काठमांडू, 19 सितंबर | नेपाल ने सोमवार को नया संविधान लागू होने की पहली वर्षगांठ मनाई। इस बीच मधेसी दलों ने इसका विरोध काला दिवस मनाकर किया और विरोध रैली की।
मधेसी दल प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ की नई सरकार से नाराज हैं। यह सरकार शुरू में उनकी मांगों के प्रति सहानुभूति रखने वाली मानी जा रही थी। सरकार का गठन हुए एक माह गुजर गए, लेकिन मधेसियों की मांगों और शिकायतों को दूर करने के लिए सरकार ने बहुत कम काम किया जिससे मधेसी गुस्से में और आंदोलित हैं।
पिछले माह सत्ता संभालने वाले प्रचंड ने इस अवसर पर एक संबोधन में कहा कि उनकी सरकार संविधान में उचित संशोधनों के जरिए मधेसी, थारू और विशिष्ट संस्कृति वाले समुदायों की शिकायतें दूर करने के लिए गंभीर है।
उन्होंने कहा, “मेरी सरकार ऐसा संविधान तैयार करने के लिए गंभीरता के साथ काम कर रही है कि सबके लिए स्वीकार्य हो। वह इसके कुछ प्रावधानों से नाराज जनता की शिकायतें ताजा संशोधनों के जरिए दूर कर इसके लागू करने के प्रयास में शीघ्रता कर रही है।”
प्रचंड ने कहा, “दुनिया के किसी भी देश को पहले प्रयास में अब तक पूर्ण संविधान हासिल करने में सफलता नहीं मिली है। ऐसा इसलिए कि संविधान एक ऐसा गतिमान दस्तावेज है जिसमें जनता की जरूरत के मुताबिक समय-समय पर संशोधन के जरूरत पूर्णता आती है।”
प्रचंड को संयुक्त राष्ट्र जाना था, लेकिन उन्होंने मधेसी और जनजातीय समुदायों की संविधान को लेकर चिंता के निवारण के क्रम में अपनी पहले से तय यात्रा रद्द कर दी।
संविधान में नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य माना गया है। इसमें लोगों के मानवाधिकारों की गारंटी, समय से चुनाव, प्रेस की स्वतंत्रता, स्वतंत्र न्यायपालिका और कानून के आधार पर शासन और सामाजिक न्याय, टिकाऊ शांति, अच्छा शासन, विकास और प्रगति का मांग प्रशस्त करता है।–आईएएनएस
Follow @JansamacharNews