दुल्हन बनने के पहले 1000 से ज्यादा पौधे लगाए

IMG-20160707-WA0012मोतिहारी (बिहार), 8 जुलाई | आज तक आपने दुल्हन बनने जा रही लड़की को सात फेरे लेने के पूर्व मेंहदी या अन्य रस्मों को निभाते देखा और सुना होगा, लेकिन बिहार के पूर्वी चंपारण जिला मुख्यालय यानी मोतिहारी शहर से 10 किलोमीटर दूर तुरकौलिया के मझार गांव की एक लड़की ने दुल्हन बनने के पहले 1000 से ज्यादा पौधे लगाए।

बेटी के विवाह को लेकर मझार गांव निवासी जितेंद्र सिंह के घर पर ऐसे भी चहल-पहल है, लेकिन उनकी पुत्री किरण के शादी के पूर्व पौधरोपण के संकल्प को पूरा करने के लिए गांव के अलावा आसपास के गांवों के भी कई लोग जुटे हैं।

किरण की शादी गुरुवार की शाम होनी है, मगर हाथों में मेंहदी लगाने के बाद सुबह से ही किरण पौधे लगाने के लिए गड्डे खोदे और विभिन्न स्थानों पर पौधरोपण किया। इस कार्य में गांव की अन्य लड़कियों और महिलाओं ने भी उसकी मदद की।

पटना स्थित राज्य स्वास्थ्य समिति में काम करने वाली किरण गांव के स्कूल परिसर समेत विभिन्न जगहों पर पौधरोपण किया। इसके बाद शादी की अन्य रस्में शुरू हुईं।

किरण कहती हैं, “सूखते पेड़ों व जंगल को बचाना हम सबका कर्तव्य है। पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, तभी हम भी ठीक से रह पाएंगे।”

उन्होंने बताया, “पौधरोपण के माध्यम से वह अपनी शादी को यादगार बनाना चाहती हैं। इससे अन्य लड़कियां और लड़के भी प्रेरणा लेंगे।”

उल्लेखनीय है कि बुधवार से ही पौधरोपण को लेकर गड्ढे खोदे जा रहे थे। बेटी के इस अनोखे संकल्प से किरण के पिता भी खुश हैं।

किरण के पिता जितेंद्र सिंह कहते हैं कि बेटी की इस पहल से न केवल लोगों को हरियाली का संदेश मिला है, बल्कि अन्य लोग भी इससे प्रेरित होंगे।

गांव के स्कूल से प्राथमिक शिक्षा पूरी कर मोतिहारी के एक कॉलेज से किरण ने स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद किरण नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की।

किरण ने आईएएनएस को बताया कि इन 1000 पौधों में शीशम के 450 से ज्यादा पौधे हैं। इसके अलावा सागवान, जामुन, सेमल आदि के पौधे लगाए जा रहे हैं।

किरण के अनुसार, “अपने संकल्प को पूरा करने के लिए पूर्व में ही मैंने वन विभाग के अधिकरियों से संपर्क कर पौधे उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था। वन विभाग ने पिपराकोठी फार्म से पौधे मेरे गांव तक पहुंचाए।”

किरण का कहना है कि शहरों में तो ऐसे भी हरियाली कम हो रही है। अगर गांवों से भी हरियाली नहीं रही तो लोगों के लिए समस्या उत्पन्न हो जाएगी।

किरण वैशाली के राजापाकड़ निवासी कुमार रमेश के साथ सात फेरे लेंगी। रमेश एनआईटी, मिजोरम में प्रोफेसर हैं।

किरण का बचपन से ही प्रकृति से लगाव रहा है। शीशम के पेड़ बचाने के अभियान की सफलता के लिए वर्ष 2006 में उसे राष्ट्रपति के हाथ से राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार मिल चुका है।

किरण का कहना है कि वह जब 10वीं पढ़ाई कर रही थीं, तभी घर और गांव के शीशम के पेड़ सूखने लगे थे। इसके बाद उसने खुद नीम का तेल और केरोसिन मिलाकर एक ऐसी दवा बनाई थी, जिसके प्रयोग से शीशम के पेड़ सुखने बंद हो गए थे। इस सफलता को देखते हुए वर्ष 2007 में तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह के हाथों भी उसे सम्मानित किया गया था।

–आईएएनएस