बंधुआ मजदूरी

बंधुआ मजदूरी करते हुए 11 बच्चों को मुक्त कराया गया

दिल्ली में 7 स्थानों पर छापेमारी अभियान में 11 नाबालिग बच्चों को बंधुआ मजदूरी करते हुए मुक्त कराया गया, इनमें सबसे कम उम्र का बच्चा 8 साल का था।
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने समयपुर बादली पुलिस थाने क्षेत्र के तहत 7 स्थानों पर छापेमारी और बचाव अभियान चलाया। इस दौरान 11 बाल श्रमिकों को उनके कार्य स्थल से मुक्त कराया गया।
यह बच्चे उत्तरी दिल्ली जिले के अलीपुर क्षेत्र की बेकरियों, खरैत मशीन इकाइयों और ऑटो केंद्र इकाइयों में बंधुआ मजदूरी के रूप में खतरनाक स्थिति में काम कर रहे थे। दिल्ली सरकार रविवार 21 फरवरी को जारी विज्ञप्ति में यह जानकारी दी।
एक बच्चे को एक रिहायशी जगह से मुक्त कराया गया, जहां वह एक घरेलू कामगार के रूप में काम कर रहा था।
बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराए गए बच्चों को कोविड-19 महामारी का ध्यान रखते हुए सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक आघात से अवगत कराया गया।

छापेमारी दल का संचालन एसडीएम अलीपुर अजीत सिंह ठाकुर, समयपुर बादली पुलिस दल, श्रम विभाग, उत्तर पश्चिम जिला, सहयोग केयर फॉर यूं संगठन और दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) द्वारा किया गया था।

सभी बच्चों को संबंधित सीडीएमओ की देखरेख में चिकित्सा देखभाल और कोविड परीक्षण प्रदान किया गया और संबंधित बाल कल्याण समिति-एक्स, अलीपुर, के समक्ष पेश किए जाने के बाद देखभाल और सुरक्षा के लिए चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन में रखा गया।

मुक्त कराए गए सभी 11 बच्चे नाबालिग थे, जिसमें सबसे कम उम्र का बच्चा 8 साल का पाया गया।

उत्तरी जिले के डीएम द्वारा तैनात सिविल डिफेंस टीम ने ऑपरेशन के दौरान आवश्यक सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करते हुए शानदार काम किया।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मुक्त गए सभी बच्चे परिसर में सुरक्षित महसूस करें और उनकी अच्छी तरह से देखभाल की जाए। उनका काम बेहद सराहनीय है।

गत 28 जनवरी को आयोजित एक अन्य बचाव अभियान में, पश्चिम जिले की डीएम नेहा बंसल और पंजाबी बाग के एसडीएम निशांत बोध के नेतृत्व में 51 नाबालिगों को सफलतापूर्वक मुक्त कराया गया था।

बंधुआ मजदूरी करते इन 51 मासूम बच्चों में से 10 लड़के थे और बाकी 41 लड़कियां थीं। बचाव अभियान पश्चिमी दिल्ली के नांगलोई क्षेत्र के आरा, जूता और स्क्रैप इकाइयों में किया गया था।

डीसीपीसीआर ने दोनों छापे और बचाव अभियानों में समन्वय की भूमिका निभाई। दोनों बचाव कार्यों में बच्चे ज्यादातर 12 घंटे से अधिक काम करते पाए गए और उन्हें न्यूनतम 100-150 रुपए प्रतिदिन मिलते थे।

इसके अलावा, इन बच्चों के जीवन पर, विशेष रूप से महामारी के दौरान, एक गंभीर खतरा पैदा करने वाले बेहद अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों में काम करते हुए पाया गया।

डीसीपीसीआर के अध्यक्ष अनुराग कुंडू ने कहा कि 2023 तक दिल्ली बाल-श्रम मुक्त बनाने के आयोग के लक्ष्य को उचित सामाजिक पुनर्निवेश और मुक्त कराए गए बच्चों का पुनर्वास लोगों के सामूहिक प्रयासों के माध्यम से ही पूरा किया जा सकता है।

बच्चों को चाइल्ड केयर संस्थानों में रखा गया है और उन्हें जल्द से जल्द उनके माता-पिता ( अभिभावकों ) परिवारों के साथ बहाल कर दिया जाएगा।

डीसीपीसीआर यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना जारी रखेगा कि बच्चों को बैक-वेज और मुआवजे के साथ-साथ अपराधियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जाए, जो बच्चों का शोषण करने वाली व्यक्तियों और स्थितियों के लिए एक निवारक के रूप में कार्य करेगा।
2023 तक दिल्ली को बाल-श्रम मुक्त शहर बनाने के अपने प्रयासों में, डीसीपीसीआर दिल्ली के नागरिकों से समर्थन की तलाश कर रहा है और इसके लिए एक व्हाट्सएप नंबर (9599001855) लॉन्च किया है, जहाँ बाल श्रमिकों की जानकारी साझा की जा सकती है और रिपोर्टिंग करने वाले नागरिकों को सही जानकारी साझा करने के लिए सम्मानित किया जाएगा।
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