नई दिल्ली/चेन्नई/अगरतला/गुवाहाटी, 29 जुलाई | केंद्र सरकार की बैंकिंग क्षेत्र की नीतियों के विरोध में देशभर के 40 निजी और राष्ट्रीयकृत बैंकों के लगभग 10 लाख कर्मचारियों की एकदिवसीय हड़ताल के मद्देनजर शुक्रवार को बैंकों में कामकाज बंद होने बैंकिंग सेवाएं प्रभावित रही। बैंकिंग क्षेत्र की यूनियनों ने बैंकों के एकीकरण, सरकारी बैंकों के निजीकरण, फंसे हुए बड़े कर्जो की वसूली, जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों पर मुकदमा चलाने समेत अन्य मांगों को लेकर इस हड़ताल का आयोजन किया।
अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के महासचिव सी.एच.वेंकटचालम ने चेन्नई में आईएएनएस को बताया, “इस हड़ताल को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है, क्योंकि इससे देशभर के लगभग 10 लाख कर्मचारी जुड़ गए हैं। अधिकांश राष्ट्रीयकृत बैंक बंद हैं।”
आंध्र बैंक कर्मचारी संघ (तमिलनाडु इकाई) के महासचिव के.पामाराईसेल्वन ने कहा, “देशभर में बैंकिंग कामकाज प्रभावित हुआ है।”
इस महीने की शुरुआत में प्रमुख बैंक संघों ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के बाद 12 और 13 जुलाई को दो दिवसीय हड़ताल टाल दी थी।
यह हड़ताल यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) के बैनर तले एआईबीईए, एआईबीओसी, एनसीबीई, एआईबीओए, बीईएफआई, आईएनबीईएफ, आईएनबीओसी, एनओबीडब्ल्यू और एनओबीओ बैंक संगठनों ने किया।
वहीं, पूर्वोत्तर में बैंक हड़ताल का व्यापक असर दिखा। यहां शुक्रवार को बैंकिंग सेवाएं बुरी तरह बाधित रहीं और अधिकांश बैंक बंद रहे।
हड़ताली कर्मचारी भारतीय स्टेट बैंक में इसके सहयोगी बैंकों के प्रस्तावित विलय का विरोध कर रहे हैं। साथ ही आईडीबीआई बैंक के निजीकरण के भी विरोध में हैं।
वेंकटलचम के मुताबिक सरकार बैंकिंग क्षेत्र में कई ऐसे निर्णय ले रही है जिसका बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, “पिछले 40 सालों में करीब 40 निजी बैंक धराशायी हो गए। हम ऐसा जोखिम दोबारा उठाने की अनुमति नहीं देंगे। बैंकों को राष्ट्रीय हित में सार्वजनिक क्षेत्र में जारी रहना चाहिए।”
उनके मुताबिक बैंकों में आज की तारीख में कुल 116 लाख करोड़ रुपये जमा है और इसे निजी हाथों में नहीं सौंपा जा सकता।
उन्होंने कहा कि सरकार 27 सराकरी बैंकों का विलयीकरण करना चाहती है और उन्हें मिलाकर कुल 5 या 6 बड़े बैंक बनाना चाहती है ताकि वैश्विक प्रतियोगिता में टिक सके।
उन्होंने कहा, “हमें कुशल बैंकों की जरूरत है, जरूरी नहीं कि वे बड़े बैंक ही हों। बड़े बैंकों का मतलब मजबूत बैंक नहीं हो जाता। कई देशों में बड़े बैंक भी धराशायी हुए हैं और वे संकट में हैं।”
उन्होंने कहा कि बैंकों के निजीकरण से फंसे कर्जो की उगाही में कोई मदद नहीं मिलेगी जो कि 13 लाख करोड़ रुपये है और हो सकता है कि निजीकरण की आड़ में इन बैंकों को उन कर्जदारों के हवाले ही कर दिया जाए।
उन्होंने आगे कहा कि इन बड़े कर्जदारों से नरमी से निपटने की बजाए उन पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
इस दौरान उद्योग संगठन एसोचैम ने शुक्रवार को यूएफबीयू से हड़ताल खत्म करने की गुजारिश की, क्योंकि इसके कारण करीब 12-15 हजार करोड़ रुपये का लेन-देन प्रभावित हो गया है।
एसोशिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) के महासचिव डी. एस. रावत ने बयान जारी कर कहा, “सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पहले से ही कम मुनाफे में हैं और निजी बैंकों की तुलना में उनकी कहीं ज्यादा पूंजी कर्ज के रूप में फंसी हुई है। ऐसे में यूएफबीयू की हड़ताल से बैंकिंग सेवाओं के ठप्प हो जाने से काफी ज्यादा नुकसान होगा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए बैंकिंग सेक्टर में सुधार वक्त की जरूरत है।”
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