DNA-plasmid vaccine : दुनिया की पहली डीएनए-प्लासमिड वैक्सीन (DNA-plasmid vaccine) भारत को जल्द मिल जायेगी। जायडस कैडिला की यह वैक्सीन भारतमें निर्मित है। इसके अलावा जो अन्य वैक्सीनें जल्द मिलने की उम्मीद है उनमें बायोलॉजिकल.ई की प्रोटीन सब.यूनिट वैक्सीन भी शामिल है।
यह जानकारी राष्ट्रीय टीकाकरण परामर्श समूह (एटीएजीआई) के कोविड-19 कार्य समूह के अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र कुमार अरोड़ा ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के ओटीटी – इंडिया साइंस चैनल को दिये साक्षात्कार में दी।
उन्होंने आगे कहा कि इन वैक्सीनों का परीक्षण काफी उत्साहवर्धक रहा है।
उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि यह वैक्सीन सितंबर तक उपलब्ध हो जायेगी। भारतीय एम-आरएनए वैक्सीन को 2-8 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखा जा सकता है, वह भी सितंबर तक मिल जायेगी। दो अन्य वैक्सीनें सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की नोवावैक्स और जॉनसन-एंड-जॉनसन भी जल्द मिलने की संभावना है।
भारत बायोटेक और एसआईआई की उत्पादन क्षमता में भी जुलाई के तीसरे सप्ताह तक भारी इजाफा हो जायेगा।इससे देश में वैक्सीन की आपूर्ति में बढ़ोतरी होगी। अगस्त तक हम उम्मीद करते हैं कि हम एक महीने में 30-35 करोड़ डोज हासिल करने लगेंगे।”
डॉ. अरोड़ा ने कहा कि इस तरह हम एक दिन में एक करोड़ लोगों को टीका लगाने में सक्षम हो जायेंगे।
नई वैक्सीनें कितनी असरदार होंगी?
जब हम कहते हैं कि अमुक वैक्सीन 80 प्रतिशत असरदार है, तो इसका मतलब यह है कि वैक्सीन कोविड-19 रोग की संभावना को 80 प्रतिशत कम कर देती है।
संक्रमण और रोग में फर्क होता है। अगर किसी व्यक्ति को कोविड का संक्रमण है, लेकिन कोई लक्षण नहीं हैं, तो वह व्यक्ति सिर्फ संक्रमित है। बहरहाल, यदि व्यक्ति में संक्रमण के कारण लक्षण भी नजर आ रहे हैं, तो वह व्यक्ति कोविड रोग से ग्रस्त माना जायेगा।
दुनिया की हर वैक्सीन कोविड रोग से बचाती हैं।टीका लगवाने के बाद गंभीर रूप से बीमार होने की बहुत कम संभावना होती है; जबकि मृत्यु की संभावना नगण्य हो जाती है। अगर वैक्सीन की ताकत 80 प्रतिशत है, तब टीका लगवाने वाले 20 प्रतिशत लोगों को हल्का कोविड हो सकता है।
भारत में जो वैक्सीनें उपलब्ध हैं, वे कोरोना वायरस के फैलाव को कम करने में सक्षम हैं। अगर 60 से 70 प्रतिशत लोगों को टीके लगा दिये जायें, तो वायरस के फैलाव को रोका जा सकता है।सरकार ने बुजुर्गों को टीके लगाने से कोविड टीकाकरण अभियान की शुरूआत की थी, ताकि सबसे अधिक जोखिम वाली आबादी को पहले टीके लग जायें। इस तरह मृत्यु की संभावना कम की गई और स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ भी कम हुआ।
Follow @JansamacharNews