आतंकवाद आज वैश्विक चुनौती बन गया है। दुनिया भर के मुल्कों में इस्लामिक चरमपंथ अपनी जड़ें जमा रहा है। धर्म की आड़ में जेहाद और आतंकवाद का अमानवीय खेल खेला जा रहा है। बांग्लादेश के सबसे सुरक्षित इलाके गुलशन में शुक्रवार को हुआ आतंकी हमला हमारे लिए सबसे अधिक चिंता की बात है। गुलशन बांग्लादेश का डिप्लोमैटिक इलाका है। यहां 34 देशों के दूतावास हैं। दुनिया भर में लजीज व्यंजनों के लिए होली आर्टिजन बेकरी की अपनी अलग पहचान है। जापानी और इटली के 18 विदेशी राजनयिकों और दूसरे आदमियों को बांग्लादेशी सुरक्षा एजेंसियों ने छुड़ा लिया। इस आपरेशन में जहां दो पुलिस के जवान शहीद हो गए वहीं आम नागरिक भी मारे गए। लेकिन छह आतंकवादियों को मार कर स्पेशल आपरेशन में लगी सेना ने बंधक बनाए गए विदेशी लोगों को रेस्तरां से बाहर निकाल लिया।
फोटो: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 4 जुलाई, 2016 को ढाका के आर्मी स्टेडियम में आतंकी हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए। (फोटो: सिन्हुआ/आईएएनएस)
इसके लिए बांग्लादेश की सरकार प्रधानमंत्री शेख हसीना और सुरक्षा एजेंसियां बधाई देनी चाहिए। रैब ने अच्छी सफलता हासिल की। आतंकियों के चंगुल से विदेशी नागरिकों और बंधक बनाए गए लोगों को सुरक्षित निकाला सबसे बड़ी चुनौती थी। हमला बांग्लादेश में हुआ है, लेकिन भारत के लिए यह सबसे अधिक चिंता की बात है। देश की सरकार बांग्लादेश की सरकार की ओर से उठाए गए हर कदम पर नजर रख रही थी।
आईएएस ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। हलांकि अमेरिकी और बांग्लादेश सरकार ने इसकी पुष्टि नहीं की है। बांग्लादेश आतंक और चरमपंथ का गढ़ बनता जा रहा है। यहां हिंदू आबादी और अभिव्यक्ति की आजादी संकट में है। एक माह में पांच हिंदुओं और ब्लॉगरों की हत्या की गई है। एक हिंदू व्यापारी की हत्या की गई थी। हिंदुओं को सीधे निशाने पर रखकर आतंकवादी क्या संदेश देना चाहते हैं?
वैसे आतंक और दहशत का कोई जाति धर्म नहीं होता, लेकिन इस्लाम की आड़ में यह लोगों की धार्मिक भावनाएं हिंदुओं के खिलाफ भड़काने में कामयाब हो रहे हैं। यही इनका मूल लक्ष्य है। बांग्लादेश के रेस्तरां में घुसे आतंकवादी ‘अल्लाह हु’ के नारे लगा रहे थे। इनका मकसद साफ समझा जा सकता है।
धर्म की आग से वे पूरी दुनिया के मुसलमानों का ध्रुवीकरण करना चाहते हैं। लेकिन यह कैसा इस्लामपरस्ती है। रमजान के पवित्र माह में नमाज अदा करने के बाद वह भी शुक्रवार की रात लोगों का कत्ल किया गया। इस विचार को क्या दुनिया का कोई धर्म इजाजत देता है।
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी यह बात कहा है कि अपने को मुसलमान कहने वाले लोग आतंकी नहीं हो सकते। इस्लाम धर्म की आड़ में कत्लेआम की इजाजत नहीं देता है। वह भी पवित्र रमजान के माह में। कश्मीर की तरह यहां हिंदुओं का पलायन हुआ। भारत में काफी संख्या में हिंदू आबादी शरणार्थी के तौर पर रह रही है।
कभी यहां हिंदुओं की आबादी दो तिहाई थी, लेकिन अब यहां सिर्फ 10 फीसदी आबादी रह गई है। इसकी मुख्य वजह इस्लामिक आतंक है। रामकृष्ण मिशन और उसके पुजारी चरमपंथियों के निशाने पर हैं। हिंदू बंगाली परिवारों पर संकट है। चरमपंथियों ने धार्मिक कट्टरता की आड़ में कई ब्लॉगरों की हत्या कर दी है। समस्या अगर गहरी बीमारी बन जाए तो उससे निपटना आसान नहीं होता।
बांग्लादेश और भारत चरमपंथ और मुस्लिम आतंकवाद से जुझ रहे हैं। ऐसी स्थिति में दोनों देशों को एक मंच पर आना चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान में आतंक की खेती की जा रही है। वहां खुले आम आतंकी प्रशिक्षण कैम्प चल रहे हैं। भारत में आतंकी हमलों के जिम्मेदार दर्जनों खूंखार आतंकी पाकिस्तानी सरकार की सुरक्षा में बेखौफ घूम रहे हैं।
भारत और बांग्लादेश पाकिस्तान के पुराने दुश्मन हैं, क्योंकि भारत ने ही 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग कराया। पाकिस्तान को यह बात हमेशा खलती है, जिसका नतीजा है कि उसकी सरजमीं से कश्मीर में आतंकवाद फल-फूल रहा है।
पाकिस्तान आतंकवाद के जरिए बांग्लादेश को अस्थिर कर बांग्लादेश के साथ भारत की परेशानी बढ़ाना चाहता है। हालांकि बांग्लादेश में यह अब तक का पहला बड़ा आतंकी हमला है। लेकिन इस्लामिक चरमपंथ ने यहां अपना ढिकाना जमा लिया है।
यह स्थिति भारत के लिए बड़ी चुनौती और चिंता की बात होगी, क्योंकि पाकिस्तान भारत को बर्बाद करने की हर कोशिश में लगा है। वह आतंक के जरिए बांग्लादेश और भारत दोनों को बर्बाद करना चाहता है। इसलिए भारत और बांग्लादेश को आतंकवाद और चरमपंथ से निपटने के लिए एक मंच पर आना चाहिए, जिससे वक्त रहते बांग्लादेश से आतंक और चरमपंथ का खात्मा आसानी से हो सके।
बांग्लादेश इस काम में भारत की सुरक्षा एजेसिंयों की भरपूर मदद ले सकता है। दक्षिण एशिया में बढ़तीं अलगाववादी ताकतें भारत के लिए बड़ा खतरा हैं। चीन और पाकिस्तान राजनीति, कूटनीति और आतंकवाद के जरिए भातर को घेरने में लगा है।
हाल में जिस तरह की राजनैतिक परिस्थितियां बनी हैं, वे भारत के लिए बड़ी चुनौती हैं। एनएसजी पर जिस पर भारत को चीन और पाकिस्तान ने घेरा है वह किसी से छुपा नहीं हैं। भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती दोस्ती पर चीन बौखला गया है। जिसका नतीजा है कि पाकिस्तान को खुला सहयोग दे रहा है।
यूएन में अजहर मसूद पर उसकी नीति और एनएसजी पर खुला विरोध जग जाहिर है। भारत के खिलाफ वह 16 राष्टों को खड़ा करना चाहता था लेकिन उसकी यह चाल कामयाब नहीं हुई। भारत और नेपाल के रिश्ते इस समय अच्छे नहीं हैं। नेपाल चीन से अधिक करीब आ रहा है। ऐसी स्थिति में राजनैतिक तौर पर पाकिस्तान और चीन भारत के लिए बड़ी मुश्किल हैं। दूसरी तरफ पाकिस्तान में जहां भारत को आतंकवाद के जरिए बर्बाद करने की कूटनीति जारी है।
पाकिस्तान में कश्मीर में आतंकवाद और जेहाद की खेती के लिए खुले आम लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन सड़कों पर चंदे मांग रहे हैं। भारत में आतंक के गुनाहगारों को पाकिस्तान में दामाद बना रखा है। अफगानिस्तान में तालिबान संस्कृति से पूरी दुनिया परिचित है। कश्मीर में आईएएसआई के खुले आम काले झंडे लहरा रहा है। उसकी जड़े बंग्लादेश में भी गहरी होने लगी हैं। भारत को घेरने को वैश्विक और आतंकी कूटनीति तबाह करने की साजिश रची जा रही है। यह हमला बांग्लादेश में नहीं भारत में हुआ है।
हमारी सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। बंग्लादेश सरकार से इस पर मिलकर आतंकवाद और चरमपंथ के खिलाफ नीतिगत निर्णय और कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। इस हमले को हमें हल्के में लेने की गुस्ताखी नहीं करनी चाहिए।
यह बांग्लादेश से अधिक भारत के लिए चुनौती है। भारत और बंग्लादेश इस तरह की कोई नीति तैयार करेंगे तो पाकिस्तान के पेट में पीड़ा होगी। दुनिया के सामने उसकी नंगई सामने आएगी। उस स्थिति में बांग्लादेश को पाकिस्तान का असली चेहरा भी वैश्विक मंच पर पढ़ने को मिलेगा। ––प्रभुनाथ शुक्ल
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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