संसद के विशेष सत्र में 18 सितम्बर, 2023 को प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूलपाठ
देश की 75 वर्षों की संसदीय यात्रा, उसका एक बार पुन: स्मरण करने के लिए और नए सदन में जाने से पहले उन प्रेरक पलों को इतिहास की महत्वपूर्ण घड़ी को स्मरण करते हुए आगे बढ़ने का ये अवसर, हम सब इस ऐतिहासिक भवन से विदा ले रहे हैं। आजादी के पहले ये सदन Imperial Legislative Council का स्थान हुआ करता था। आजादी के बाद ये संसद भवन के रूप में इसको पहचान मिली। ये सही है इस इमारत के निर्माण करने का निर्णय विदेशी सांसदों का था, लेकिन ये बात हम न कभी भूल सकते हैं और हम गर्व से कह सकते हैं, इस भवन के निर्माण में पसीना मेरे देशवासियों का लगा था, परिश्रम मेरे देशवासियों का लगा था, और पैसे भी मेरे देश के लोगों के लगे थे।
इस 75 वर्ष की हमारी यात्रा ने अनेक लोकतांत्रिक परम्पराओं और प्रक्रियाओं का उत्तम से उत्तम सृजन किया है। और इस सदन में रहते हुए सबने उसमें सक्रियता से योगदान भी दिया है और साक्षी भाव से उसको देखा भी है। हम भले ही नए भवन में जाएंगे, लेकिन पुराना भवन भी; ये भवन भी आने वाली पीढ़ियों को हमेशा-हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। ये भारत के लोकतंत्र की स्वर्णिम यात्रा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है जो सारी दुनिया को भारत की रगों में लोकतंत्र का सामर्थ्य कैसे है, इसका परिचित कराने का काम इस इमारत से होता रहेगा।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
अमृतकाल की प्रथम प्रभा का प्रकाश, राष्ट्र में एक नया विश्वास, नया आत्मविश्वास, नई उमंग, नए सपने, नए संकल्प, और राष्ट्र का नया सामर्थ्य उसे भर रहा है। चारों तरफ आज भारतवासियों की उपलब्धि की चर्चा हो रही है और गौरव के साथ हो रही है। ये हमारे 75 साल के संसदीय इतिहास का एक सामूहिक प्रयास का परिणाम है। जिसके कारण विश्व में आज वो गूंज सुनाई दे रही है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
चंद्रयान-3 की सफलता न सिर्फ पूरा भारत, पूरा देश अभिभूत है। और इसमें भारत के सामर्थ्य का एक नया रूप, जो आधुनिकता से जुड़ा है, जो विज्ञान से जुड़ा है, जो टेक्नोलॉजी से जुड़ा है, जो हमारे वैज्ञानिकों के सामर्थ्य से जुड़ा है, जो 140 करोड़ देशवासियों की संकल्प की शक्ति से जुड़ा है, वो देश और दुनिया पर एक नया प्रभाव पैदा करने वाला है। ये सदन और इस सदन के माध्यम से मैं फिर एक बार देश के वैज्ञानिकों और उनके साथियों को कोटि-कोटि बधाइयां देता हूं, उनका अभिनंदन करता हूं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
ये सदन ने भूतकाल में जब NAM की समिट हुई थी, सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके देश इस प्रयास को सराहा था। आज जी-20 की सफलता को भी आपने सर्वसम्मति से सराहा है। मैं मानता हूं देशवासियों का आपने गौरव बढ़ाया है, मैं आपका आभार व्यक्त करता हूं। जी-20 की सफलता 140 करोड़ देशवासियों की है। ये भारत की सफलता है, किसी व्यक्ति की सफलता नहीं है, किसी दल की सफलता नहीं है। भारत के फेडरल स्ट्रक्चर ने, भारत की विविधता ने 60 स्थानों पर 200 से अधिक समिट और उसकी मेजबानी हिन्दुस्तान के अलग-अलग रंग-रूप में, देश की अलग-अलग सरकारों में बड़े आन-बान-शान से की और ये प्रभाव पूरे विश्वभर के मंच पर पड़ा हुआ है। ये हम सबके सेलिब्रेट करने वाला विषय है। देश के गौरव-गान को बढ़ाने वाला है। और जैसा आपने उल्लेख किया, भारत इस बात के लिए गर्व करेगा, जब भारत अध्यक्ष रहा, उस समय अफ्रीकन यूनियन इसका सदस्य बना। मैं उस इमोशनल पल को भूल नहीं सकता हूं, जब अफ्रीकन यूनियन की घोषणा हुई, और अफ्रीकन यूनियन के प्रेसिडेंट उन्होंने कहा कि मेरे जीवन में ऐसे पल थे कि शायद मैं बोलते-बोलते रो पडूंगा। आप कल्पना कर सकते हैं कि कितनी बड़ी आंकांक्षा और आशाएं पूरी करने का काम भारत के भाग्य में आया।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
भारत के प्रति शक करने का एक स्वभाव कई लोगों का बना हुआ है और जब आजादी मिली तब से चल रहा है। इस बार भी यही था। कोई declaration नहीं होगा, असंभव है। लेकिन ये भारत की ताकत है, वह भी हुआ और विश्व सर्वसम्मति से एक साझा घोषणापत्र ले करके आगे को रोडमैप ले करके यहां से प्रांरभ हुआ है।
और अध्यक्ष जी,
आपके नेतृत्व में क्योंकि भारत की अध्यक्षता नवंबर के आखिरी दिन तक है, इसलिए अभी हमारे पास जो समय है, उसका उपयोग हम करने वाले हैं, और आपकी अध्यक्षता में दुनियाभर के ये जो जी-20 के सदस्य हैं, पी-20 पार्लियामेंट के स्पीकर्स की एक समिट की जैसे आपने घोषणा की, सरकार का आपके इन प्रयासों को पूरा समर्थन रहेगा, पूरा सहयोग रहेगा।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हम सबके लिए गर्व की बात है, आज भारत विश्वमित्र के रूप में अपनी जगह बना पाया है। पूरा विश्व भारत में अपना मित्र खोज रहा है, पूरा विश्व भारत की मित्रता को अनुभव कर रहा है। और उसका मूल कारण है हमारे जो संस्कार हैं, वेद से विवेकानंद तक जो हमने पाया है, ‘सबका साथ, सबका विकास’ का मंत्र आज विश्व को हमें साथ लाने में जोड़ रहा है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
ये सदन से बिदाई लेना, बहुत ही भावुक पल है परिवार भी अगर पुराना घर छोड़कर के नए घर जाता है तो बहुत सारी यादें कुछ पल के लिए उसको झंझोड़ देती हैं और हम जब ये सदन को छोड़कर जा रहे हैं तो हमारा मन-मस्तिष्क भी उन भावनाओं से भरा हुआ है, अनेक यादों से भरा हुआ है। खट्टे-मीठे अनुभव भी रहे हैं, नोक-झोंक भी रही है, कभी संघर्ष का माहौल भी रहा है तो कभी इसी सदन में उत्सव और उमंग का माहौल भी रहा है। ये सारी स्मृतियां हमारे साथ हम सबकी साझी स्मृतियां हैं, ये हम सबकी सांझी विरासत है और इसलिए इसका गौरव भी हम सबका सांझा है। आजाद भारत के नवनिर्माण से जुड़ी हुई अनेक घटनाएं इन 75 वर्षो में यहीं सदन में आकार लेती हुई हमने देखी हैं। आज हम जब इस सदन को छोड़कर के नए सदन की ओर प्रस्थान करने वाले है तब भारत के सामान्य मानवी की भावनाओं को जहां जो आदर मिला है, सम्मान मिला है उसकी अभिव्यक्ति का भी ये अवसर है।
और इसलिए आदरणीय अध्यक्ष जी,
मैं पहली बार जब संसद का सदस्य बना और पहली बार एक सांसद के रूप में इस भवन में मैंने प्रवेश किया तो सहज रूप से मैंने इस संसद भवन के द्वार पर अपना शीश झुकाकर के इस लोकतंत्र के मंदिर को श्रद्धाभाव से नमन करते हुए मैंने पैर रखा था। वो पल मेरे लिए भावनाओं से भरी हुई थी, मैं कल्पना नहीं कर सकता था लेकिन भारत के लोकतंत्र की ताकत है, भारत के सामान्य मानवी की लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा का प्रतिबिंब है कि रेलवे प्लेटफार्म पर गुजारा करने वाला एक गरीब परिवार का बच्चा पार्लियामेंट पहुंच गया। मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी कि देश मुझे इतना सम्मान देगा, इतना आशीर्वाद देगा, इतना प्यार देगा सोचा नहीं था अध्यक्ष जी।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हम में से बहुत लोग है जो संसद भवन के अंदर जो चीजें लिखी गई हैं उसको पढ़ते भी रहते हैं कभी-कभी उसका उल्लख भी करते है। हमारे यहां संसद भवन के प्रवेश द्वार पर एक चांगदेव के उपदेश का एक वाक्य है लोकद्वारम करके पूरा वाक्य है i उसका मतलब ये होता है कि जनता के लिए दरवाजे खोलिए और देखिए कि कैसे वो अपने अधिकारों को प्राप्त करती है, हमारे ऋषि-मुनियों ये लिखा हुआ है, हमारे प्रवेश द्वार पर लिखा हुआ है। हम सब और हमारे पहले जो यहां रहे हैं वो भी इस सत्यता के साक्षी है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
समय रहते जैसे-जैसे वक्त बदलता गया ये हमारे सदन की संरचना भी निरंतर बदलती रही है और अधिक समावेशी बनती गई है। समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधि विविधताओं से भरा हुआ इस सदन में नजर आता है, अनेक भाषाएं हैं, अनेक बोलियां हैं, अनेक खानपान हैं, सदन के अंदर सब कुछ है और समाज के सभी तबके के लोग चाहे वो सामाजिक रचना के हो, चाहे आर्थिक रचना के हो, चाहे गांव या शहर के हो एक प्रकार से पूर्णरूप से समावेशी वातावरण सदन में पूरी ताकत के साथ जनसामान्य की इच्छा, आकाक्षाओं को प्रकट करता रहा है। दलित हो, पीड़ित हो, आदिवासी हो, पिछड़े हो, महिलाएं हो हर ने हर एक का धीरे-धीरे-धीरे योगदान बढ़ता चला गया है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
प्रारंभ में महिलाओं की संख्या कम थी लेकिन धीरे-धीरे माताओं–बहनों ने भी इस सदन की गरिमा को बढ़ाया है, इस सदन के गरिमा में बहुत बड़ा बदलाव लाने में उनका योगदान रहा है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
प्रारंभ से अब तक एक मोटा-मोटा हिसाब लगाता था करीब-करीब साढ़े सात हजार से अधिक जनप्रतिनिधि दोनों सदनों में मिलाकर के योगदान दे चुके हैं इतने सालों में साढ़े सात हजार से करीब-करीब ज्यादा। इस कालखंड में करीब 600 महिला सांसदों ने भी इस सदन की गरिमा को बढ़ाया है दोनों सदनों में।
और आदरणीय अध्यक्ष जी,
अब जानते है कि सदन में आदरणीय इंद्रजीत गुप्ता जी 43 ईयर अगर मेरी गलती नहीं हो तो 43 ईयर, इस सदन में लंबा समय बैठकर के इस सदन के साक्षी बनने का उनको सौभाग्य मिला। और यही सदन है आदरणीय अध्यक्ष जी जहां शतीगुर रहमान जी 93 की ऐज में भी सदन में अपना योगदान देते रहे जबकि उनकी उम्र 93 थी। और आदरणीय अध्यक्ष जी, ये भारत के लोकतंत्र की ताकत है कि 25 साल की उम्र की चंद्रमणी मुर्मू इस सदन की सदस्य बनी थी, सिर्फ 25 साल की उर्म की, सबसे छोटी उम्र की सदस्य बनी थी।
आदरणीय अध्यक्ष महोदय,
वाद, विवाद, कटाक्ष ये सबकुछ हम सबने अनुभव किया है हम सबने initiate भी किया है कोई बाकी नहीं है। लेकिन उसके बावजूद भी शायद जो परिवार भाव हम लोगों के बीच में रहा है, हमारे पहले की पीढ़ियों में भी रहा है, जो लोग प्रचार माध्यमों से हमारे यहां का रूप देखते है और बाहर निकलते ही हमारा जो अपनापन होता है, परिवार भाव होता है वो एक अलग ही ऊंचाई पर ले जाता है ये भी इस सदन की ताकत है। एक परिवार भाव और उसके साथ-साथ हम कभी कड़वाहट पाल के नहीं जाते, हम उसी प्यार से सदन छोड़ने के कई वर्षों के बाद भी मिल जाए तो भी उस प्यार को कभी भूलते नहीं है, उस स्नेह भरे दिनों को भूलते नहीं हैं, वो मैं अनुभव कर सकता हूं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हमारे पहले भी और वर्तमान भी हमने कई बार देखा है कि अनेक संकटों के बावजूद भी, अनेक असुविधाओं के बावजूद भी सांसद सदन में आए है और उन्होंने शारीरिक पीड़ा भी सही हो तो भी सदन में एक सांसद के रूप में, जनप्रतिनिधि के रूप में अपना कर्तव्य निभाया है, ऐसी अनेक घटनाएं आज हमारे सामने हैं।गंभीर-गंभीर बीमारियों के बावजूद भी कोई व्हीलचेयर में आना पड़ा, किसी को डॉक्टरों को बाहर खड़ा रखकर के अंदर आना पड़ा लेकिन सभी सांसदों ने कभी न कभी इस प्रकार से अपनी भूमिका निभाई है।
कोरोना काल हमारे सामने उदाहरण है हर परिवार में रहता था कही बाहर जाए तो मौत को बुलावा न दे दे, उसके बावजूद भी हमारे माननीय सांसद दोनों सदन में कोरोना काल के इस संकट की घड़ी में भी सदन में आए, अपना कर्तव्य निभाया। हमने राष्ट्र का काम रूकने नहीं दिया आवश्यकता पड़ी, डिस्टेंस रखना भी था और बार-बार टेस्टिंग भी करना पड़ता था। सदन में आते थे लेकिन मॉस्क पहनना पड़ता था। बैठने की रचना भी अलग-अलग की, समय भी बदले गए। हर चीज के साथ राष्ट्र का काम रूकना नहीं चाहिए इस भाव से सभी सदस्यों ने इस सदन को अपने कर्तव्य का महत्वपूर्ण अंग माना है। संसद को चलाए रखा है और मैंने देखा है कि सदन से इतना लगाव लोगों का रहता है कि पहले कभी हम देखते थे कोई तीस साल पहले सांसद रहा होगा, कोई पैंतीस साल पहले रहा होगा लेकिन वो central hall तो जरूर आएगा। जैसे मंदिर जाने की आदत होती है वैसे ही उनको सदन में आने की आदत होती है, इस जगह का लगाव बन जाता है। एक आत्मीय भाव से जुड़ाव हो जाता है और ऐसे बहुत से पुराने लोग हैं जो आते जाते मन करता है जरा चलो एक चक्कर काटते हैं आज उनका जनप्रतिनिधि के नाते दायित्व नहीं है लेकिन भूमि के प्रति उनका लगाव हो जाता है, ये सामर्थ्य हो जाता है इस सदन का।
आदरणीय अध्यक्ष महोदय,
आजादी के बाद बहुत बड़े-बड़े विद्वान लोगों ने बहुत आशंकाए व्यक्त की थी। पता नहीं देश का क्या होगा, चल पाएगा कि नहीं चल पाएगा, एक रहेगा बिखर जाएगा, लोकतंत्र बना रहेगा नहीं, पचासों, लेकिन इस देश की संसद की ताकत है कि पूरे विश्व को गलत सिद्ध कर दिया। और ये राष्ट्र पूरे सामर्थ्य के साथ आगे बढ़ता रहा है। और इस विश्वास से कि हम भले आशंकाए होंगी, घने काले बादल होंगे लेकिन सफलता प्राप्त करते रहेंगे और ये हम सब लोगों ने, हमारी पुरानी पीढ़ियों ने मिलकर के इस काम को करके दिखाया है, इसका गौरवगान करने का ये अवसर है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इसी भवन में दो साल ग्यारह महीने तक संविधान सभा की बैठकें हुई। और उनमें देश के लिए एक मार्गदर्शक जो आज भी हमें चलाता है हमारे संविधान दिया और 26 नवंबर 1949 को जो संविधान हमें मिला वो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इन 75 वर्षों में सबसे बड़ा जो achievement है वो ये है कि देश के सामान्य मानवीय का इस संसद पर विश्वास बढ़ता ही गया है। और लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत यही है कि इस महान संस्था के प्रति, इस महान institution के प्रति, इस व्यवस्था के प्रति उनका विश्वास अटूट रहे, विश्वास उनका बना रहे। इन 75 वर्षों में हमारी संसद ने जन भावनाओं की अभिव्यक्ति का भवन भी बना दिया है। यहां जनभावनाओं की पुरजोर अभिव्यक्ति और हम देखते हैं राजेंद्र बाबू से लेकर डॉ. कलाम, रामनाथ जी कोविंद और अभी द्रोपदी मुर्मू जी इन सबके संबोधन का लाभ हमारे सदनों को मिला है, उनका मार्गदर्शन मिला है।
आदरणीय अध्यक्ष जी ,
पंडित नेहरू जी, शास्त्री जी वहां से लेकर के अटल जी, मनमोहन जी तक एक बहुत बड़ी श्रृंखला जिसने इस सदन का नेतृत्व किया है और सदन के माध्यम से देश को दिशा दी है। देश को नए रूप रंग में ढालने के लिए उन्होंने परिश्रम किया है, पुरुषार्थ किया है। आज उन सबका गौरवगान करने का भी अवसर है।
आदरणीय अध्यक्ष जी ,
सरदार वल्लभ भाई पटेल, लोहिया जी, चंद्रशेखर जी, आडवाणी जी, न जाने अनगिनत नाम जिसने हमारे इस सदन को समृद्ध करने में, चर्चाओं को समृद्ध करने में देश के सामान्य से सामान्य व्यक्ति की आवाज को ताकत देने का काम इस सदन में किया है। विश्व के भी अनेक राष्ट्राध्यक्षों ने हमारे इन सदनों को संबोधित करने का भी अवसर आए और उनकी बातों में भी भारत के लोकतंत्र के प्रति आदर का भाव व्यक्त हुआ है।
आदरणीय अध्यक्ष जी ,
उमंग उत्साह के पल के बीच में कभी सदन की आंख से आंसू भी बहे हैं। ये सदन दर्द से भर गया जब देश को तीन अपने प्रधानमंत्री उनको अपने कार्यकाल में ही खोने की नौबत आई। नेहरू जी, शास्त्री जी, इंदिरा जी, तब ये सदन आश्रम भीनी आंखों से उन्हे विदाई दे रहा था।
आदरणीय अध्यक्ष जी ,
अनेक चुनौतियों के बावजूद भी हर स्पीकर ने, हर सभापति ने बेहतरीन तरीके से दोनों सदनों को सुचारू रूप से चलाया है और अपने कार्यकाल में उन्होंने जो निर्णय किए हैं। वो निर्णय मावलंकर जी से काल से शुरू हुए हों या सुमित्रा जी के कालखंड हो या बिरला जी के। आज भी उन निर्णयों को reference point माना जाता है। ये काम हमारे करीब 17 स्पीकर और उसमें दो हमारी महिला स्पीकर ने भी और मावलंकर जी से लेकर के सुमित्रा ताई तक और बिरला जी, हमें आज भी मिल रहा है। हरेक ने अपनी-अपनी शैली रही है। लेकिन उन्होंने सबको साथ लेकर के नियमों कानूनों के बंधन में इस सदन को हमेशा ऊर्जावान बनाए रखा है। मैं आज उन सभी स्पीकर महोदय को भी आज वंदन करता हूं, अभिनंदन करता हूं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
ये सही है कि हम जनप्रतिनिधि अपनी-अपनी भूमिका निभाते हैं लकिन सातत्यपूर्ण तरीके से हमारे बीच जो ये टोली बैठती हैं उनकी भी कई पीढ़ियां बदल गई हैं। कभी कागज लेके दौड़के आते हैं उनका भी योगदान कम नहीं है। हमें कागज पत्र पहुंचाने के लिए दौड़ते हैं, सदन में कोई गलती न हो जाए, उसके निर्णय में कोई गलती न हो जाए उसके लिए वो चौकन्ने रहते हैं। जो काम इनके द्वारा हुआ है उसने भी सदन की quality of governance में तेजी लाने में बहुत बड़ी मदद की हैं। मैं उन सभी साथियों का, और इनके पूर्व में जो रहे हैं उनका भी हृदय से अभिनंदन करता हूं। इतना ही नहीं सदन मतलब ये खंड ही नहीं है। इस पूरे परिसर में अनेक लोगों ने किसी ने हमें चाय पिलाई होगी, किसी ने पानी पिलाया होगा, किसी ने रात-रात चली हुई सदन को किसी को भूखा पेट रहने नहीं दिया होगा, कई प्रकार की सेवाएं की गई होंगी। किसी माली ने इसके बाहर के environment को संभाला होगा, किसी ने इसकी सफाई की होगी, न जाने कितने ही अनगिनत लोग होंगे जिन्होंने हम सब अच्छे ढंग से काम कर सकें और यहां जो काम हो वो काम देश को आगे बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक तेजी से हो उसके लिए जो माहौल बनाना, व्यवस्था बनाना, उसके लिए जिस-जिस ने योगदान दिया है, मेरी तरफ से भी और इस सदन की तरफ से भी मैं उनका विशेष रूप से नमन करता हूं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
लोकतंत्र का ये सदन…आतंकी हमला हुआ। पूरे विश्व में, ये आतंकी हमला इमारत पर नहीं था। ये mother of democracy, एक प्रकार से हमारी जीवात्मा पर हमला था। ये देश उस घटना को कभी भूल नहीं सकता है लेकिन आतंकियों से लड़ते-लड़ते सदन को बचाने के लिए और हर सदस्य को बचाने के लिए जिन्होंने अपने सीने पर गोलियां झेली, आज मैं उनको भी नमन करता हूं। वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्होंने बहुत बड़ी रक्षा की है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
जब आज हम इस सदन को छोड़ रहें हैं तब मैं उन पत्रकार मित्रों को भी याद करना चाहता हूं जिन्होंने जीवन में, कुछ लोग तो ऐसे हैं जिन्होंने पूरा जीवन अपने कार्यकाल में संसद के काम को ही रिपोर्ट किया है। एक प्रकार से वो जीवंत साक्षी रहे हैं। उन्होंने यहां की पल-पल की जानकारी देश तक पहुंचाई है और तब तो ये सारा technology available नहीं थी। तब वही लोग थे जो यहां की बात पहुंचाते थे और उनका सामर्थ्य था कि वो अंदर की भी पहुंचाते थे और अंदर के अंदर की भी पहुंचाते थे, और मैंने देखा कि ऐसी पत्रकारिता जिन्होंने संसद को कवर किया शायद उनके नाम जाने नहीं जाते होंगे लेकिन उनके काम को कोई भूल नहीं सकता है। और खबरों के लिए नहीं भारत की इस विकास यात्रा को संसद भवन से समझने के लिए उन्होंने अपनी शक्ति खपा दी थी। आज भी पुराने पत्रकार मित्र मिल जाते हैं जिन्होंने कभी संसद को कवर किया है तो ऐसी unknown चीजें बताते हैं जो उन्होंने अपनी आंखों से देखी होती है, कान से सुनी होती है, जो अचरज करने वाली होती है। यानि एक प्रकार से जैसी ताकत यहां की दीवारों की रही है वैसा ही दर्पण उनकी कलम में रहा है और उस कलम में देश के अंदर संसद के प्रति, संसद सदस्यों के प्रति एक अहोभाव का भाव जगाया है। मैं आज कई पत्रकार बंधुओं जो रहे नहीं होंगे लेकिन मेरे लिए जैसा ये सदन छोड़न भावुक पल है, मैं पक्का मानता हूं इन पत्रकार बंधुओं के लिए भी ये सदन छोड़ना उतना ही भावुक पल होगा क्योंकि इनका ये लगाव हमसे भी ज्यादा रहा है। कुछ तो पत्रकार ऐसे होंगे जो हम लोगों के भी होंगे जो हम लोगों की कम उम्र के समय से भी उन्होंने काम किया होगा। आज उनके उस महत्वपूर्ण लोकतंत्र की ताकत बनने के लिए योगदान के लिए भी याद करने का अवसर है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
जब हम सदन के अंदर आते हैं। हमारे यहां नाथ ब्रह्म की कल्पना है। हमारे शास्त्रों में माना गया है। किसी एक स्थान पर अनेक बार एक ही लय में उच्चारण होता है, तो वो तपोस्थली बन जाता है। उसकी एक positive vibe होती है। नाद की एक ताकत होती है, जो स्थान को सिद्ध स्थान में परिवर्तित कर देती है। मैं मानता हूं कि ये सदन भी वो सात-साढ़े सात हजार जनप्रतिनिधियों के द्वारा बार-बार जो शब्द गूंजे हैं, जो वाणियां गूंजी हैं, उसने इस सदन में हम बैठकर आगे चर्चा करें या न करें, लेकिन इसकी गूंज इसे तीर्थ क्षेत्र बना देती है, एक जागृत जगह बन जाती है। हर लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति आज से 50 साल के बाद भी जब यहां देखने के लिए भी आएगा तो उसे उस गूंज की अनुभूति होगी कि कभी भारत की आत्मा की आवाज यहां पर गूंजती थी।
और इसलिए अध्यक्ष महोदय,
ये वो सदन है जहां कभी भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, उन्होंने अपनी वीरता, सामर्थ्य से अंग्रेज सल्तनत को जला दिया था बम का धमाका करके। वो बम की गूंज भी जो देश का भला चाहते हैं, उनको कभी सोने नहीं देती।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
ये वो सदन है जहां पंडित जी को इसलिए भी याद किया गया, अनेक बातों के लिए याद किया गया, लेकिन हम जरूर याद करेंगे। इसी सदन में पंडित नेहरू का At the Stroke of Midnight की गूंज हम सबको प्रेरित करती रहेगी। और इसी सदन में अटल जी ने कहा था, शब्द आज भी गूंज रहे हैं इस सदन में। सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी, लेकिन ये देश रहना चाहिए।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
पंडित नेहरू की जो प्रारंभिक मंत्रिपरिषद थी। बाबा साहेब आंबेडकर जी एक मंत्री के रूप में थे। दुनिया की best practices भारत में लाने पर बहुत जोर दिया करते थे। Factory कानून में अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं को शामिल करने पर बाबा साहेब सर्वाधिक आग्रही रहे थे और उसका परिणाम में आज देश को लाभ मिल रहा है। बाबा साहेब आम्बेडकर ने देश को नेहरू जी की सरकार में वॉटर पॉलिसी दी थी। और वो वॉटर पॉलिसी बनाने में बाबा साहेब आम्बेडकर की बहुत बड़ी भूमिका रही थी।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हम ये जानते है कि भारत में बाबा साहेब आंबेडकर एक बात हमेशा कहते थे, कि भारत में सामाजिक न्याय के लिए भारत का औद्योगीकरण होना बहुत जरूरी है। क्योंकि देश के दलित-पिछड़ों के पास जमीन ही नहीं है, वो क्या करेगा, औद्योगिकरण होना चाहिए। और बाबा साहेब की इस बात को मान करके डॉक्टर श्याम प्रसाद मुखर्जी, जो पंडित नेहरू के मंत्री थे, उन्होंने इस देश में और पहले वाणिज्य मंत्री के रूप में और उद्योग मंत्री के रूप में उन्होंने Industry Policy इस देश में लाई थी। आज भी कितनी ही Industry Policy बनें, लेकिन उसकी आत्मा वही होती है जो पहली सरकार ने दी थी और उसमें उनका भी बहुत बड़ा योगदान रहा था।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
लाल बहादुर शास्त्री जी ने 65 के युद्ध में हमारे देश के जवानों का हौसला बुलंद करना, उनके सामर्थ्य को पूरी तरह राष्ट्रहित में झोंक देने की प्रेरणा इसी सदन में से दी थी। लाल बहादुर शास्त्री को और यहीं पर उन्होंने green revolution के लिए एक मजबूत नींव लाल बहादुर शास्त्री जी ने रखी थी।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
बांग्लादेश की मुक्ति का आंदोलन और उसका समर्थन भी इसी सदन ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व में किया था। इसी सदन ने इमरजेंसी में लोकतंत्र पर होता हुआ हमला भी देखा था और इसी सदन ने भारत के लोगों की ताकत का एहसास कराते हुए मजबूत लोकतंत्र की वापसी भी इसी सदन ने देखी थी। वो राष्ट्रीय संकट को भी देखा था, ये सामर्थ्य भी देखा था।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
ये सदन इस बात का हमेशा ऋणी रहेगा कि इसी सदन में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह जी ने ग्रामीण मंत्रालय का गठन किया था – Rural Development Ministry। इसी सदन में मतदान की उम्र 21 से 18 करने का निर्णय हुआ था और देश की युवा पीढ़ी को उसका योगदान देने के लिए प्रेरित किया गया, उत्साहित किया गया था। हमारे देश ने गठबंधनों की सरकारें देखीं। वीपी सिंह जी और चंद्रशेखर जी और बाद में एक सिलसिला चला। लंबे अर्से से एक दिशा में देश जा रहा था। आर्थिक नीतियों के बोझ तले देश दबा हुआ था। लेकिन नरसिम्हा राव की सरकार थी जिन्होंने हिम्मत के साथ पुरानी आर्थिक नीतियों को छोड़ करके नई राह पकड़ने का फैसला किया था, जिसके आज देश को परिणाम मिल रहे हैं।
अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार भी हमने इसी सदन में देखी। सर्व शिक्षा अभियान देश में आज वो महत्वपूर्ण बन गया है। आदिवासी कार्यालय मंत्रालय अटल जी ने बनाया, Northeast का मंत्रालय अटल जी ने बनाया। Nuclear Test भारत के सामर्थ्य का परिचायक बन गया। और इसी सदन में मनमोहन जी की सरकार कैश फॉर वोट को भी उस कांड को भी सदन ने देखा है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
‘सबका साथ सबका विकास’ का मंत्र, अनेक ऐतिहासिक निर्णय, दशकों से लंबित विषय, उनका स्थाई समाधान भी इसी सदन में हुआ है। Article-370 ये सदन हमेशा-हमेशा गर्व के साथ कहेगा, ये सदन के कार्यकाल में हुआ। One Nation, One Tax ‘वन नेशन, वन टैक्स’ – GST का निर्णय भी इसी सदन ने किया। One Rank One Pension ‘वन रैंक, वन पेंशन’ OROP ये भी इसी सदन ने देखा। गरीबो के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण कोई विवाद के बिना पहली बार इस देश में सौगात डाली गई।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
भारत के लोकतंत्र में तमाम उतार-चढ़ाव हमने देखे हैं और ये सदन लोकतंत्र की ताकत है, लोकतंत्र की ताकत की साक्षी है, जनविश्वास का एक केंद्र बिंदु रहा है। इस सदन की विशेषता देखिए और दुनिया के लोगों को आज भी अचरज होता है ये सदन है जिसमें कभी 4 सांसद वाली पार्टी सत्ता में होती थी और 100 सदस्य वाली पार्टी विपक्ष में बैठती थी। ये भी सामर्थ्य है। इस सदन के लोकतंत्र की ताकत का परिचय कराता है। और यही सदन है जिसमें एक वोट से अटल जी की सरकार गई थी और लोकतंत्र की गरिमा को बढ़ाया था, ये भी इसी सदन में हुआ था। आज अनेक छोटी-छोटी रीजनल पार्टियों का प्रतिनिधित्व हमारे देश की विविधता को, हमारे देश की aspiration का, एक प्रकार से वो आकर्षक केंद्र बिंदु बना है।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इस देश में 2 प्रधानमंत्री ऐसे रहे मोरारजी देसाई, वी.पी.सिंह एक पल लड़ते है, Congress में जीवन खपाया था लेकिन anti-Congress government का नेतृत्व कर रहे थे, ये भी इसकी विशेषता थी। और हमारे नरसिम्हा राव जी, वो तो घर जाने की तैयारी कर रहे थे, निवृत्ति की घोषणा कर चुके थे लेकिन ये ही लोकतंत्र की ताकत देखिए, सदन की ताकत देखिए कि वो प्रधानमंत्री के रूप में 5 साल हमारी सेवा किए।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
सबकी सहमति से कठिन से कठिन कार्य होते हुए हमने देखें हैं। 2000 के साथ ही अटल जी की सरकार थी इसी सदन ने 3 राज्यों का गठन सर्वस्वीकृति से किया और बड़े उमंग, उत्साह से किया। जब छत्तीसगढ़ की रचना हुई तो उत्सव छत्तीसगढ़ ने भी मनाया, उत्सव मध्यप्रदेश ने भी मनाया। जब उत्तराखंड की रचना हुई तो उत्सव उत्तराखंड ने भी मनाया, उत्सव उत्तर प्रदेश ने भी मनाया। जब झारखंड की रचना हुई तो उत्सव झारखंड ने भी मनाया, उत्सव बिहार ने
भी मनाया। ये हमारे सदन का सामर्थ्य है सब-सहमति का वातावरण बनाकर के, लेकिन कुछ कड़वी यादें वो भी हैं कि तेलंगाना के हक को दबोचने के लिए भारी प्रयास हुए, खून की नदियां भी बही। अब बनने के बाद न तेलंगाना उत्सव मना पाया, न आंध्र उत्सव मना पाया एक कटुता के बीज बो दिए गए, अच्छा होता उसी उमंग और उत्साह के साथ हम तेलंगाना का निर्माण करते तो एक नई ऊंचाई पर आज तेलंगाना पहुंच चुका होता।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
इस सदन की परंपरा रही है संविधान सभा ने उस समय अपना दैनिक भत्ता 45 रुपये से कम करके 40 कर दिया था, उनको लगा हमें इसको कम करना चाहिए।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
यही सदन है कैंटीन में मिलने वाली सब्सिडी जो बहुत कम पैसे में खाना मिलता था इसी सदस्यों ने उस सब्सिडी को भी खत्म कर दिया और पूरा पैसा देकर के अब कैंटीन में खाते हैं।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
कोरोना काल में जब जरूरत पड़ी तो यही सांसद जिन्होंने MPLADS फंड को छोड़ दिया और देश को इस संकट की घड़ी में मदद करने के लिए आगे आए। इतना ही नहीं, कोरोना काल में इसी सदन के सांसदों ने अपनी तनख्वाह में 30 प्रतिशत कटौती की और उन्होंने देश के सामने आए हुए संकट में अपनी बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभाई।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हम गर्व से कह सकते हैं, ये सदन में बैठे हुए लोग भी कह सकते हैं, हमारे पूर्व जो सदन में बैठे थे वो भी कह सकते हैं कि हम ही लोग हैं जिन्होंने हम पर discipline लाने के लिए, हमारे यहां जनप्रतिनिधित्व कानून में समय-समय पर कठोरता बरती, नियम हमने ही लादे, हमने ही तय किया की नहीं जनप्रतिनिधि के जीवन में ये नहीं हो सकता। मैं मानता हूं ये जीवंत लोकतंत्र का बहुत बड़ा उदाहरण है और ये सदन ने दिया है, ये ही माननीय सांसदों ने दिया है और हमारी पुरानी पीढ़ी के सांसदों ने दिया है, और मैं मानता हूं कि कभी-कभी उन चीजों को भी याद करना चाहिए।
आदरणीय अध्यक्ष जी,
हम जो वर्तमान सांसद हैं उनके लिए तो ये विशेष सौभाग्य का अवसर है, सौभाग्य का अवसर इसलिए है कि हमें इतिहास और भविष्य दोनों की कड़ी बनने का अवसर मिला है। कल और आज से जुड़ने का हमें अवसर मिल रहा है और आने वाले कल निर्माण करने का एक नया विश्वास, नया उमंग, नए उत्साह के साथ हम यहां से विदाई लेने वाले हैं।
आदरणीय अध्यक्ष महोदय,
आज का दिवस सिर्फ और सिर्फ इस सदन के सभी साढ़े सात हजार जनप्रतिनिधि रह चुके है, उनके गौरवगान का पन्ना है। इन दीवारों से हमने जो प्रेरणा पाई है, जो नया विश्वास पाया है उसको लेकर जाने का है। बहुत सी बातें ऐसी थी जो सदन मे हर किसी की ताली की हकदार थी लेकिन शायद राजनीति उसमें भी आड़े आ रही है। नेहरू जी के योगदान का गौरवगान अगर इस सदन में होता है कौन सदस्य होगा जिसको ताली बजाने का मन ना करता हो। लेकिन इसके बावजूद भी देश के लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है हम सबने अपनी आशाओं तले आदरणीय अध्यक्ष जी, मुझे पूरा विश्वास है कि आपके मार्गदर्शन में और इस अनुभवी माननीय सांसदों के सामर्थ्य से हम नई संसद में जब जाएंगे तो नए विश्वास के साथ जाएंगे।
मैं फिर एक बार आज पूरा दिवस आपने इन पुरानी स्मृतियों को ताजा करने के लिए दिया, एक अच्छे वातावरण में सबको याद करने का मौका दिया इसके लिए मैं आप सबका हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। और मैं सभी सदस्यों से आग्रह करूंगा कि अपने जीवन की ऐसी मुधर यादों को यहां हम जरूर व्यक्त करें ताकि देश तक पहुंचे कि सचमुच में ये हमारा सदन, ये हमारे जनप्रतिनिधियों की गतिविधि सच्चे अर्थ में देश को समर्पित है I इसका भाव लोगों तक पहुंचे, इसी अपेक्षा के साथ मैं फिर एक बार इस धरती को प्रणाम करता हूं, इस सदन को प्रणाम करता हूं। भारत के मजदूरों से बनी हुई हर एक दीवार के हर एक-एक ईटे को प्रणाम करता हूं। और पिछले 75 साल में भारत के लोकतंत्र को नया सामर्थ्य, शक्ति देने वाले हर गुरु को, उस नादब्रह्म को नमन करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।
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