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न्याय में अमीर-गरीब का भेद न हो : प्रधान न्यायाधीश

रायपुर, 10 सितंबर । सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी.एस.ठाकुर ने यहां शनिवार को कहा कि कि न्याय में अमीर-गरीब का भेद नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) का भी यही मुख्य उद्देश्य है। ठाकुर रायपुर के भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (आईआईएम) के प्रेक्षागृह में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर द्वारा ‘आदिवासियों के अधिकारों का संरक्षण और प्रवर्तन’ विषय पर आयोजित देश की पहली कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।

न्यायमूर्ति ठाकुर और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने संयुक्त रूप से इस एक दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ किया।

फाइल फोटो

न्यायमूर्ति ठाकुर ने आगे कहा कि पिछड़े, कमजोर और अशिक्षित लोगों को न केवल न्याय के लिए आवश्यक विधिक सहायता दी जाए, बल्कि उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कर उन्हें उनके अधिकार भी दिलाया जाए। इसके लिए नालसा ने 2015 में 7 नियम भी बनाए हैं। इसमें असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों, बच्चों, मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों, नशा पीड़ितों, तस्करी एवं वाणिज्यिक यौन शोषण पीड़ितों को विधिक सेवाएं मुहैया कराना तथा आदिवासियों के अधिकारों का संरक्षण एवं प्रवर्तन को शामिल किया गया है।

ठाकुर ने कहा कि देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक विभिन्न क्षेत्रों में आदिवासी रहते हैं। छत्तीसगढ़ की करीब 33 प्रतिशत आबादी जनजाति वर्ग की है। जनजातियों के संरक्षण व संवर्धन के लिए संविधान की 5 व 6 अनूसूची सहित विभिन्न कानून तथा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं।

उन्होंने कहा कि पिछड़े, कमजोर और गरीब लोगों को उनका अधिकार दिलाना सुशासन का ही हिस्सा है। विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा पैरा लीगल वालिंटियर और पैनल लायर भी नियुक्त किए जा रहे हैं।

ठाकुर ने कहा कि जिस तरह छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों में स्थानीय लोगों की भर्ती की जा रही है, उसी तरह पैरा लीगल वालिंटियर और पैनल लायर आदिवासी वर्ग से ही हो, ताकि वो बेहतर तरीके से लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कर सके।

वहीं, मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ के लिए यह गौरव की बात है कि इस महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा के लिए देश के प्रधान न्यायाधीश छत्तीसगढ़ आए हंै। न्यायमूर्ति ठाकुर ने 2015 में नालसा के जो 7 नियम दिए हैं, वह पूरे देश में कमजोर व पिछड़े वर्ग के लोगों के अधिकारों की रक्षा के साथ ही राज्य सरकारों द्वारा योजनाओं के बेहतर तरीके से क्रियान्वयन की जिम्मेवारी भी सुनिश्चित करता है।

गैर आदिवासी मुख्यमंत्री ने कहा, “आदिवासियों को मैं प्रकृति का पुत्र मानता हूं। उन्होंने पेड़ों, जंगलों, पर्यावरण और प्राचीन परंपरा व संस्कृति को बचा के रखा है। आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करना मुख्यमंत्री होने के नाते मेरी और मेरे सरकार की जिम्मेदारी है।”

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे ने कहा कि आज का दिन ऐतिहासिक है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक गुप्ता ने तीन ए का फार्मूला दिया, जिसमें अवरनेस, एक्सेस और एफरडेबल के तहत अधिकारों के संरक्षण की बात कही।

इस अवसर पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष प्रीतिंकर दीवाकर, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश गौतम भादुड़ी, मुख्य सचिव विवेक ढांढ, पुलिस महानिदेशक ए.एन.उपाध्याय सहित विभिन्न स्वयं सेवी संगठनों के प्रतिनिधि, न्यायिक व प्रशासनिक सेवा के अधिकारी तथा बार काउंसिल के सदस्य उपस्थित थे। –(आईएएनएस/वीएनएस)