देश की अदालतों में लंबित मामले गंभीर चिंता का विषय हैं। लगभग 4 करोड़ लंबित मामलों को हल करने के लिए व्यवस्थित समाधान ढूंढने की आवश्यकता है। अधिकतर मामले निचली अदालतों में फंसे हैं, जहां कुल लंबित मामलों में से लगभग 87 प्रतिशत अटके हुए हैं।
यह चिन्ता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने समय पर न्याय प्रदान करने के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि न्यायिक प्रणाली को आम आदमी के लिए सुलभ, किफायती और समझने योग्य होना चाहिए।
तमिलनाडु के डॉ. अंबेडकर विधि विश्वविद्यालय के 11वें दीक्षांत समारोह में 27 फरवरी, 2021 को बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने स्नातकों से अपने पेशे में कठिन परिश्रम करने का आग्रह किया।
उपराष्ट्रपति ने औपनिवेशिक मानसिकता में बदलाव का आह्वान करते हुए इच्छा जताई कि दीक्षांत समारोहों और अदालती कार्यवाही के दौरान शिक्षण संस्थान और न्यायालय स्वदेशी पहनावे को अपनाएं।
उन्होंने चुनावी विवादों के समाधान तथा चुनावी कदाचारों पर गौर करने के लिए अलग फास्ट-ट्रैक न्यायालयों का भी प्रस्ताव रखा।
उन्होंने यह भी कहा कि विधानमंडलों में दलबदल के मामलों को समयबद्ध तरीके से त्वरित निपटान किया जाना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि हम जिस तरह से न्याय प्रदान करते हैं और कानून का शासन लागू करते हैं, हमें फिर से इसका अन्वेषण करने, पुनरुद्धार करने और इसे परिभाषित करने की आवश्यकता है।
नायडू ने कहा कि सभी को न्याय दिलाने में कानूनी प्रक्रियाओं की लागत प्रमुख बाधाओं में से एक है।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि मामलों के शीघ्र निपटान के लिए लोक अदालत जैसे वैकल्पिक विवाद निपटान तंत्रों का पूरी तरह से लाभ उठाया जाए।
अदालतों में नियुक्तियों में भी तेजी लाई जानी चाहिए और रिक्तियों को समयबद्ध तरीके से भरा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह विशेष रूप से निचली अदालतों में काफी लाभदायक साबित हो सकता है।
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