नई दिल्ली, 29 मई | रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा है कि भारतीय सेना नागरिक क्षेत्र में असीमित विशेषाधिकार देने वाले विवादित कानून के बिना सैन्य कार्रवाई नहीं कर सकती। समाज के कई हिस्सों से जम्मू एवं कश्मीर एवं पूर्वोत्तर के राज्यों से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (अफस्पा) हटाने की मांग के बीच रक्षा मंत्री ने यह बात कही है। इन दोनों क्षेत्रों में सेना को यह कानून कार्रवाई करने का विशेष अधिकार देता है।
पर्रिकर ने आईएएनएस से खास मुलाकात में कहा, “मेरे विभाग की भूमिका तभी सामने आती है जब किसी खास क्षेत्र में सेना को जाने और कार्रवाई करने के लिए कहा जाता है। उस समय सेना को संरक्षण देने की जरूरत होती है।”
पर्रिकर ने राज्यों में अफस्पा के संदर्भ में यह बातें कहीं। ये कानून उन्हीं इलाकों में लागू है जिन्हें ‘अशांत’ बताया जाता है।
अफस्पा हटाए जाने की संभावना के बारे में रक्षा मंत्री ने कहा कि यह विषय गृह मंत्रालय के तहत आता है। सेना को इसकी जरूरत कुछ खास इलाकों में जा कर कार्रवाई करने के लिए पड़ती है। उन्होंने यह भी कहा कि सैनिकों के लिए पूरी तरह से बचाव की व्यवस्था होनी चाहिए।
रक्षा मंत्री ने जोर देकर कहा कि जब तक कानून नहीं लागू होगा, तब तक सेना नागरिक क्षेत्र में नहीं जाएगी।
उन्होंने कहा, “यदि कानून नहीं है तो सेना कार्रवाई नहीं करेगी। आतंक के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए सेना को इस अधिकार की जरूरत है। यह अधिकार ऐसे कानूनों से ही मिलता है। अफस्पा उनमें से प्रमुख है।”
पर्रिकर ने कहा कि जहां यह कानून नहीं है, सेना अभियान के लिए ऐसे नागरिक क्षेत्र में नहीं जाएगी। गृह मंत्रालय को स्थिति के आकलन के बाद इसी आधार पर निर्णय लेना चाहिए।
उन्होंने कहा, “यदि सेना की जरूरत है, तो कानून को भी बनाए रखना होगा। नहीं तो, सेना वहां काम ही नहीं कर सकती। जवानों को सामान्य कानूनों का सामना करने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता।”
उन्होंने कहा कि अफस्पा के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक नई पौध सामने आई है। उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि 17 साल बीत जाने के बाद भी कोई कारगिल युद्ध के बारे में मुकदमा कर सकता है। कह सकता है कि भारतीय सेना ने जम्मू एवं कश्मीर में जमा देने वाली ऊंचाई पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को भगाने के लिए कार्रवाई की थी।
पूर्वोत्तर के राज्यों में अफस्पा 1958 में तब लागू हुआ जब नागा विद्रोहियों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। यह असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी लागू है।
जम्मू एवं कश्मीर में यह इस्लामी बगावत के बाद 1990 में लागू हुआ।
यह कानून पंजाब में 1983 में आतंकवाद फैलने के बाद लगाया गया। लेकिन, 1997 में इसे वापस ले लिया गया।
जम्मू-कश्मीर में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए पीडीपी ने कुछ इलाकों से अफस्पा हटाने की शर्त रखी थी।
हाल ही में राज्यसभा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हरिभाई पार्थिभाई चौधरी ने साफ कर दिया था कि जम्मू एवं कश्मीर से अफस्पा हटाने की कोई योजना नहीं है।
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