नई दिल्ली, 23 जुलाई | राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगभग तीन दशकों से बालश्रम के खिलाफ काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। केवल देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोग उन्हें भारत के शांतिदूत के रूप में देखते हैं। उन्होंने बालश्रम रोकने के लिए लोगों से चुप्पी तोड़ने का आह्वान किया है।
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित सत्यार्थी इन दिनों अपने विश्वव्यापी आंदोलन ‘हंड्रेड्स मिलियन्स फॉर हंड्रेड्स मिलियन्स’ पर काम कर रहे हैं, जिसे लेकर उनकी ख्वाहिश है कि इस आंदोलन का नेतृत्व युवा करें।
आपने कैलाश सत्यार्थी के बारे में बहुत कुछ पढ़ा-सुना होगा, लेकिन यहां हम उनके जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं को उजागर कर रहे हैं। सत्यार्थी ने आईएएनएस के साथ लंबी बातचीत में अपने जीवन से जुड़े अनुभव भी साझा किए :
प्रश्न : बालश्रम या आपके शब्दों में कहें तो बाल दासता को समाज से उखाड़ फेंकने के लिए आप लगातार प्रयासरत हैं, और इसी जज्बे के लिए आपको ‘द मैन ऑन ए मिशन’ के नाम से जाना जाता है। इस समय आप किस मिशन पर हैं?
–वर्तमान में मेरा पहला मिशन राज्यसभा में पारित हुए बालश्रम (निषेध एवं नियमन) संशोधित कानून को लोकसभा में पारित होने से पहले उसमें कुछ बदलाव कराना है, क्योंकि इसमें दो सबसे बड़ी खामियां रह गई हैं। पहली खामी यह कि पिछले कानून में 83 उद्योगों को प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया था, जिसे घटाकर 3 कर दिया गया है। दूसरी सबसे बड़ी खामी है कि बच्चों का घरेलू उद्यमों में काम करना गैरकानूनी नहीं है। इससे बच्चों द्वारा कथित परिवारों के नाम पर मजदूरी करना जारी रहेगा और इस संशोधित बिल के तहत यह गैरकानूनी नहीं माना जाएगा।
प्रश्न : आप इस समय समाज व बाल कल्याण के लिए क्या काम कर रहे हैं?
— मैं ‘हंड्रेड मिलियन फॉर हंड्रेड मिलियन’ आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहा हूं। इस समय दस करोड़ से अधिक बच्चे, युवा और लड़कियां हिंसा, अशिक्षा, कुपोषण और यौन शोषण के शिकार हैं, उनकी मदद करने के लिए हम यह आंदोलन शुरू करने की योजना बना रहे हैं। इन 10 करोड़ लोगों की मदद के लिए हम 10 करोड़ युवाओं व नौजवानों से उनकी आवाज बनने का आग्रह करेंगे।
इस आंदोलन का जल्दी ही खाका तैयार कर सोशल मीडिया, कॉलेज छात्रों और विभिन्न युवा संगठनों से संपर्क कर युवाओं को इस आंदोलन से जोड़ा जाएगा। इस आंदोलन को साल के अंत तक शुरू करने की योजना है।
बचपन में बच्चे खेल-कूद और पढ़ाई में व्यस्त होते हैं, मगर सत्यार्थी ने केवल खुद को ही नहीं, बल्कि गरीब, असहाय और मजदूरी कर रहे बच्चों को भी शिक्षित करने का प्रण लिया। उन्होंने साढ़े पांच साल की उम्र से ही बाल श्रम को रोकने की अपनी यात्रा शुरू कर दी थी।
प्रश्न : बाल श्रम रोकने का पहला विचार कब और कैसे आया?
— मैं साढ़े पांच साल का था और मेरे स्कूल का पहला दिन था। स्कूल के बाहर मैंने अपनी ही उम्र के एक बच्चे को जूते सीने का काम करते देखा। मैंने जब अपने शिक्षक और घरवालों से इस बारे में बात की तो किसी से भी मुझे संतोषजनक जवाब नहीं मिला।
मैं इस घटना को कभी भूल नहीं पाया और बचपन से ही गरीब बच्चों के लिए चंदा इकट्ठा कर उनकी फीस और किताबों का इंतजाम करता रहा। इंजीनियरिंग कर डेड़ साल तक नौकरी करने के बाद बाल श्रम रोकने को ही अपना लक्ष्य बना लिया, जिसमें मेरी पत्नी ने मेरा साथ दिया।
प्रश्न : नोबल पुरस्कार मिलने के बाद कितना आसान हुआ समाजसेवा का रास्ता?
–नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोग जानने लगे हैं। पहले देश-विदेश के नेताओं से मिलने के लिए महीनों का इंतजार करना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। विभिन्न देशों के प्रधानमंत्री, नेताओं व अध्यक्षों से मुलाकात कर रहा हूं और उनके देश तक इस सेवाकार्य को पहुंचा रहा हूं।
समाज के सबसे आखिरी स्तर के मुद्दे को मैं सर्वोच्च स्तर पर ले जाने में सफल रहा हूं, हालांकि इसके बाद मेरे ऊपर एक नैतिक बोझ भी आ गया है। मेरे लिए नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद सबसे बड़ा बदलाव यह रहा कि बालश्रम, बाल दासता और हिंसा जैसे मुद्दे सहस्राब्दी विकास लक्ष्य में शामिल हो गए।
प्रश्न : बाल श्रम रोकने के लिए एक आम इंसान क्या और कैसे कर सकता है?
–बच्चों को काम करते हुए देखकर आम इंसान को चुप्पी तोड़नी चाहिए। सभी बच्चों को अपने बच्चों के समान देखना चाहिए। इसके खिलाफ अपने स्थानीय सांसद और विधायक से बात करनी चाहिए। सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसे स्थानों पर जहां बच्चे काम करते हैं, वहां अपना विरोध जताना चाहिए। समाज के हर व्यक्ति को बाल मजदूरी रोकने के लिए अपनी भूमिका समझनी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, “समाजिक चेतना से दुनिया भर में बदलाव होगा और हुआ भी है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 15 सालों में बाल मजदूरों की संख्या करीब 26 करोड़ से घटकर 18 करोड़ रह गई है। वहीं स्कूलों से वंचित छात्रों की संख्या 13 करोड़ से घटकर छह करोड़ रह गई है।”
प्रश्न : पूरा विश्व इस समय शरणार्थी संकट से जूझ रहा है, जिसमें बच्चों की स्थिति व हालत अत्यंत दयनीय हैं, इस संबंध में आप क्या कर रहे हैं?
–इन शरणार्थी बच्चों को मैं अपने बच्चे समझता हूं और इनके लिए मैं लगातार प्रयासरत हूं। मैं और मेरी पत्नी अभी जर्मनी में एक शरणार्थी शिविर में रह कर आए हैं। यहां मैंने बच्चों से बहुत कुछ सीखा और उनके दर्द को समझा। मैंने उनकी आंखों में सबकुछ खोने के बावजूद सपनें देखे। मैंने तुर्की के एक शिविर में भी एक दिन गुजारा।
उन्होंने आगे कहा, “शरणार्थी संकट के बीच कई बच्चे शिक्षा, पोषण से वंचित हो रहे हैं, कई बच्चे गुलाम बनाए जा रहे हैं, गायब हो रहे हैं, और विभिन्न अपराधों में धकेले जा रहे हैं, अकेले सीरिया से करीब 20 लाख बच्चे लापता हुए हैं।”
सत्यार्थी ने कहा, “मैंने कई राष्ट्राध्यक्षों और मंत्रियों के समक्ष इस मुद्दे को उठाते हुए बच्चों के लिए सभी देशों से अपने द्वारा खोलने का आग्रह किया। मैंने तुर्की में यूएन ह्यूमनटेरियन सम्मिट ( संयुक्त राष्ट्र मानवीय शिखर सम्मेलन) में भी इस मामले को उठाया। इस बैठक में ‘एजुकेशन कैन नॉट वेट’ नामक एक अभियान भी शुरू किया है, ताकि संकट से जूझ रहे बच्चे शिक्षा से वंचित न रह पाएं।”– प्रज्ञा कश्यप, आईएएनएस
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