ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन में सामने आया नस्लवाद

नई दिल्ली, 28 जून | ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ (ईयू) से निकलने में सफलता हासिल कर ली है, लेकिन ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि ईयू से निकलने पर देश को 350 अरब पाउंड (लगभग 475 अरब डॉलर) का नुकसान होगा।

ईयू के साथ यात्रा अब तक रोचक रही, लेकिन अब रेलगाड़ी प्लेटफॉर्म पर आकर फंस गई है।

इस जनमत संग्रह में औपनिवेशिक अहंकार ने यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर निकलने में अहम भूमिका निभाई, क्योंकि ब्रिटेन के लोग (जिन्होंने निकलने के पक्ष में मतदान किया) कई मायनों में स्वयं को ठगा-सा महसूस कर रहे थे, कभी प्रवासियों से तो कभी किसी और से। इन सब विरोधाभासों के बीच आरोपों की उंगली एशियाई और अफ्रीकी प्रवासियों पर उठेगी, जो अपना देश छोड़ ब्रिटेन में बस गए हैं।

हालांकि, यह एक और ब्रिक्सटन नहीं हो सकता, लेकिन इससे नस्लवादी गुंडागर्दी को एक प्रोत्साहन मिला है और यह चिंता का एक कारण होगा। नस्लवाद एक बार फिर उभर कर सामने आ गया है।

यह अनाधिकारिक जनमत संग्रह ब्रिटेन के लोगों की मन:स्थिति और टूटे ईयू के साथ आई थकान को स्पष्ट तौर पर जाहिर करता है। ब्रिटेन का आर्थिक केंद्र बनने का सपना ध्वस्त हो गया है। नए युग की राजनीति अधिक संकीर्ण मूल्यों पर टिकी हुई है। राजनीति की छलनी से भावनाओं का रिसाव होता हुआ प्रतीत हो रहा है और सभी पंडितों ने अपने अनुमानों को कमतर आंका। ब्रिटेन के लोग स्वयं के लिए ब्रिटेन चाहते हैं न कि बाहरी लोगों के लिए।

यदि उन्हें इसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े, वे इसके लिए चर्चिल की विचारधारा को एक बार फिर अपनाने को तैयार दिख रहे हैं। ब्रिटिशों की सहनशीलता जवाब दे गई है।

विडंबना यह है कि यह सब ऐसे समय में हो रहा है, जब डोनाल्ड ट्रंप भी ऐसा ही राग अलाप रहे हैं। ब्रिटेन में जनमत संग्रह के नतीजों के ऐलान के दिन ही ओबामा को भी आव्रजन विधेयक पर हार का मुंह देखना पड़ा था। इस विधेयक से अमेरिका में 1.1 करोड़ अवैध प्रवासी प्रभावित होते हैं।

ब्रिटेन का जनमत संग्रह व्यापक नस्लवाद ही है और हमने इस पर 350 अरब पाउंड का दांव लगाया है।

दो चीजें याद रखें, स्कॉटलैंड और आयरलैंड के अपने-अपने एजेंडे थे, लेकिन इन्होंने ईयू में बने रहने का फैसला किया, क्योंकि यह आजादी की ओर एक तार्किक कदम है। इन्हें वोट के पैटर्न से बाहर निकालकर देखें तो आपको दिखाई देगा कि लंदन को छोड़कर अर्धशहरी आबादी ने ईयू से बाहर निकलने का फैसला किया, क्योंकि उन्हें देश में बाहरी लोगों की संख्या बढ़ने का डर था।

यह काफी रोचक है कि आपने ब्रिटेन को ईयू से आजाद कराकर जीत हासिल कर ली, लेकिन तब देखना दिलचस्प होगा जब ईयू अपना दांव चलेगा। यह बड़ी विडंबना है कि ईयू को दिए गए इस झटके के बाद वह अपने मानकों पर काम करेगा और एक प्रभावी संस्था बनेगा।

सच्चाई यह है कि ब्रिटेन हमेशा से ही ईयू का एक उदासीन सदस्य रहा है। अब साम्राज्य ध्वस्त हो गया है। ब्रिटेन एक छोटा देश है और यह या तो राजनीतिक या आर्थिक रूप से एक ढर्रे पर चलकर काम नहीं कर सकता। आव्रजन एक मुख्य मुद्दा नहीं हो सकता, क्योंकि इससे इंग्लैंड अलग-थलग पड़ सकता है। किसी भी मायने में ब्रिटेन के पास जश्न मनाने का मौका नहीं है, क्योंकि किसी भी काम को सफल बनाने के लिए आपको उसे व्यवस्थित तरीके से करना पड़ेगा। लेकिन ब्रिटेन के मामले में ऐसा कम से कम नहीं नहीं हो रहा है।

–आईएएनएस