प्रेरणा श्रीमाली की कोरियोग्राफी या नृत्य संरचना ‘प्रकृति से बिन्दु तक’ कथक की शब्दावलि और ध्वनियों को नये किन्तु सार्थक अर्थ देने जैसी है। इसके साथ ही संगीत की लहरों पर तैरती नृत्यांगनाओं की भंगिमाएँ और मुद्राएँ भी अपने नए अर्थ खोजती प्रतीत हो रही थीं। ऐसे अर्थ जिसमें जीवन के अंकुरण और विस्तार तथा अनंत की अनुगूंज को समेटने की आतुरता थी।
समकालीन परिदृश्य में जहाँ कलाकार की जिजीविषा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के साथ कदम-ताल के लिए बैचेन हो वहाँ शास्त्रीय संगीत की नित-नूतन रूप गढ़ती परंपरा और शब्द-ध्वनियाँ प्रदर्शनकारी कला ‘कथक’ के लिए रचनात्मक और समकालीन नृत्य-रूप को भावनात्मक अनुभव देने जैसा है।
नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ के सीडी देशमुख सभागार में 6-7 जनवरी, 2023 को रज़ा फाउण्डेशन द्वारा आयोजित दो दिवसीय ‘डांसिग रज़ा’ समारोह के अंतिम दिन प्रेरणा श्रीमाली की नृत्य संरचना ‘प्रकृति से बिन्दु तक’ कथक के व्याकरण को सौन्दर्य की नई पहचान देने जैसी थी।
भारतीय दर्शन में बिंदु का महत्व शिव-तत्त्व का अनुभव है। आधुनिक चित्रकला के महान् कलाकार स्व. सैयद हैदर रजा भारतीय दर्शन के प्रति समर्पित ऐसे चित्रकार थे जिन्होंने अपने जीवन को ही नाद से बिन्दु तक का यात्री बना दिया। ऐसे यात्री जिन्होंने एक दिन यमुना की गोद को जीवन की अंतिम लय समर्पित की और देह को पवित्र नदी नर्मदा में एकाकार करने के लिए छोड़ दिया। नर्मदा की माटी ने ही उनकी देह गढ़ी थी सो एक दिन उसी माटी में जाकार वे निराकार हो गए।
ब्रह्मांड में बिंदु वह स्थान है जहां से ब्रह्म का नाद यानी स्वर की उत्पत्ति हुई और फिर संपूर्ण आकाश में उसने विस्तार पाया है। यही कुछ इस नृत्य संरचना के संगीत को सुनने और नृत्य को देखने से अनुभव हुआ।
नृत्य संरचना की शुरुआत में ‘नर्मदा के आह्वान’ को प्रस्तुत किया नृत्यांगना शिप्रा जोशी, निष्ठा बुधलाकोटी एवं निहारिका कुशवाहा ने। तीनों नृत्यांगनाएँ प्रेरणा श्रीमाली की वरिष्ठ शिष्याएँ हैं और सभी ने ताल-लय के अनुरूप घुंघरुओं की पद-ध्वनि से दर्शकों को आनंद का अनुभव कराया।
एकल प्रस्तुति में प्रेरणा श्रीमाली ने रज़ा के चित्रों की रेखाओं और रंगों और उनमें समाहित ‘नादेन बिन्दु’ की रहस्यमयी अंतर्निहित ध्वनि को नृत्य के माध्यम से जिस तरह स्पेस के कैनवास पर मुद्राओं से उकेरा वह भारतीय चिन्तन धारा की अभिव्यक्ति का अभिनव रूप कहा जाना चाहिए। रज़ा के चित्रों को देखें तो अनुभव होगा कि हम समग्र ब्रह्माण्ड को अपने में समाकर चल रहे हैं जिसमें भावों, भावनाओं, संवेदनाओं और अनुभव के कई-कई रूप बनते-बिगड़ते और पुनः सृजित होते दीखेंगे।
प्रेरणा श्रीमाली की नृत्य भंगिमाएं, हस्त मुद्राएँ, तत्कार, परण और निकास की गत को प्रस्तुत करने की बारीकी रज़ा के चित्रों की रेखाओं, कोणों, परिधियों और रंगों की सार्थक संवेदनाओं को समझने और मंच पर मूर्त होने जैसा अनुभव था। इसी नृत्य संरचना में गुंथी हुई राजस्थानी की पारंपरिक बंदिश ‘छपर पुरानो पिया पड़ गयो रे’ के द्वारा नृत्यांगना रूप-आध्यात्म को साकार कर देती हैं।
जयपुर घराने की नृत्य गुरू और स्व. कुन्दनलाल गंगानी की शिष्या सुश्री प्रेरणा श्रीमाली की नृत्य संरचना ‘प्रकृति से बिन्दु तक’ की अवधारणा पावन मनोभावों से सृजित रज़ा के चित्रों से प्रेरित है जो बीज को अंकुरित होने, पंचतत्त्व से पोषित और पुष्ट होने और जीवन को अध्यात्म का रंग प्रदान करते हैं और फिर इसकी पराकाष्ठा बिन्दु में प्रकट होती है। रज़ा की कला में रंग और आकृतियाँ दोनों की मौजूदगी थी, साथ ही विचारों की चमक भी थी। प्रेरणा की नृत्य संरचना उसे नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करने का अभिनव, सार्थक और शानदार प्रयास है।
नृत्य संरचना का संगीत तैयार किया था पं. आलोक भट्ट ने। पखावज पर थे डॉ. प्रवीण आर्य, सितार पर पं. हरिहर शरण भट्ट, गायन पं. आलोक भट्ट और पढ़ंत की श्रीमती मनीषा गुलयानी और शुभम पाल सिंह ने। वेशभूषा डिज़ाइन शिप्रा जोशी की थी और प्रकाश व्यवस्था थी शरद कुलश्रेष्ठ की।
कह सकते हैं कि रज़ा फाउण्डेशन द्वारा आयोजित दो दिवसीय समारोह की एक शानदार प्रस्तुति थी प्रेरणा श्रीमाली की नृत्य संरचना ‘प्रकृति से बिन्दु तक’।
- बृजेन्द्र रेही
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