नई दिल्ली, 26 जनवरी | राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को कहा कि निहित स्वार्थ अब भी हमारे देश की बहुलवादी संस्कृति और सहिष्णुता की परीक्षा ले रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि वक्त आ गया है जब लोकसभा व विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने के बारे में चर्चा की जाए। राष्ट्र के 68वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति ने कहा कि लोगों की खुशहाली सार्वजनिक नीति के केंद्र में होनी चाहिए। नवाचार, और उससे भी अधिक समावेशी नवाचार को एक जीवनशैली बनाना होगा।
देशवासियों को गणतंत्र दिवस की बधाई देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ, हमारे पास अपना कोई शासन दस्तावेज नहीं था। हमने 26 जनवरी 1950 को सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता के लिए स्वयं को एक संविधान सौंपा। हमने भाईचारे, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता को प्रोत्साहित करने का वचन दिया। उस दिन हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बन गए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संस्थापकों द्वारा निर्मित लोकतंत्र की मजबूत संस्थाओं को यह श्रेय जाता है कि पिछले साढ़े छह दशकों से भारतीय लोकतंत्र अशांति से ग्रस्त क्षेत्र में स्थिरता की मिसाल रहा है।
उन्होंने कहा कि 1951 में 36 करोड़ की आबादी की तुलना में, अब हम 1.3 अरब आबादी वाले राष्ट्र हैं। इसके बावजूद, हमारी प्रति व्यक्ति आय में दस गुना वृद्धि हुई है, गरीबी अनुपात में दो तिहाई की गिरावट आई है। आज हम विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था हैं। अब तक की यात्रा घटनाओं से भरपूर, कभी-कभी कष्टप्रद, परंतु अधिकांश समय आनंददायक रही है।
राष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि जैसे हम यहां तक पहुंचे हैं, वैसे ही और आगे बढ़ेंगे। हमें बदलती हवाओं के साथ तेजी से अपने रुख में बदलाव करना होगा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उन्नति से पैदा हुए तीव्र व्यवधानों को समायोजित करना होगा। शिक्षा को प्रौद्योगिकी के साथ आगे बढ़ना होगा। रोजगार पैदा करना होगा।
प्रणब ने अपने संबोधन में नोटबंदी का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि काले धन को बेकार करते हुए और भ्रष्टाचार से लड़ते हुए, विमुद्रीकरण से आर्थिक गतिविधि में कुछ समय के लिए मंदी आ सकती है। लेकिन, लेन-देन के अधिक से अधिक नकदीरहित होने से अर्थव्यवस्था की पारदर्शिता बढ़ेगी।
राष्ट्रपति ने कहा कि देश का बहुलवाद और उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक अनेकता इसकी सबसे बड़ी ताकत हैं। उन्होंने कहा कि हमारी परंपरा ने सदैव ‘असहिष्णु’ भारतीय नहीं बल्कि ‘तर्कवादी’ भारतीय की सराहना की है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए विचारों की एकता से अधिक, सहिष्णुता, धैर्य और दूसरों का सम्मान जैसे मूल्यों का पालन करने की आवश्यकता होती है। ये मूल्य प्रत्येक भारतीय के हृदय और मस्तिष्क में रहने चाहिए।
प्रणब मुखर्जी ने बतौर राष्ट्रपति अपने इस कार्यकाल के अपने अंतिम गणतंत्र दिवस संबोधन में देशवासियों के सामने पहले से अधिक मेहनत कर देश को आगे ले जाने के लिए नौ सूत्री कार्ययोजना भी रखी।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमें और अधिक परिश्रम करना होगा क्योंकि निहित स्वार्थों द्वारा अभी भी हमारी बहुलवादी संस्कृति और सहिष्णुता की परीक्षा ली जा रही है। ऐसी स्थितियों से निपटने में तर्क और संयम हमारे मार्गदर्शक होने चाहिए।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि हमें आतंकवाद की बुरी शक्तियों को दूर रखने के लिए और अधिक परिश्रम करना है। इन शक्तियों का दृढ़ और निर्णायक तरीके से मुकाबला करना होगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपनी त्रुटियों की भी पहचान करना चाहिए और उनमें सुधार लाना चाहिए। चुनाव सुधारों पर रचनात्मक चर्चा करने और स्वतंत्रता के बाद के उन शुरुआती दशकों की परंपरा की ओर लौटने का समय आ गया है जब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। राजनीतिक दलों के विचार-विमर्श से इस कार्य को आगे बढ़ाना चुनाव आयोग का दायित्व है।
उन्होंने कहा कि हमें और अधिक परिश्रम करना होगा क्योंकि गरीबी से हमारी लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। हमारी अर्थव्यवस्था को अभी भी गरीबी पर तेज प्रहार करने के लिए दीर्घकाल में 10 प्रतिशत से अधिक वृद्धि करनी होगी।
उन्होंने कहा कि लोगों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए और प्रकृति के उतार-चढ़ाव के प्रति कृषि क्षेत्र को लचीला बनाने के लिए और अधिक परिश्रम करना है।
उन्होंने कहा कि हमें अपनी महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा, संरक्षा, सम्मान और गरिमा प्रदान करने के लिए और अधिक परिश्रम करना है।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने उन सैनिकों और सुरक्षाकर्मियों की बेहतरी को सुनिश्चित करने के लिए और अधिक परिश्रम करना है, जो आंतरिक और बाहरी खतरों से हमारी रक्षा करते हैं।
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