रमजान के पवित्र महीने में डायबिटीज के मरीजों का अपना ज्यादा ख्याल रखने की जरूरत है। वे खूब पानी पीएं और प्रोटीन से भरपूर चीजें खाएं। यह कहना है एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. संजय कालरा का। वह कहते हैं कि रमजान शारीरिक प्रणाली और मन को शुद्ध करने की अच्छी प्रक्रिया है, लेकिन इससे होने वाले स्वास्थ्य के खतरों को भी समझना चाहिए।
फोटो : जयपुर में 18 जून, 2016 को रमजान के दौरान रोजा खोलते हुए लोग। (आईएएनएस)
कुरान के मुताबिक, किसी रोग से पीड़ित लोगों को रोजे में छूट है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बीमार होने के बावजूद महीना भर रोजा रखते हैं, इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्हें डायबिटीज जैसी बीमारी है। इसलिए जरूरी है कि लंबे समय तक भूखे रहने के प्रभावों के बारे में जागरूक हुआ जाए, खासकर जिन्हें टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज है, उन्हें खास ध्यान रखना होगा।
रोजे के घंटे हर रोज सूर्य उदय होने व सूर्य अस्त होने के अनुसार तय होते हैं। इस बार रमजान गर्मियों में है, तो रोजे का वक्त 15 घंटे तक लंबा भी हो सकता है। खाने के दौरान लंबा अंतराल शरीर के अंदर पाचनतंत्र में बदलाव ला सकता है, जो डायबिटीज के मरीजों के लिए समस्या पैदा कर सकता है।
करनाल स्थित भारती अस्पताल के कंसल्टेंट एंडोक्राइनोलॉजिस्ट व साउथ एशिया फैडरेशन ऑफ एंडोक्राइन सोसायटी के उपाध्यक्ष डॉ. संजय कालरा ने बताया कि पहली और सबसे अहम सलाह यह है कि जिन लोगों को डायबिटीज है, उन्हें रमजान के दौरान अपने डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कभी-कभार उपवास के दौरान पौष्टिकता और शूगर के स्तर में काफी बदलाव आ जाता है, जिससे मरीज को हाइपोग्लिसीमिया हो सकता है। यह अचानक ब्लड शूगर कम होने का संकेत होता है और मरीज बेहोश हो सकता है या सीजर हो सकता है।
डॉ. कालरा ने कहा कि हाइपोग्लिसीमिया जिसका मलतब होता है खून में शूगर का अचानक बढ़ जाना। इससे कमजोरी, प्यास, सिरदर्द और नजर में धुंधलापन आ सकता है। टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों को हाइपोग्लीसीमिया का खतरा ज्यादा होता है। उपवास के बाद कुछ लोग काफी मात्रा में खाना खा लेते हैं। मगर डायबिटीज के मरीजों को अपने खानपान का रमजान में खास ध्यान रखना चाहिए।
डॉ. कालरा ने कहा कि रोजे के शुरुआती दिन ज्यादा चुनौतीपूर्ण होते हैं, लेकिन इन्सुलिन की उचित मॉनिटरिंग करके स्थिति को संभाला जा सकता है।
उन्होंने कहा कि डायबिटीज के मरीजों को पूरा दिन भूखे रहने के बाद रोजा खोलते वक्त खुद पर थोड़ा नियंत्रण रखना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखें की शरीर में पानी की उचित मात्रा बनी रहे और मीठे कोल्ड ड्रिंक और कैफीन युक्त पेय से बचें। जूस की तुलना में फल को तरजीह दें, क्योंकि यह प्राकृति मीठे से भरपूर होते हैं।
डॉ. कालरा ने कहा कि सहरी के वक्त छोटे-छोटे हिस्सों में खाना खाना चाहिए और इसमें ज्यादा प्रोटीन और कम कार्बोहाइड्रेट्स होने चाहिए, जिसमें काफी सारे फल, साबुत अनाज, लेनटिल्स, कम शूगर वाले सीरिल और बीन्स शामिल हों।
उन्होंने कहा कि मिठाइयां, तली हुए चीजें और ज्यादा मीठे और नमक वाले पकवानों से बचें। सहरी में अंडे और दाल जैसी प्रोटीन से भरपूर चीजें लें, ये आपको पूरे दिन के लिए ऊर्जा देंगी।
डॉ. कालरा ने कहा कि डायबिटीज के मरीज को रोजे में छूट की धार्मिक रिवायत को ध्यान में रखना चाहिए और डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए, ताकि वे सुरक्षित और सेहतमंद रमजान मना सकें।
उन्होंने कहा कि रोजा रखना धार्मिक अकीदे के लिए जरूरी है, लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यह पूरी तरह से समझदारी और सेहत के हिसाब से रखा जाए। डॉक्टरों को चाहिए कि वह हाई रिस्क वाले मरीजों को खतरों के बारे में जानकारी दें और उन्हें रोजा न रखने के लिए प्रोत्साहित करें।
डायबिटीज के मरीजों के लिए सलाह :
* रमजान के दौरान रोजे रखने जा रहे हैं तो शुरुआत में अपनी सेहत की जांच जरूर करवा लें।
* पहले से जानकारी होने से सुरक्षित और सेहतमंद रोजे रखे जा सकते हैं। क्या करना है और क्या नहीं करना है, के बारे में जब जानकारी होगी, तभी वे खुद पर नियंत्रण रख सकेंगे और वक्त पर बचाव के लिए कदम उठा सकेंगे।
* खानापान का प्लान अपनी निगरानी में बनाना चाहिए। अधिक मीठे, फैट और कार्बोहाइड्रेट वाला खाना खाने से बचें।
* डीहाइड्रेशन से बचने के लिए मीठा रहित ज्यादा तरल आहार लेते रहें।
* जिन्हें टाइप 1 डायबिटीज है, उन्हें डॉक्टर से इन्सुलिन की डोज एडजस्टमेंट करवा लेनी चाहिए, क्योंकि हाइपोग्लेस्मिया का खतरा होता है। टाइप 2 डायबिटीज वाले लोगों को डॉक्टर से सलाह लेकर डाइट चार्ट बनवा लेना चाहिए और डायबिटीज मैनेजमेंट का पूरा प्लान ले लेना चाहिए।
* प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए डायबिटीज की जांच लगातार करते रहना चाहिए।
* अगर मरीज की शूगर 70 से कम हो जाए या 300 तक पहुंच जाए तो उसे तुरंत रोजा खोल लेना चाहिए। –आईएएनएस
Follow @JansamacharNews