कालेधन के खात्मे के लिए मोदी सरकार के मास्टर स्ट्रोक के बाद राजनीतिक भूचाल आ गया है। बड़ी नोट पर प्रतिबंध का फैसला राजनीतिक मसला बन गया है। संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष सरकार को घेरने का गेम प्लान तैयार करने में लगा है। लेकिन राजनीति के मूल में आम आदमी ही है।
सरकार कह रही है कि जनता उसके साथ है, वहीं कालेधन के शोक में डूबा प्रतिपक्ष आम लोगों की दिक्कतों का बहाना बना सिर पीट रहा है, लेकिन कालेधन पर उसकी मंशा साफ नहीं है। देश जब सरकार के साथ खड़ा है फिर गैरभाजपाई दलों में इतना शोर क्यों है। लेकिन जमीनी हकीकत है कि सरकार के इस कड़वे फैसले से सियासी दलों और उसके पंडितों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
सरकार की नीति और नीयति पवित्र है। प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से उठाया गया कदम आधुनिक भारत का सबसे बड़ा फैसला है साथ ही यह चुनावी घोषणा के अनुरूप है। हलांकि आम आदमी की जिंदगी पर सवाल खड़ा हो गया है। बाजार मंदी की चपेट में है। किसान, बुनकर, मजदूर वर्ग फैसले से बेहाल है। बीमार व्यक्तियों को इलाज के लिए पैसे नहीं मिल रहे हैं। लोग उधार से जिंदगी चला रहे हैं। बैंकों और एटीएम में कई घंटे कतार में खड़े लोगों को पैसा नहीं मिल पा रहा है।
लोगों की परेशानी देखते हुए सरकार फैसले की हर रोज समीक्षा कर लोच ला रही है फिर भी हालात सामान्य होने में वक्त लगेगा। यह बात वित्तमंत्री जेटली भी स्वीकार चुके हैं। यह सच है कि सरकार फैसले को अमल में लागू करने के पहले इससे उत्पन्न होने वाली व्यावहारिक और तकनीकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया, जिसका नतीजा देश कतार में है।
वित्त मामलों के सचिव आर.सी. दास ने कालेधन को रोकने के लिए एक और फैसला किया है। अब बैंकों की कतार में लगे लोगों के हाथ में स्याही लगाई जाएगी। वोटिंग करने के दौरान जिस स्याही का प्रयोग किया जाता है वही नियम बैंकों में लागू होगा। सरकार के संज्ञान में यह बात आई है कि कुछ लोग बार-बार बैंकों से पैसा जमा और निकाल कर कालाधन सफेद करने में लगे हैं। निश्चित तौर पर यह बेहतर फैसला है। इससे जहां बैंकों में भीड़ कम होगी, आम आदमी को सहूलियत मिलेगी और ब्लैकमेलिंग पर भी लगाम कसी जाएगी।
दूसरी तरफ सुदूर इलाकों में नए नोट पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर की सेवाएं भी ली जा रही हैं। पुरानी नोट का प्रचलन 24 नवंबर तक बढ़ा दिया गया है। लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पर सवाल उठाए हैं कि पश्चिम बंगाल सहित कुछ राज्यों में 19 नवंबर को उपचुनाव हैं, जिसका इस पर प्रभाव पड़ेगा।
हालांकि देश की जानी मानी खेल हस्ती सुनील गावस्कर सहित फिल्मी हस्तियां और अवाम का बड़ा हिस्सा सरकार के साथ खड़ा दिखता है। बावजूद लोग हालातों से समझौता कर रहे हैं और सरकार के साथ खड़े हैं। उन्हें बदलाव की नई उम्मीद दिख रही है। आम आदमी का भरोसा सरकार पर और मजबूत होता दिख रहा है, जिसकी वजह से विरोधियों में बौखलाहट है।
उप्र और पंजाब में होनेवाले राज्य विधानसभा चुनाव को लेकर प्रतिपक्ष परेशान है। उसे लगता है कि आम आदमी इससे प्रभावित हो कहीं भाजपा के साथ न चला जाए। जिससे सपा, बसपा, कांग्रेस और वामपंथ के साथ आप खुद में बेहाल है।
नोटबंदी पर ममता की अगुवाई में राष्ट्रपति भवन तक बुधवार को मार्च निकाला गया। इसमें शिवसेना भी शामिल होगी यह भाजपा के लिए बड़ा झटका है। लेकिन प्रतिपक्ष में भी फूट पड़ गई है। केजरीवाल ने कहा है कि अगर शिवसेना मार्च में शामिल होगी तो वह मार्च से वाक आउट करेगी। सरकार भी विरोधियों के हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार खड़ी दिखती है।
राहुल गांधी कतार में खड़े होकर जहां राजनीति को आम आदमी की दिक्कतों से जोड़ा। वहीं मोदी सरकार ने नहले पर दहला मारा और प्रधानमंत्री की मां हीराबेन को कतार में लगा यह जाताने की कोशिश हुई की सरकार का फैसला आम और खास के लिए बराबर है। कालेधन पर सर्जिकल स्ट्राइक के बाद मोदी ने बेनामी संपत्ति पर मास्टर प्लान का खाका तैयार कर लिया है, जिससे गैर भाजपाई दलों और धनकुबेरों में घबराहट है।
बेनामी ट्रांजेक्शन बिल 1988 में बड़ा बदलाव किया गया है। संशोधन बिल 2016 के जरिए इस कानून को और कठोर बनाने के साथ कई कड़े बदलाव किए गए हैं। बिल को संसद की पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। कालेधन को पचाने का सबसे अच्छा सुगम तरीका बेनामी संपत्ति भी है, लेकिन सरकार अब उसका भी हिसाब मांगेगी।
दस हजार कमाने वालों के पास दस करोड़ की संपत्ति कहां से आई। यह बेनामी संपत्ति केवल जमीन और प्लाट ही नहीं वह कुछ भी हो सकता है। गोवा में प्रधानमंत्री के भावनात्मक बयान से स्थिति और भी साफ हो गई है कि सरकार कालेधन पर और रियायत के मूड में नहीं है। स्वैच्छिक आय घोषणा स्कीम के बाद भी जब कालाधन बाहर नहीं आता दिखा तो नोट बंदी का फैसला करना पड़ा।
मोदी ने देशहित में 50 दिन का समय मांगा है। कालेधन के खात्मे पर उनकी संजीदगी इस बयान में साफ झलकती है, जब उन्होंने कहा कि फैसले के खिलाफ लोग जिंदा जला देंगे तो तो भी नहीं डरूंगा। निश्चित तौर पर सरकार और उसकी नीयति में खोट नहीं है। कालाधन हमारी अर्थव्यवस्था के लिए अभिशाप बन गया है, जिससे विकास में आम आदमी की सहभागिता नहीं बढ़ पा रही है।
समूचा अर्थतंत्र मुट्ठी भर लोगों के हाथ में है। हलांकि इसके पीछे राजनीतिक कारण से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। चुनावों में कालेधन का उपयोग आम बात है। उप्र की राजनीति में कालेधन का कितना महत्व है यह किसी से छुपा नहीं है। पैसे लेकर यहां टिकट बांटे जाते हैं। बसपा से बिखरने वाले लोग खुलेआम मयावती पर पैसे लेकर टिकट बांटने का आरोप लगा चुके हैं। उन्हें राजनीति में दलित नहीं दौलत की बेटी से नवाजा जाता है। लेकिन सरकार के फैसले के बाद विपक्ष बैकफुट पर चला गया।
सरकार के इस फैसले से बड़े बदलाव की उम्मीद जगी है। देश अगर सरकार में विश्वास जताया है तो उसपर भरोसा करना भी लाजमी हैं। जाहिर सा सवाल है जब नोट बदलने में आपकों इतनी दिक्कत हो रही है तो देश बदलने की परेशानी आप खुद समझ सकते हैं।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)
===प्रभुनाथ शुक्ल
Follow @JansamacharNews