जयपुर, 9 मई (जनसमा)। कृषि में नवाचार के क्रम को आगे बढ़ाते हुए अब राजस्थान में दक्षिणी अमरीकी देशों में होने वाली क्विनवा की खेती को प्रारंभ किया जाएगा। प्रायोगिक तौर पर इसे भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ में जिलों में उगाया गया था, जिसकी सफलता के बाद इसकी खेती पूरे प्रदेश में की जाएगी।
राजस्थान के कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी ने बताया कि क्विनवा बथुआ प्रजाति का सदस्य है, जिसे रबी में उगाया जाता है। इसका वानस्पितक नाम चिनोपोडियम क्विनवा है। इसके बीज को सब्जी, सूप, दलिया और रोटी के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है। पोषक तत्वों की बहुलता की वजह से इसे सुपर फूड और मदर ग्रेन कहा गया है।
उन्होंने बताया कि इसे क्षारीय और बंजर भूमि में भी उगाया जा सकता है। क्विनवा का पेड़ सूखा और पाला सहन करने के साथ कीट रोग सहनशील भी है। उन्होंने बताया कि राजस्थान के जलवायु परिदृश्य के लिहाज से यह पूरी तरह मुफीद है, इसलिए इसे किसानों के बीच लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए जाएंगे।
सैनी ने बताया कि इसका उत्पादन एक हेक्टेयर में 5 से 18 क्विंटल तक लिया जा सकता है। इसकी खेती करने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण और तकनीक की आवश्यकता नहीं है, सामान्य खेती की तरह इसकी खेती की जा सकती है। किसानों को परम्परागत फसलों के मुकाबले 20 फीसदी अधिक आय इसकी खेती से हो सकती है। अन्तरराष्ट्रीय बाजार में क्विनवा 500 से 1000 रूपये किलो तक बिकता है।
उन्होंने बताया कि राज्य में बड़े स्तर पर इसका उत्पादन होने पर, क्विनवा निर्यातक कंपनियों के साथ मिलकर बायबैक गारंटी योजना पर भी विचार किया जा सकता है। 100 ग्राम क्विनवा में 14 ग्राम प्रोटीन, 7 ग्राम डायटरी फाइबर, 197 मिलीग्राम मैग्नेशियम, 563 मिलीग्राम पोटेशियम और 0.5 मिलीग्राम विटामीन बी-6 पाया जाता है। कई बीमारियों के लिए रामबाण है क्विनवा हार्वड विश्वविद्यालय के एक शोध में पाया गया है कि क्विनवा के रोज सेवन से डायबिटी, हृदय रोग, कैंसर, श्वसन रोग सहित कई अन्य गंभीर बीमारियों में लाभ मिलता है। इन देशों में हो रही है इसकी खेती इसकी खेती अभी पेरू, बोलिविया, इक्वाडोर, ऑस्टेलिया, चाइना, कनाडा, इंग्लैंड सहित कई देशोंं में हो रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृषि संगठन ने 2013 को घोषित किया था क्विनवा वर्ष क्विनवा की महत्ता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृषि संगठन ने वर्ष 2013 को क्विनवा वर्ष घोषित किया था। नासा इसे लाइफ सस्टेनिंग ग्रेन मानते हुए अपने अंतरिक्ष यात्रियों को क्विनवा उपलब्ध कराता है।
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