कोलकाता, 25 जुलाई | बैंक डूबने वाले कर्ज (बैड लोन) से निपटने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की नई योजना की तरफ देख तो रहे हैं लेकिन, उनकी चिंता इसके सीमित अमल और इसमें लंबी कानूनी प्रक्रियाओं को घटाने वाले प्रावधानों की कमी को लेकर बनी हुई है।
गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) पर लगाम लगाने के पहले के तरीके संतोषजनक परिणाम नहीं दे सके हैं। अब बैंकों ने अपनी निगाह बीते महीने आरबीआई द्वारा शुरू की गई ‘स्कीम फार सस्टेनेबल स्ट्रक्चरिंग ऑफ स्ट्रेस्ड एसेट (एस4ए)’ पर लगा दी है।
क्रिसिल ने भारतीय बैंक पद्धति में कमजोर संपत्तियों का आकलन किया है जिसके मौजूदा वित्तीय वर्ष के अंत तक 800,000 करोड़ तक पहुंचने के आसार हैं। आरबीआई की ताजा ‘फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट’ में कहा गया है कि जीएनपीए (ग्रास नान परफार्मिग एसेट) का अनुपात मार्च 2016 के 7.6 से बढ़कर मार्च 2017 तक 8.5 फीसदी हो सकता है।
नई योजना में बैंकों द्वारा कंपनियों के दिए गए कर्ज को वहनीय (सस्टेनेबल) और अवहनीय (अनसस्टेनेबल) भागों में बांटा गया है। वहनीय भाग कर्ज का वह हिस्सा है जिसे कंपनी अपने मौजूदा धन प्रवाह की ताकत से चुकाने में सक्षम हो।
इसी तरह अवहनीय राशि के लिए बैंकों को यह अनुमति दी गई है कि वह इस हिस्से को शेयर (इक्विटी) या अर्ध शेयर (क्वासी-इक्विटी) में बदल सकें। योजना में इसका प्रावधान है कि कर्ज की वहनीय राशि के हिस्से को एक स्वतंत्र निकाय द्वारा टेक्नो इकोनामिक वायबिलिटी (टीईवी) के अध्ययन द्वारा निर्धारित किया जाए।
युनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक संजय आर्य ने कहा, “टीईवी अध्ययन, परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण है। इससे यह पता चलता है कि कौन सा भाग सस्टेनेबल (वहनीय) है और कौन सा नहीं। एस4ए को लेकर अभी बहुत सारे किंतु-परंतु हैं।”
आर्य ने आईएएनएस से कहा कि कमियां और कमजोरियां तभी पकड़ में आएंगी, जब योजना को जांचा जाएगा। अभी तक इसमें बहुत सारे प्रस्ताव नहीं आए है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें नहीं लगता कि यह योजना ज्यादा लंबी कानूनी और न्यायिक प्रक्रियाओं पर अपना असर डाल सकेगी।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक (कॉरपोरेट बैंकिंग) बी. श्रीराम ने आईएएनएस से कहा कि हम संकटग्रस्त कंपनियों पर इस योजना की व्यवहार्यता की जांच परख कर रहे हैं। अभी तक हमने इस योजना के तहत किसी प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया है।
यह योजना उन परियोजनाओं पर लागू होगी जिन्होंने अपना व्यावसायिक संचालन शुरू कर दिया है और जिनका बकाया कर्ज 500 करोड़ से ज्यादा होगा। इस तरह इस योजना का दायरा काफी सीमित है। इसकी एक सीमित व्यावहारिकता है।
देना बैंक के चेयरमैन अश्वनी कुमार कहते हैं कि कई योजनाएं हैं। एस4ए कुछ ‘स्ट्रेस्ड कॉरपोरेट’ पर लागू होती है जबकि कुछ अन्य पर नहीं। यह एक अच्छी योजना है, देखते हैं कि इसकी क्या शक्ल-सूरत सामने आती है।
श्रीराम ने कहा कि यह कुछ कंपनियों के लिए सार्थक है। यह प्रमोटर को यह मौका देती है कि वह अपने व्यवसाय को व्यवस्थित कर कर्ज का भुगतान कर सके।
संकटग्रस्त कंपनियों की समस्या से निपटने के लिए आरबीआई ने पहले भी कई योजनाएं बनाईं। इनमें कॉरपोरेट डेब्ट रिस्ट्रक्चरिंग (सीडीआर), ज्वाइंट लेंडर्स फोरम (जेएलआर), स्ट्रेटजिक डेब्ट रिस्ट्रक्चरिंग(एसडीआर), ए5/25 योजना शामिल हैं। संपत्तियों को बेचने के लिए ‘एसेट रिकंस्ट्रक्शनकंपनियां’ भी बनाईं। लेकिन, गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) का बढ़ना जारी रहा।
— बप्पादित्य चटर्जी
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