बांदा, 9 जनवरी | उत्तर प्रदेश के हिस्से वाला बुंदेलखंड पिछले कई दशकों से महाराष्ट्र के विदर्भ जैसे हालात से गुजर रहा है। ‘कर्ज’ और ‘मर्ज’ के दबाव में हर साल कई किसान अपनी जान गंवा रहे हैं, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल इसे चुनावी मुद्दा बनाने को तैयार नहीं दिख रहा है।
उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में सात जिले- बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर हैं। इन जिलों में विधानसभा की 19 सीटें हैं, जिनमें बांदा की नरैनी, हमीरपुर की राठ, जालौन की उरई और ललितपुर की महरौनी सीट अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित है।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) और मुख्य विपक्षी दल बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को सात-सात, कांग्रेस को चार और भारतीय जनता पार्टी को एक सीट पर जीत मिली थी। इन उन्नीस सीटों के मतदाता पिछले कई दशक से महाराष्ट्र के विदर्भ की तर्ज पर ‘कर्ज’ और ‘मर्ज’ के बोझ तले दबकर अपनी जान गवां रहे हैं।
प्राकृतिक आपदाओं के बाद अब बुंदेलखंड में आवारा जानवर भी किसानों के लिए बड़ी मुसीबत जान बन गए हैं। आवारा जानवरों से फसल की रखवाली के लिए किसान ‘रतजगा’ तक कर रहे हैं। पूर्व चुनावों की तरह इस चुनाव में भी राजनीतिक दलों के उम्मीदवार किसानों का हिमायती होने का ढोंग करेंगे, लेकिन कोई भी दल ‘कर्ज’, ‘मर्ज’ को अपना चुनावी मुद्दा नहीं बना रहे हैं।
किसानों के हक की लड़ाई लड़ने वाले ‘बुंदेलखंड तिरहार विकास मंच’ के अध्यक्ष प्रमोद आजाद का कहना है कि उन्होंने कमासिन के कठार पंप कैनाल को चालू करने की मांग को लेकर किसानों के साथ अब तक दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर लखनऊ और बांदा जिला मुख्यालय में 37 बार धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं, राज्य सरकार सिंचाई सुविधा तो नहीं दे पाई, अलबत्ता उन्हें डेढ़ माह की जेल जरूर नसीब हुई।
उन्होंने बताया कि प्राकृतिक आपदा से बड़ी समस्या यहां आवारा जानवरों की है, जो बची-खुची फसल रात में चट कर जाते हैं। बकौल आजाद, “इन जानवरों से रखवाली के लिए किसान रात को अपने खेतों में ‘रतजगा’ तक कर रहे हैं, इससे वह ठंड लगने के शिकार हो जाते हैं।”
किसान नेता और जिला पंचायत बांदा के पूर्व अध्यक्ष कृष्ण कुमार भारतीय ने कहा, “अब भी सभी दल चुनाव जीतने के लिए किसानों के साथ छल कर रहे हैं। कर्ज, मर्ज और आपदा में मरने वाले किसानों की लंबी फेहरिस्त है, इस फेहरिस्त से कहीं ज्यादा बुंदेलखंड से पलायन करने वाले हैं।”
उन्होंने बताया कि पूर्ववर्ती केंद्र सरकार में शामिल एक पार्टी ने बुंदेलखंड में पलायन करने वाले किसानों की रिपोर्ट प्रधामंत्री कार्यालय (पीएमओ) को सौंपी थी, जिसमें करीब 65 लाख किसानों के अन्यत्र पलायन का जिक्र किया गया था, यह रिपोर्ट अब भी पीएमओ में धूल फांक रही हैं। परवर्ती नरेंद्र मोदी सरकार का भी इस ओर ध्यान नहीं है। इस सरकार ने तो नोटबंदी कर किसानों की परेशानी और बढ़ा दी। बुंदेलखंड के किसानों के लिए नोटबंदी ‘जले पर नमक’ समान है।
बुजुर्ग राजनीतिक विश्लेषक रणवीर सिंह चौहान एड़ का कहना है, “कर्ज और मर्ज को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए किसानों को खुद आगे आना होगा, तभी वह अपनी लड़ाई लड़ पाएंगे।”
उन्होंने कहा कि किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए सिर्फ बांदा जिले के किसान करीब पांच अरब रुपये से ज्यादा सरकारी ऋण ले चुके हैं और प्राकृतिक आपदा में फसल बर्बाद हो जाने की वजह से अदायगी नहीं कर पा रहे हैं। जाहिर है, कर्ज चुका पाने में लाचार कई किसान फिर मौत को गले लगा लेंगे, फसल बर्बाद हो जाने के सदमे से कई किसान पहले ही आत्महत्या कर चुके हैं। सरकार में शामिल नेताओं को सिर्फ भाषणों में किसान और गरीब याद आते हैं, मंच से उतरते ही सब भूल जाते हैं।
=== आर. जयन
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