दो रुपये किलो चावल कहीं भी अकल्पनीय है : पासवान

नई दिल्ली, 11 जून | केंद्रीय खाद्यमंत्री राम विलास पासवान ने कहा है कि पिछले दो साल अत्यंत संतोषजनक रहे। इस दौरान लोगों की आजीविका के कुछ बुनियादी मुद्दों का समाधान किया जा सका है। मंत्री ने इस बात पर खेद भी जताया कि दो रुपये किलो चावल मुहैया कराने पर आने वाला खर्च केंद्र सरकार उठाती है और राज्य इसका श्रेय लेते हैं।

पासवान ने आईएएनएस को दिए एक साक्षात्कार में जोर देकर कहा, “जब हम अनुदान केंद्र से देते हैं, राज्य इसका श्रेय लूट लेते हैं और मीडिया मोदी सरकार पर दोष मढ़ता है। मैंने इसे संसद में भी कहा है। मैं यह कहना चाहूंगा कि कुछ राज्य जो दावा कर रहे हैं कि वे चावल और धान जनता को मुफ्त में मुहैया करा रहे हैं, सही नहीं है। केंद्र सरकार है, जो इसे दे रही है।”

पासवान ने कहा, “इस धरती पर कहीं भी आप ऐसी कल्पना नहीं कर सकते कि सरकार कितना अधिक जनवितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए गरीबों और जरूरतमंदों को आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप कर रही है। दो रुपये किलो चावल कहीं भी अकल्पनीय है।”

मंत्री ने कहा, “चावल का मूल्य 30 रुपये प्रति किलो ग्राम है, इस पर सरकार 28 रुपये अनुदान दे रही है और उपभोक्ता मात्र दो रुपये देता है।”

पासवान ने कहा, “उत्तर प्रदेश सरकार का इसमें योगदान शून्य है, बिहार का शून्य है। गेहूं का मूल्य देश में 20 रुपये किलो है। हम पूरे देश को दो रुपये किलो आपूर्ति कर रहे हैं। पिछले दो साल में हमारा काम क्रांतिकारी है।”

पासवान ने कहा कि इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि “खाद्य मंत्रालय चलाना एक अकृतज्ञता वाला काम है। इसमें कीमत कम करने का कोई श्रेय नहीं दिया जाता।”

उन्होंने कहा, “यह थैंकलेस काम है। पिछले साल की तुलना में गेहूं और चावल जैसी विभिन्न आवश्यक वस्तुओं के मूल्य कम हुए हैं। मई 2016 की तुलना में मूंग और उड़द जैसी दालों के मूल्य में कमी आई है, लेकिन कोई भी अच्छे काम और सही ढंग से योजना बनाने को श्रेय नहीं देगा।”

पासवान ने कहा, “प्याज की कीमत अच्छी उपज के कारण घटी, लेकिन किसानों को नुकसान खराब बिक्रय व्यवस्था की वजह से हुआ। उन्हें मात्र तीन रुपये किलो मिला। उसके बाद हम पर किसानों के हितों की उपेक्षा करने का आरोप लग रहा है।”

इसी संदर्भ में पासवान ने कहा, “केंद्र सरकार किसानों को बढ़े न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के जरिए एक नहीं कई तरह से मदद कर रही है।”

उन्होंने कहा कि गन्ना किसानों का दुख सरकार के लिए चिंता की बात है। इन किसानों को चीनी मिलों से बकाया नहीं मिल रहा है। यह स्थिति तब भी है जब पिछले कुछ महीने में चीनी का मूल्य बहुत बढ़ गया है।

गन्ना किसानों की दयनीय स्थिति एवं उनके बकाया के संदर्भ में पासवान ने कहा, “केंद्र सरकार की भूमिका अच्छा लाभकारी मूल्य (एफआरपी) तय करने की है। वास्तव में यह मामला राज्य सरकारों और मिल मालिकों के बीच का है। लेकिन किसान जिस गंभीर स्थिति का आज सामना कर रहे हैं, उसे महसूस करते हुए हमने हस्तक्षेप किया और करीब 87 फीसदी बकाया राशि (जो 6,225 करोड़ रुपये है) जारी कर दी गई है।”

मंत्री ने कहा कि मूल्य वृद्धि एक प्रमुख मुद्दा है, जिसका इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी मोदी सरकार को निशाना बनाने के लिए करते हैं। पासवान ने जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार आवश्यक वस्तुओं के मूल्य को काबू में रखने के लिए काम कर रही है। इसके लिए अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक रणनीति बनाई जा रही है।

उन्होंने कहा कि मंत्रियों की एक कोर कमेटी बनाई गई है, जिसमें अरुण जेटली(वित्त), निर्मला सीतारमण (वाणिज्य), राधामोहन सिंह (कृषि) और वह खुद शामिल हैं। यह कोर कमेटी नियमित रूप ये स्थिति पर नजर रखती है और मूल्य को नियंत्रित रखने में वे बहुत हद तक सफल रहे हैं।

–आईएएनएस