नित्यानंद शुक्ला===
रांची, 9 जून| कई विभाग और उन्हें सम्भालने के लिए नौकरशाहों का टोटा। आज कल झारखंड सरकार ऐसे ही काम कर रही है। शीर्ष नौकरशाहों पर कई विभागों का दबाव है और इस कारण राज्य में विकास बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि काम बहुत है लेकिन काम करने वाले काबिल नौकरशाहों की कमी है और इस कारण राज्य उस रफ्तार से विकास नहीं कर पा रहा है, जिस रफ्तार की उम्मीद थी या फिर सत्तासीन दल जिसका दावा कर रहा है।
ऐसा तब है, जब सरकारी विभागों की संख्या को घटाकर 45 से 31 कर दिया गया है लेकिन इसके बावजूद राज्य में काबिल नौकरशाहों का टोटा है।
अधिकारी कैबिनेट, योजना व वित्त, पर्यावरण, ऊर्जा, जल संसाधन, वन तथा पर्यावरण और सूचना प्रोद्योगिकी विभागों का अतिरिक्त कार्यभार लेकर चल रहे हैं। कुछ विभाग तो ऐसे भी हैं, जहां पूर्णकालिक निदेशक नहीं है।
प्रधान सचिव रैंक के नौकरशाह सुखदेव सिंह के पास जल संसाधन, वानिकी और पर्यावरण जैसे अहम विभाग हैं लेकिन इसके बावजूद उन्हें ग्रेटर रांची विकास प्राधिकरण का प्रबंध निदेशक भी बनाए रखा गया है।
मुख्य सचिव रैंक के नौकरशाहों के पास कई विभागों का अतिरिक्त कार्यभार है।
गृह विभाग का काम देखने वाले अतिरिक्त मुख्य सचिव एनएन पांडे के पास कैबिनेट विभाग का अतिरिक्त अधिभार है। इसी तरह विकास सचिव अमित खरे के पास वित्त एवं योजना विभाग का अतिरिक्त कार्यभार है।
मुख्यमंत्री रघुबर दास के प्रधान सचिव संजय कुमार के पास सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग का अतिरिक्त कार्यभार हैल जबकि मुख्य मंत्री के सचिव सुनील कुमार बर्नवाल के पास आईटी विभाग का अतिरिक्त अधिभार है।
इसी तरह सीनियर आईएएस अधिकारी यूपी सिंह के पास खनन विभाग है जबकि इसके अलावा वह झारखंड राज्य खनिज विकास निगम का अतिरिक्त भार है। इसके अलावा वह माइन्स कमिश्नर, इंवेस्टमेंट कमिश्नर और द रेजीडेंट कमिश्नर हैं।
ऐसे नौकरशाहों की फेहरिस्त लम्बी है। इससे इन अधिकारियों की कार्यक्षमता प्रभावित होती है और फैसले जल्द लेने में दिक्कत होती है। इसका सीधा असर राज्य के विकास पर पड़ता है।
सरकार के एक सीनियर अधिकारी ने पहचान जाहिर नहीं होने देने की शर्त पर आईएएनएस से कहा, “ऐसा नहीं है कि जिन अधिकारियों के पास अतिरिक्त भार है वे खुश हैं। अतिरिक्त भार से अधिकारियों की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है। अगर कोई सचिव बड़े विभाग को देख रहा है तो अतिरिक्त विभाग के तौर पर उसे किसी छोटे विभाग से जोड़ना चाहिए।”
इसी तरह की बात एक सीनियर नौकरशाह ने भी कही। नौकरशाह ने कहा, “हमें मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव एवं अन्य लोगों के साथ बैठक में हिस्सा लेना होता है। सचिवालय तीन स्थानों पर स्थित हैं, जिनके बीच 15 किलोमीटर की दूरी है। कभी-कभी हमें दिल्ली में बैठक में हिस्सा लेना होता है। अतिरिक्त प्रभार हमारे लिए बहुत बड़ा रोड़ा बनते हैं।”
नौकरशाह तो हुक्म का पालन कर रहे हैं लेकिन इन सबके बीच विपक्ष को मुख्यमंत्री पर निशाना साधने का मौका मिल गया।
राज्य में कांग्रेस के महासचिव आलोक दुबे ने कहा, “मुख्यमंत्री रघुबर दास के पास आधा दर्जन से अधिक विभाग हैं। ऐसे में भला विकास कार्यो के साथ न्याय कहां हो सकता है। उनके पास गृह मंत्रालय भी है और आप राज्य में कानून व्यवस्था की हालत देख ही रहे हैं। विकास अब इस सरकार की प्राथमिकता नहीं रहा।” –आईएएनएस
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