नाटक ‘जायज हत्यारे’ में क्रान्तिकारियों के जीवन के दर्द

लखनऊ, 13 जुलाई । देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ त्याग कर जान कुर्बान कर देने वाले वीर क्रान्तिकारियों की महानता के संबंध में तो बहुत कुछ लिखा जा चुका है। पर क्या कभी हमने उनके मानवीय पक्ष को भी जानने की कोशिश की है। इसे ध्यान में रखते हुए नाटक ‘जायज हत्यारे’ में क्रान्तिकारियों के जीवन के दर्द और प्रेम से जुड़े पक्ष को नाट्य निर्देशक पुनीत अस्थाना के निर्देशन में अत्यन्त भावपूर्ण अंदाज में अभिव्यक्त किया गया।

भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, संस्कृति विभाग के सहयोग से निखिल कुमार श्रीवास्तव की इस प्रस्तुति का मंचन बुधवार को कैसरबाग स्थित राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में किया गया। नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रांसीसी साहित्यकार और दार्शनिक अल्बेर कामू की सुप्रसिद्ध नाट्य रचना ‘द जस्ट असैसिन्स’ का हिन्दी रूपान्तरण सुरेश भारद्वाज और दीपा साही ने किया है।

जायज हत्यारे उन क्रान्तिवीरों की कहानी है जो हिंसक क्रान्ति द्वारा अंग्रेजो से भारत को आजाद कराने के लिए प्रयत्नशील थे। नौजवान क्रान्तिकारियों का ये दल अंग्रेज गर्वनर को बम फेंक कर मारने के मौके की तलाश में हैं, जिससे अंग्रेजी हुकूमत को डरा कर देश छोड़ने के लिये मजबूर किया जा सके। दल का केन्द्रीय पात्र ‘विमी’ नियत समय पर गर्वनर की बग्घी पर बम फेंकने के लिए जाता है, पर बग्घी में बच्चों को भी बैठे देख कर वह बम नहीं फेंकता और लौट आता है।

दल का दूसरा सदस्य ‘सुखेन’ इस बात पर बहुत नाराज होता है कि विमी ने बम क्यों नहीं फेंका? जबकि दल के अन्य सभी सदस्य विमी के इस विचार से सहमत होते हैं कि मासूम बच्चों को बम का निशाना बनाया जाना जायज नहीं है। अगले प्रयास में विमी, अंग्रेज गवर्नर पर बम फेंकने में सफल हो जाता है और लोगों तक आजादी के लिये आवाज बुलन्द करने हेतु प्रेरित करने के खुद को गिरफ्तार करवा देता है। अंग्रेज हुकूमत विरोध के इस स्वर को दबाने के लिये जेल में विमी को जान बख्शने के एवज में यह बयान दिलवाने की कोशिश करती है कि उसे अपने किये पर पछतावा है। अंग्रेज हुकूमत की तरफ से स्वयं गवर्नर की बीवी को उसे, इसके लिये राजी करवाने के लिये भेजा जाता है, पर विमी इससे इन्कार कर फांसी पर चढ़ जाता है।

कॉलेज के जमाने की विमी की प्रेमिका और दल की महिला सदस्या देविका, विमी की शहादत के बाद खुद भी देश पर कुर्बान होने के लिये आगे आती है और नाटक के अंत में वो कहती है कि अगला बम मैं फेंकूंगी। केन्द्रीय पात्र विमी के किरदार में ध्रुव सिंह और उसकी प्रेमिका देविका की भूमिका में दीपिका बोस ने अपने मार्मिक अभिनय से दर्शकों की आंखें नम कर दीं। अशोक लाल (ओकांर नाथ), तारिक इकबाल (सुखेन), ऋषभ तिवारी (विवान) ने भी अपने भावपूर्ण अभिनय से प्रभावित किया।(आईएएनएस/आईपीएन)