भोपाल, 27 मार्च (जनसमा)। देश में लगभग 49 टाइगर रिजर्व हैं। इनमें से 7 मध्यप्रदेश में स्थित हैं। बाघ ग्लोबल विरासत है। दुर्लभ बाघ के संरक्षण और संवर्धन के लिए लोगों में जागरूकता जरूरी है। देश में वर्ष 1969 में बाघ के शिकार पर प्रतिबंध लगाकर 1972 में वन्य-प्राणी संरक्षण अधिनियम के लागू होने से बाघ के संरक्षण के काम को बल मिला। भारत सरकार की योजना में टाइगर रिजर्व कान्हा को बाघ संरक्षण के लिए सबसे पहले चुना गया था।
यह बात राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा ‘मध्यप्रदेश में बाघ संरक्षण का इतिहास’ पर्यटन व्याख्यान माला में बोलते हुए मुख्य वन संरक्षक आरण् श्रीनिवास मूर्ति ने कही।
मूर्ति ने मध्यप्रदेश में वन्य-प्राणी एवं मुख्य रूप से बाघों के संरक्षण एवं संवर्धन विषय पर रोचक जानकारी देते हुए बताया कि मुगल काल से अंग्रेजों के समय तक आखेट के प्रयोजन के लिये बाघों का संरक्षण किया जाता था। पर्यावरण की दृष्टि से बाघ का वैज्ञानिक संवर्धन सन् 1963 के बाद ही शुरू हुआ, जो अब तक जारी है।
व्याख्यान में बाघ संरक्षण एवं प्रजनन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि बाघों की मुख्य रूप से 8 प्रजाति होती है जिनमें से रॉयल बेन्गॉल टाईगर, साइबेरियन, साउथ.चायना, इण्डो.चायनीज और सुमात्रा प्रजाति के बाघ अभी शेष हैं जबकि बाली, जावा आदि प्रजाति विलुप्त हो चुकी है।
मूर्ति ने बताया कि दुनिया में 70 प्रतिशत बाघ भारत के हैं। मूर्ति ने अपने प्रेजेंटेशन में केप्टन फोरसाइथ की पुस्तक, रूडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक और मध्यप्रदेश में वन्य-प्राणी सम्पदा पर जिम कार्बेट की पुस्तक का खासतौर से जिक्र किया। उन्होंने भारत को बाघों के बचाव की दृष्टि से मुख्य केन्द्र बताया।
पन्ना स्टोरी
मूर्ति ने कान्हा क्रोनोलॉजी प्रोजेक्ट टाइगर, बफर एरिया घोषित करने तथा पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों को पुनस्थापित करने की ‘पन्ना स्टोरी’का उल्लेख करते हुए बाघ की गणना की पगमार्क और केमरा ट्रेप पद्धति से अवगत करवाया। मूर्ति ने रीवा के सफेद शेर मोहन के पाये जाने और इस नस्ल को बढ़ावा देने के प्रयासों की जानकारी भी दी।
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