नई दिल्ली, 11 सितम्बर | दिल्ली में हर दिन 21 अपहरण होते हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, वर्ष 2015 में दिल्ली में देश भर के शहरों की तुलना में सर्वाधिक अपहरण की घटनाएं दर्ज की गईं। दंग कर देने वाली बात यह है कि 29 राज्यों एवं सात केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली में वर्ष 2015 में प्रति एक लाख की आबादी पर 37 अपहरण की घटनाएं घटीं। एनसीआरबी की अद्यतन रपट ‘भारत में अपराध’ में यह बात कही गई है।
इस श्रेणी में राष्ट्रीय दर प्रति एक लाख की आबादी पर 6.6 है।
पिछले वर्ष राष्ट्रीय राजधानी में 20 हजार 339 हिंसक अपराध की घटनाएं दर्ज की गईं। इनमें अपहरण के सर्वाधिक 7,730 मामले थे।
अपहरण एक काल्पनिक ग्राफिक्स
संख्या के मामले में देश में वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश में अपहरण के सर्वाधिक 11,999 मामले दर्ज किए गए, इसके बाद 8,255 मामलों के साथ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर और 7,730 मामलों के साथ दिल्ली तीसरे स्थान पर है। बिहार 7,128 मामलों के साथ चौथे स्थान पर है। इसके बाद 6,778 मामलों के साथ मध्य प्रदेश पांचवें और 6,115 मामलों के साथ पश्चिम बंगाल छठे स्थान पर रहा। इसके बाद असम (5,831), राजस्थान (5,426), हरियाणा (3,520) और ओडिशा (3,236) आते हैं।
दिल्ली का अफसर नामक बच्चा जो अब 10 साल का हो गया है, भाग्यशाली है कि गत 24 अगस्त को वह अपने परिवार से फिर से मिल गया। उसका वर्ष 2007 में संतानहीन दंपति ने एक सरकारी अस्पताल से अपहरण कर लिया था।
लेकिन अपहरण का अंत सुखद हो यह कोई जरूरी नहीं है।
एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकांश मामलों में अपराधी फिरौती, हत्या या बदला लेने के लिए या किसी अन्य कारणों के लिए बच्चों को निशाना बनाते हैं। शादी के लिए दबाव डालने के लिए कुछ महिलाओं का भी अपहरण हुआ है।
पुलिस सूत्रों ने यह स्वीकार किया कि अपहरण की घटनाओं की रपट उनके पास दर्ज नहीं कराई जाती, क्योंकि पीड़ित परिवार अपराधी जो फिरौती की रकम मांगते हैं उसे मान लेते हैं।
अपहरण के बाद दूसरे स्थान पर लूट (7,407)और तीसरे पर दुष्कर्म (2,199) के मामले हैं। उसके बाद सदोष मानवहत्या (1003), हत्या का प्रयास(770), हत्या(570), आगजनी (130), दंगा (130), दहेज हत्या(122), डकैती(75), सदोष मानवहत्या लेकिन हत्या के बराबर नहीं(गैर इरादतन की गई हत्या) (58), दुष्कर्म का प्रयास (46) और डाका डालने की तैयारी (5) के मामले सामने आए।
दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आंकड़े जो कहानी बयां करते हैं, वास्तविकता उससे अलग है।
जब अभिभावक अपने बच्चे के गुम होने की शिकायत दर्ज कराते हैं तो हमलोग तत्काल अपरहण का मामला दर्ज करते हैं। बुजुर्गो के मामले में हमलोग गुम होने का मामला तभी दर्ज करते हैं, जब हमें लगता है कि इसमें कुछ गड़बड़ है।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि बहुत सारे बच्चों का पता लगा लिया जाता है या वे खुद घर वापस आ जाते हैं।
वर्ष 2015 में बच्चों के अपहरण के 6,646 मामले थे। लापता बच्चों का पता लगाना दिल्ली पुलिस के लिए हमेशा प्राथमिकता में रहता है। लापता बच्चे के प्रत्येक मामले में प्राथमिकी तत्परता के साथ दर्ज की जाती है।
एनसीआरबी के आंकड़े के अनुसार, देश भर में वर्ष 2015 में अपहरण की 82,999 घटनाएं घटीं।
कुल 1260 पीड़ितों की हत्या के कारण जान गई। 31,884 महिलाओं का अपहरण जबरन शादी करने के लिए किया गया।
–रजनीश सिंह
Follow @JansamacharNews