नई दिल्ली, 6 मई | नेपाल में प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली की सरकार के सामने संकट की खबरों के मद्देनजर भारत, नेपाल के राजनीतिक हालात पर बारीकी से नजर रख रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने गुरुवार को साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, “जैसा कि आपको पता है, ये नेपाल की आंतरिक राजनीतिक घटनाएं हैं।”
उन्होंने कहा, “लेकिन, निश्चित रूप से एक करीबी पड़ोसी होने के नाते हम लोग नेपाल के घटनाक्रम पर बहुत बारीकी से नजर रख रहे हैं।”
बुधवार को मिली खबरों से लग रहा था ओली सरकार प्रमुख सहयोगी यूसीपीएन-(माओवादी) के समर्थन वापस लेने के फैसले से लड़खड़ा गई है। माना जा रहा है कि यूसीपीएन (माओवादी) पुष्प कमल दहल प्रचंड के नेतृत्व में मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस और मधेशी दलों के साथ राष्ट्रीय एकता वाली सरकार बनाना चाहती है। नेपाली कांग्रेस और मधेशी दल इस कदम का समर्थन कर रहे हैं।
लेकिन, काठमांडू से मिली ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, अपने पूर्व के रुख से पलटते हुए गुरुवार को यूसीपीएन (माओवादी) ने ‘फिलहाल’ समर्थन वापस नहीं लेने का निर्णय लिया है।
सूत्रों का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि वास्तव में क्या हुआ और माओवादियों ने यूटर्न क्यों लिया? अटकलें यह लगाई जा रही हैं कि ओली और प्रचंड के बीच बनी कोई गुप्त सहमति पहले के रुख से पलटने का मुख्य कारण है।
रिपोर्ट के अनुसार, गुरुवार की सुबह प्रधानमंत्री ओली ने अपनी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मर्क्सवादी-लेनिनवादी) के दो वरिष्ठ सदस्यों को प्रचंड के आवास पर भेजा। माना जा रहा है कि उन्होंने आश्वस्त किया कि प्रधानमंत्री ओली माओवादियों की सारी शिकायतें दूर करेंगे।
करीब सात माह पुरानी ओली सरकार में संख्याबल के हिसाब से माओवादियों की पार्टी मुख्य दल है। यदि यह समर्थन वापस ले लेती है तो सरकार आसानी से गिर जाएगी।
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