पटना, 17 जुलाई | संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने बिहार के पर्यटक एवं ऐतिहासिक स्थल प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों को विश्व धरोहरों (वर्ल्ड हेरिटेज साइट) की सूची में शामिल कर लिया है। यहां के लोगों को अब विश्वास है कि विश्व धरोहरों में शामिल होने के बाद यहां सैलानियों की संख्या बढ़ेगी।
कभी संपूर्ण विश्व में शिक्षा और ज्ञान के केंद्र के रूप में परचम लहराने वाले बिहार के प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की याद ताजा रखने के लिए आज की 21वीं सदी में नालंदा में एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना भी की गई है।
यूनेस्को ने बिहार के गया जिला स्थित महाबोधि मंदिर के बाद बिहार के दूसरे स्थल नालंदा के खंडहरों को विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया है।
फोटो सौजन्य: बिहार पर्यटन विभाग
नालंदा खंडहर के समीप लगे शिलालेख के मुताबिक, प्राचीन युग के एक महानतम विश्वविद्यालय के रूप में प्रतिष्ठित नालंदा महाविहार की स्थापना गुप्त सम्राट कुमार गुप्त प्रथम (413-455 ईस्वी) ने की थी। कन्नौज नरेश हर्षवर्धन (606-647 ईस्वी) और पूर्वी भारत के पाल शासकों के समय भी महाविहारों को राजकीय संरक्षण मिलता रहा।
शिलालेख के मुताबिक, इस शिक्षण संस्थान का क्रमिक ह्रास पाल शासकों के समय से ही होने लगा था, लेकिन सन् 1200 में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया था। इसके बाद इस संस्थान का अंत हो गया।
नालंदा कॉलेज के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ़ शशिभूषण प्रसाद ने आईएएनएस से कहा कि विश्व धरोहरों में शामिल होने के बाद इस प्राचीन विश्वविद्यालय की खोई हुई प्रतिष्ठा वापस हो गई है और इसे एक नई ऊंचाई मिली है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा कराए गए उत्खनन (वर्ष 1915-37 तथा वर्ष 1974-82) से यहां ईंट निर्मित छह मंदिरों और 11 विहारों की श्रृंखला मिली थी, जो करीब एक किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है।
प्रसाद बताते हैं कि खुदाई में मिली सभी इमारतों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। परिसर दक्षिण से उत्तर की ओर बना हुआ है। मठ या विहार इस परिसर की पूर्व दिशा में, जबकि मंदिर पश्चिम दिशा में स्थित थे। इस परिसर में एक मुख्य इमारत थी। वर्तमान समय में भी यहां एक दो मंजिली इमारत है। यह इमारत परिसर के मुख्य आंगन के समीप बनी हुई है। संभवत: यहां शिक्षक अपने छात्रों को संबोधित किया करते थे।
इस विहार में एक छोटा प्रार्थना कक्ष अब भी सुरक्षित है। इस प्रार्थना कक्ष में भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा हालांकि भग्न अवस्था में है।
मंदिर संख्या-3 इस परिसर का सबसे बड़ा मंदिर है। यह मंदिर कई छोटे-बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है। इन सभी स्तूपों में भगवान बुद्ध की मूर्तियां बनी हुई हैं। ये मूर्तियां विभिन्न मुद्राओं में बनी हुई हैं।
पुरातत्व विभाग (पटना) के उपाधीक्षक और नालंदा संग्रहालय के पुरातत्वविद् एम़ क़े सक्सेना कहते हैं, “यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल हो जाने से न सिर्फ नालंदा और बिहार, बल्कि पूरे देश की गरिमा बढ़ी है। गरिमा बढ़ने के साथ ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण व बिहार सरकार के दायित्व भी काफी बढ़ गए हैं।”
नालंदा खंडहर गाइड संघ के अध्यक्ष सुनील कुमार कहते हैं कि अब यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी और जब पर्यटक आएंगे तो स्थानीय लोगों की आमदनी भी बढ़ेगी। यहां आने वाले सैलानियों को मिलने वाली सुविधाओं में बढ़ोतरी के साथ सुरक्षा व्यवस्था पहले की अपेक्षा अधिक चुस्त होगी।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में रत्नसागर, रत्नोदधि व रत्नरंजिता नाम के पुस्तकालय थे। बताया जाता है कि विश्वविद्यालय में जब आग लगाई गई थी, तब से छह माह तक पुस्तकालयों की पुस्तकें जलती रहीं।
प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिनके लिए 1500 अध्यापक हुआ करते थे। छात्रों में अधिकांश एशियाई देशों जैसे चीन, कोरिया और जापान से आने वाले बौद्ध भिक्षु होते थे।
उल्लेखनीय है कि यूनेस्को के विशेषज्ञ मो मसाया मसूई के नेतृत्व में 26 अगस्त, 2015 को एक जांच दल ने नालंदा के खंडहरों का निरीक्षण किया था। नालंदा के खंडहरों से जुड़े व्यक्तियों व समूहों के साथ बैठक कर इसके विभिन्न पहलुओं की विस्तृत जानकारी प्राप्त की थी।
27 अगस्त, 2015 को जांच दल ने खंडहरों के आसपास के अन्य पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक स्थलों का भी जायजा लिया था।-मनोज पाठक
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