बुंदेलखंड के दूसरा राजस्थान बनने का खतरा : राजेंद्र सिंह

छतरपुर (मप्र), 29 मई | जलपुरुष के नाम से चर्चित और प्रतिष्ठित स्टॉकहोम वाटर प्राइज से सम्मानित राजेंद्र सिंह ने सूखा की मार झेल रहे बुंदेलखंड के दूसरे राजस्थान (रेगिस्तान) बनने की आशंका जताई है।

सूखा प्रभावित क्षेत्रों में चार सामाजिक संगठनों द्वारा निकाली जा रही जल-हल यात्रा में हिस्सा लेने आए राजेंद्र सिंह ने आईएएनएस के संदीप पौराणिक से बातचीत में कहा, “राजस्थान तो रेत के कारण रेगिस्तान है, मगर बुंदेलखंड हालात के चलते रेगिस्तान में बदल सकता है। यहां के खेतों की मिट्टी के ऊपर सिल्ट जमा हो रही है, जो खेतों की पैदावार को ही खत्म कर सकती है।”

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सिंह ने कहा कि जल-हल यात्रा के दौरान टीकमगढ़ और छतरपुर के तीन गांव की जो तस्वीर उन्होंने देखी है, वह डरावनी है। यहां इंसान को खाने के लिए अनाज और पीने के लिए पानी आसानी से सुलभ नहीं है। जानवरों के लिए चारा और पानी नहीं है। रोजगार के अभाव में युवा पीढ़ी पलायन कर गई है। इतना ही नहीं, नदियां पत्थरों में बदलती नजर आती हैं, तो तालाब गड्ढे बन गए हैं।

उन्होंने कहा कि इन सब स्थितियों के लिए सिर्फ प्रकृति को दोषी ठहराना उचित नहीं है। इसके लिए मानव भी कम जिम्मेदार नहीं है। ऐसा तो है नहीं कि बीते तीन वर्षो में बारिश हुई ही नहीं है। जो बारिश का पानी आया उसे भी हम रोक नहीं पाए। सरकारों का काम सिर्फ कागजों तक रहा। यही कारण है कि बीते तीन वर्षो से यहां सूखे के हालात बन रहे हैं। अब भी अगर नहीं चेते तो इस इलाके को दूसरा राजस्थान बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

जलपुरुष का मानना है कि अब भी स्थितियों को सुधारा जा सकता है, क्योंकि मानसून करीब है। इसके लिए जरूरी है कि बारिश के ज्यादा से ज्यादा पानी को रोका जाए, नदियों को पुनर्जीवित करने का अभियान चले, तालाबों को गहरा किया जाए, नए तालाब बनाए जाएं। बारिश शुरू होने से पहले ये सारे प्रयास कर लिए गए, तो आगामी वर्ष में सूखा जैसे हालात को रोका जा सकेगा, अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर क्या होगा, यह तो ऊपर वाला ही जाने।

एक सवाल के जवाब में सिंह ने आईएएनएस से कहा, “अब तक दुष्काल का असर सीधे तौर पर गरीबों और जानवरों पर पड़ता था, मगर इस बार का असर अमीरों पर भी है। हर तरफ निराशा का भाव नजर आ रहा है, जो समाज के लिए ठीक नहीं है। वहीं मध्य प्रदेश की सरकार इससे अनजान बनी हुई है। यहां देखकर यह लगता ही नहीं है कि राज्य सरकार इस क्षेत्र के सूखे और अकाल को लेकर गंभीर भी है।”

देश के चार सामाजिक संगठनों स्वराज अभियान, एकता परिषद, नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट (एनएपीएम) और जल बिरादरी ने मिलकर सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देशों से हर किसी को जागृत करने और जमीनी हालात जानने के लिए जल-हल यात्रा निकाली है। यह यात्रा मराठवाड़ा के बाद बुंदेलखंड में चल रही है।

उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में उन्हें ऐसा लगा ही नहीं कि राज्य सरकार सूखा के प्रतिबद्घ है। यहां न तो टैंकरों से पानी की आपूर्ति हो रही है, न तो राशन का अनाज मिल रहा है। इतना ही नहीं, जानवर मर रहे हैं। उनके लिए न तो पानी का इंतजाम किया गया है और न ही चारा शिविर शुरू हुए हैं।

उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार को आवश्यक दिशा निर्देश दिए हैं। प्रभावित क्षेत्रों के प्रति व्यक्ति को पांच किलो प्रतिमाह अनाज देने, गर्मी की छुट्टी के बावजूद विद्यालयों में मध्याह्न भोजन देने, सप्ताह में कम से कम तीन दिन अंडा या दूध देने और मनरेगा के जरिए रोजगार उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं। ये निर्देश मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में तो सफल होते नजर नहीं आए।

उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में फैला हुआ है। मप्र के छह जिले और उप्र के सात जिले इस क्षेत्र में आते हैं, हर तरफ सूखे से हाहाकार मची हुई है। जल स्रोत सूख गए हैं।