नई दिल्ली, 1 अप्रैल| देश के पहले सफल ‘पेडियैट्रिक्स और व्यस्क लीवर ट्रांसप्लांट’ करने वाले इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ने एक और नई उपलब्धि हासिल की है। दिल्ली में इंडिया हैबिटेट सेंटर में गुरुवार को एक संवाददाता सम्मलेन में अपोलो अस्पताल के विशेषज्ञों, सर्जनों और प्रसूति विशेषज्ञों की टीम ने बताया कि अस्पताल में नवजात शिशुओं की 850 से भी अधिक जटिल और दुर्लभ सर्जरियां की गई हैं और इसमें 95 प्रतिशत तक सफलता हासिल हुई है।
फोटोः दिल्ली के अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों के साथ एक मरीज़। (आईएएनएस)
इस संवाददाता सम्मेलन में नवजात शिशुओं की सर्जरी के दौरान मौत के अहम मामलों से संबंधित कई विषयों पर चर्चा की गई।
नवजात शिशु के लिए जन्म के बाद से अगले 27 दिनों का समय काफी मुश्किल होता है और चिकित्सीय गड़बड़ियों और जटिलताओं के कारण वर्षो से इस अवधि में लाखों बच्चों की मौत होती रही और भारत में इस अवधि के दौरान मरने वाले बच्चों की संख्या दुनियाभर में सबसे अधिक है।
इतने वर्षो में भारत ने इस तरह होने वाली मौत को कम करने की दिशा में काफी तेजी से प्रगति की है। इस मामले पर अपोलो अस्पताल के पेडियैट्रिक सर्जरी के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. सुजीत चौधरी ने कहा, “चिकित्सीय सुविज्ञता और उत्कृष्टता से नवजात शिशुओं के बचने की दर बढ़ गई है। पिछले 10 वर्षो में 850 नवजात शिशुओं का इलाज किया गया और इसमें दिल्ली में अपोलो अस्पताल की सफलता दर 95 प्रतिशत रही है, जबकि देश का औसत 65 प्रतिशत रहा है।”
अस्पताल की ‘नियोनैटोलॉजी’ की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. विद्या गुप्ता ने बताया, “प्रसव के करीब का समय अहम होता है और इसमें देखरेख की नाकामी नवजात के मौत का कारण बन सकती है।”
अपोलो ने खुद को इस क्षेत्र में अग्रणी रूप में स्थापित किया है और सर्जरी की आवश्यकता वाले नवजात शिशुओं की उच्च गुणवत्ता वाली देखभाल मुहैया कराने में अग्रणी है तथा नवजात शिशुओं की जटिल सर्जरी में सबसे आगे है।
(आईएएनएस)
Follow @JansamacharNews