नई दिल्ली, 23 सितम्बर (आईएएनएस)| ग्रीस की राजधानी एथेंस में 2004 में हुए पैरालम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के 12 साल के के बाद रियो में भाला फेंक का स्वर्ण पदक जीतने वाले 35 साल के भारतीय पैरालम्पिक एथलीट देवेंद्र झझारिया का कहना है कि उनके तथा अन्य भारतीय एथलीटों के लिए एथेंस से रियो तक का सफर काफी बदलाव भरा रहा है।
रियो पैरालम्पिक में विश्व रिकॉर्ड तोड़कर भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले झझारिया ने कहा, “आज हम पदक जीत कर आए और हवाईअड्डे पर जिस प्रकार से हमारा भव्य स्वागत किया गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, खेल मंत्री विजय गोयल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई। इस तरह से ही काफी बदलाव आए खिलाड़ियों और खेलों की स्थिति में बड़ा बदलाव आया है।”
झझारिया ने इन बदलावों पर अपने अनुभवों के बारे में कहा, “बिल्कुल खेलों के स्तर में काफी अंतर आया है। 2004 एथेंस पैरालम्पिक में विश्व रिकॉर्ड तोड़कर स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन तब मुझे इस स्तर की पहचान नहीं मिली, क्योंकि उस वक्त इन खेलों के लिए देशवासियों में उतना रोमांच नहीं था और अब जो स्थिति है, वह काफी अलग है।”
रियो पैरालम्पिक के बाद खेल को जारी रखने या संन्यास लेने की संभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर भारतीय एथलीट ने कहा, “मैं कहूंगा कि रियो पैरालम्पिक मेरा लक्ष्य था। इसके लिए मैंने सारी तैयारी की थी। अब हम वापस आए हैं और लंदन में हमारी विश्व चैम्पियनशिप है और उसमें हिस्सा लेकर अच्छा प्रदर्शन करना हमारा लक्ष्य है।”
भारतीय पैरालम्पिक समिति को कई बार भंग किया गया और कई बार इसे मान्यता प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। इस कारण समिति में आए सुधार के बारे में पूछे जाने पर झझारिया ने कहा, “समिति के साथ जिस प्रकार के विवाद रहे हैं। ये हमारे लिए काफी दुर्भाग्यपूण है लेकिन अब हमारा आने वाला समय काफी अच्छा होगा।”
पैरालम्पिक समिति के अध्यक्ष राव इंद्रजीत सिंह के कार्यो की सराहना करते हुए देवेंद्र ने कहा, “इंद्रजीत ने समिति के विकास के लिए काफी कार्य किया है और मेरी उनसे निजी तौर पर बात हुई है। हम सब अब एक योजना बनाकर आगे बढ़ रहे हैं। इसीलिए, मुझे पूरा विश्वास है कि आगे भी हम काफी अच्छा करेंगे।”
बचपन में हुई एक दुर्घटना से अपना बायां हाथ गवां बैठे देवेंद्र ने हार न मानते हुए अपनी इस कमजोरी को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाया।
भाला फेंक खेल को चुनने के पीछे के कारण के बारे में पूछे जाने पर झझारिया ने कहा, “मेरे गांव के पास जिस स्कूल में मैं पढ़ता था, उसमें खेलों का स्तर काफी अच्छा था, विशेषकर एथलेटिक्स का। मैंने देखा कि भाला फेंक खेल मेरे लिए सबसे सही है और इसी में मैंने शुरुआत की। देखिए, आजतक इससे जुड़ा हुआ हूं।”
झझारिया ने 12 साल के अंतराल के बाद रियो पैरालम्पिक में कदम रखा। 2008 बीजिंग और 2012 पैरालम्पिक में इस स्पर्धा को शामिल नहीं किया गया था और इस कारण भारतीय एथलीट को इसमें शामिल होने का अवसर नहीं मिल पाया।
मिल्खा सिंह को अपनी प्रेरणा मानने वाले झझारिया से इस बारे में जब पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि अगर भाला फेंक स्पर्धा को शामिल किया जाता, तो देश को और भी पदक मिल सकते थे।
उन्होंने कहा, “अब भी हमारे पास और भी बेहतर करने का समय है और आगे बढ़ते हुए देश का नाम रोशन करना है, ताकि हमारे जैसे अन्य खिलाड़ियों को आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिले।” === मोनिका चौहान
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