। दोस्तों ने उनसे पूछा था कि आखिर दिल्ली छोड़कर गांव वापस आने की क्या जरूरत थी?
चुनाव प्रचार के दौरान लोगों ने ‘दिल्ली वाले बाबू’ कह कर उनका मजाक भी उड़ाया और यहां तक कहा, ‘जैसे आया है वैसे ही चला भी जाएगा।’
इन सभी आलोचनाओं के बीच वे चुनाव मैदान में डटे रहे। अमृत ने चुनाव जीत कर सभी आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। उनके पंचायत में कुल 17 गांव आते हैं।
अपनी इस जीत पर अमृत ने कहा कि अब पंचायत छोड़कर दिल्ली वापस जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। हालांकि उन्होंने कहा कि वह अपना शोध कार्य जरूर पूरा करेंगे।
अमृत ने आईएएनएस से कहा, “मेरे घर में पढ़ने लिखने का माहौल पहले से है। मेरा छोटा भाई अंकित आनंद अमेरिका में शोध कर रहा है। मैं भी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर चुका हूं। परंतु प्रारंभ से ही मेरे मन में अपनी जन्मभूमि के लिए कुछ करने की ललक है।”
अमृत के पिता आनंद कुमार सिंह 15 बीघे जमीन पर खेती करते हैं। अमृत बताते हैं कि उनके पिता किसान जरूर हैं, लेकिन बच्चों को पढ़ाई के लिए हर सुविधा उपलब्ध कराते रहे हैं।
पंचायत चुनाव में उतरने के फैसले के बारे में अमृत बताते हैं कि जब भी वह गांव आते थे तो उन्हें लगता था कि गांव की कई ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें गांव का मुखिया अगर चाहे तो दूर कर सकता है और गांव को कहीं ज्यादा बेहतर बनाया जा सकता है।
भविष्य की योजनाओं के विषय में अमृत बताते हैं कि उनकी प्राथमिकता गांव के लोगों को प्रखंड और जिला कार्यालयों में बिचैलियों से मुक्ति दिलाना, गांव को खुले में शौच से मुक्ति दिलाना और वैज्ञानिक पद्धतियों से खेती को बढ़ावा देना है।
वह कहते हैं, “गांव में सामूहिक शौचालय बनाने की उनकी योजना है। निजी शौचालय के लिए सरकार भी मदद करती है, परंतु वे गांव में सामूहिक शौचालय बनाने का प्रयास करेंगे।”
अमृत बताते हैं कि देश में संघीय ढांचे को समझने के लिए पंचायत चुनाव से अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि बिहार में 8000 से ज्यादा ग्राम पंचायत हैं और सभी जिलों में अभी मतगणना का कार्य जारी है। —मनोज पाठक
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