नई दिल्ली, 20 अप्रैल)| फैटी लीवर या स्टियोटोसिस वह हालात है, जब लीवर में फैट (वसा) जमा हो जाती है। वैसे तो लीवर में फैट होना आम बात है, लेकिन पांच से 10 प्रतिशत ज्यादा फैट होना बीमारी कहलाता है। लगभग 30 प्रतिशत लोगों में यह बीमारी पाई जाती है और 60 प्रतिशत वे लोग, जिन्हें दिल के रोगों का खतरा है और 90 प्रतिशत मोटापे के शिकार लोगों को भी फैटी लीवर होने का खतरा रहता है।
लीवर शरीर का दूसरा बड़ा अंग है। हम जो भी खाते या पीते हैं और खून में शामिल हानिकारक तत्व लीवर उसे प्रोसेस करता है। अगर लीवर में बहुत फैट हो जाए तो इस प्रक्रिया में रुकावट आ जाती है। लीवर नए लीवर सेल बनाकर अपनी क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की पूर्ति कर लेता है। जब लगातार क्षति होती रहती है तो लीवर पर जख्म हो जाते हैं, जिसे ‘सिरोसिस’ कहा जाता है।
लीवर की इस बीमारी की प्रमुख वजह शराब का अत्यधिक सेवन है। शराब की लत के अलावा मोटापा, हाइपर लिपिडेमिया, मधुमेह वाले रक्त में अत्यधिक वसा का होना, तेजी से वजन कम होना और एस्प्रिन, स्टिरॉयड, टैमोजिफेन और टेट्रासाइक्लीन जैसी दवाओं के दुष्प्रभाव के कारण यह बीमारी हो सकती है।
फैटी लीवर बीमारी कई किस्म की होती है। शराब के बिना होने वाली फैटी लीवर बीमारी तब होती है, जब लीवर को फैट तोड़ने में मुश्किल होती है। इससे लीवर टीशूज में वसा का जमाव हो जाता है।
एल्कोहलिक फैटी लीवर शराब से संबंधित लीवर की शुरुआती बीमारी है। नॉन-एल्होलिक फैटी लीवर की स्थिति में लीवर में सूजन नहीं होती, लेकिन नॉन-एल्होलिक स्टेयटो-हैपेटाइटिस होने पर लीवर जिसमें सूजन भी होती है। एक दुर्लभ, लेकिन जानलेवा हालात में यह बीमारी गर्भवती महिला के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. एसएस अग्रवाल और जनरल सेक्रेटरी डॉ. के.के. अग्रवाल ने बताया कि अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने के कुछ घंटे के अंदर ही फैटी लीवर की स्थिति बन सकती है।
उन्होंने बताया कि अधिक का मतलब एक घंटे में 150 मिलीलीटर या पूरे दिल में 160 मिलीलीटर से ज्यादा शराब पीना। पैरासिटामोल, एंटी-डायबिटीज, एंटी-एपेलेप्टिक, एंटी-टीबी दवाएं लीवर के एंजाइम बढ़ा सकती हैं और कई जड़ी-बूटियां भी।
डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि बचाव के बारे में जागरूक होकर कई समस्याओं से बचा जा सकता है। जीवनशैली में बदलाव ही इसका इलाज है।
उन्होंने कहा कि अगर किसी के लीवर में सूजन है तो डॉक्टर इसे छूकर ही पता कर सकता है। अल्ट्रासाउंड, रक्त की जांच और लीवर बायोप्सी जैसे कुछ अन्य तरीके हैं, जिससे इसका पता लगाया जा सकता है।
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि फैटी लीवर या स्टियोटोसिस के इलाज के लिए कोई दवा या सर्जरी नहीं होती। जीवनशैली में बदलाव की ही सलाह दी जाती है। मरीज को कहा जाता है कि शराब का सेवन कम करें, कोलेस्ट्रॉल और वजन घटाएं तथा मधुमेह पर नियंत्रण रखें। (आईएएनएस
Follow @JansamacharNews