नई दिल्ली, 06 जनवरी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने ‘नामामि गंगे’ कार्यक्रम के अंतर्गत मिश्रित वार्षिक वेतन आधारित सार्वजनिक-निजी भागीदारी शुरू करने के लिए प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है। इसका उद्देश्य भारत में अपशिष्ट जल क्षेत्र में सुधार करना है।
फोटोः गंगा नदी के एक किनारे का दृश्य। (आईएएनएस)
दृष्टिकोण में उदाहरणीय बदलाव से मिश्रित वेतन आधारित सार्वजनिक निजी साझेदारी (पीपीपी) मॉडल अपनाया जाएगा। इससे कार्य प्रदर्शन, सक्षमता, व्यावहारिकता तथा निरंतरता सुनिश्चित हो सकेगी। इस मॉडल में पूंजीगत निवेश के एक हिस्से (40 प्रतिशत तक) का भुगतान सरकार द्वारा किया जाएगा और शेष भुगतान वार्षिक के रूप में 20 वर्षों तक किया जाएगा।
इस मॉडल के विशेष स्वभाव को ध्यान में रखते हुए और भविष्य में इसे ऊपर उठाने के लिए सरकार ऐसी पीपीपी परियोजनाओं की योजना, संरचना, रियायतग्राही को आकर्षित करने तथा कार्यान्वयन निगरानी के लिए स्पेशल परपस व्हेकिल (एसपीवी) स्थापित करेगी और स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) के समग्र दिशा-निर्देश के अंतर्गत समुचित नीति के माध्यम से शोधित अपशिष्ट जल के लिए बाजार विकसित करेगी। एसपीवी की स्थापना भारतीय कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत की जाएगी और इसके माध्यम से आवश्यक शासन संरचना और कामकाजी स्वायतत्ता प्रदान की जाएगी।
एसपीवी परियोजनाओं को हाथ में लेने के लिए भाग लेने वाली राज्य सरकारों तथा शहरी निकायों के साथ त्रिपक्षीय समझौता करेगी। ऐसे त्रिपक्षीय समझौतों का उद्देश्य सुधार लागू करना तथा प्रदूषक भुगतान आधार पर यूजर शुल्क की उगाही के लिए नियामक कदम उठाना है।
मंत्रालय ने एसटीपी से स्वच्छ किए गए जल की खरीददारी के लिए रेल मंत्रालय के साथ समझौता किया है ताकि शोधित अपशिष्ट जल के लिए तेजी से बाजार विकसित किया जा सके। इसी तरह के समझौते विद्युत, पेट्रोलियम तथा उद्योग मंत्रालय के साथ किए जाएंगे। (हि.स.)
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