भदोही में धधकती हैं कच्ची शराब की भट्ठियां

भदोही (उप्र), 19 जुलाई। सरकार और व्यवस्था के नुमाइंदे अपने दायित्वों को खूंटी पर टांग कर खर्राटे भरते हैं, लेकिन जब उत्तर प्रदेश में जहरीली शराब की कोई घटना हो जाती है तो सरकार, पुलिस और आबाकारी विभाग नींद से जागता है और शराब माफियाओं के खिलाफ अभियान चलाता है। एटा में जहरीली शराब से डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मौत के बाद सरकार और प्रशासन की नींद टूटी है। प्रदेशभर के जिलों में शराब की अवैध भट्टियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई है। इस अभियान में प्रदेश भर में हजारों लीटर शराब, उसके केमिकल, बनाने के सामान और लहन बरामद की गई है, लेकिन यह सब दिखावा है। बाद में सब कुछ सामान्य हो जाएगा।

प्रदेश में उन्नाव, वाराणसी, इलाहाबाद, आजमगढ़, भदोही, लखनऊ में जहरीली शराब से सैकड़ों बेगुनाहों की जान जा चुकी है। लेकिन इसके बाद भी प्रदेश के कई गांवों और सबसे अधिक ईंट-भट्ठों पर कच्ची शराब उतारी जाती है। यह सब पुलिस और आबाकारी विभाग के संरक्षण में होता है।

दूसरी बात, इस कारोबारों में इतने रसूखवाले जुड़े होते हैं कि पुलिस उन पर हाथ डालना नहीं चाहती। पुलिस महानिरीक्षक (वाराणसी जोन) के आदेश पर भदोही पुलिस ने भी अवैध शराब के खिलाफ अभियान चलाया, जिसमें काफी मात्रा में कच्ची शराब और उससे संबंधित उपकरण और लोग पकड़े गए।

जिले के कई ईंट-भट्ठों और गांवों में शराब तैयार करने का काला धंधा बेखौफ चलता है। हालांकि आबकारी अधिकारी इन आरोपों और भट्ठियों के होने से इनकार करते हैं।

भदोही और वाराणसी में पांच साल पूर्व जहरीली शराब कांड में एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इस मामले में पुलिस ने बड़ी कार्रवाई भी की थी, लेकिन बावजूद यह अवैध धंधा जारी है। क्यों जारी है, पुलिस और आबकारी विभाग के पास इसका कोई जबाब नहीं है।

कई गांवों और ईंट-भट्ठों पर कच्ची शराब उतारी जाती है। यह शराब ईंट चिमनियों पर काम करने वाले छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्यप्रदेश के मजदूर तबकों की तरफ से बनाई जाती है।

यह सब भट्ठा संचालकों की निगरानी में चलता है। प्रदेश में जब भी जहरीली शराब की घटनाएं होती हैं, सरकार के दबाब में छापेमारी शुरू की जाती है। लेकिन बाद में सब कुछ सामान्य हो जाता है।

आम तौर पर पुलिस हर छापेमारी में अवैध शराब उन्हीं स्थानों पर बरामद करती है, जहां-जहां पूर्व के छापों में बरामद करती रही है। सवाल उठता है कि बार-बार छापेमारी के बाद भी यह गैर कानूनी धंधा क्यों बंद नहीं होता? इसका जवाब पुलिस, आबकारी और संरक्षणदाताओं के पास नहीं होता है।

बाजार के मुकाबले यह शराब अधिक नशीली और सस्ती होती है जिससे इसकी अधिक खपत होती है। कई स्थानों पर केमिकल से जहरीली शराब बनाई जाती है, जिसकी मात्रा अधिक होने पर पीने वालों की जान चली जाती है। सबसे पहले इसका असर आंखों पर होता है।

अभियान में जिले की सुरियावां पुलिस ने एक ईंट-भट्ठे में दोपहर छापा मारकर कच्ची शराब बनाने की अवैध फैक्ट्री पकड़ी। पुलिस से मिली जानकारी में दावा किया गया है कि यहां से 25 लीटर तैयार कच्ची शराब के साथ एक क्विंटल महुवा की लहन बरामद की गई।

इसके अलवा शराब बनाने की पांच भट्ठियां पाई गई। पुलिस बरामद लहन को नष्ट करवा दिया, जबकि इस मामले में झारखंड के लोहरदगा थाने के सेनहा निवासी पुनई नामक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। पुलिस का दावा है कि उसने गैर कानूनी शराब बनाने की बात कबूली है। इसके पहले भी यहां छापे में अवैध शराब पकड़ी जा चुकी है।

इसके अलावा पुलिस ने भदोही कोतवाली के लालीपुर गांव के संदीप नामक युवक के पास से 10 लीटर अवैध शराब बरामद की है। यह बरामदगी सुरियावां रेलवे के पूर्वी फाटक के पास से की गई। ज्ञानपुर कोतवाली पुलिस ने बैराखास गांव से हरिश्चंद्र को 10 लीटर अवैध शराब के साथ गिरफ्तार किया।

इस काले धंधे का सबसे अधिक शिकार आम गरीब परिवार होता है जो शराब की तलब मिटाने के लिए मौत के मुंह में चला जाता है, जबकि इस धंधे से जुड़े मालामाल होते हैं।

वहीं जंगीगंज में कुछ साल पहले एक बंद पड़े सिनेमा घर में पुलिस ने अवैध शराब की फैक्ट्री पकड़ी थी, जिसमें बड़े पैमाने पर शराब गैर कानूनी तरीके से तैयार की जा रही थी। आबकारी और पुलिस विभाग अवैध शराब के संबंध में चाहे जो दावे करे, लेकिन यह गैर कानूनी धंधा जिले में खूब फल-फूल रहा है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

कई बार पुलिस की छापेमारी में दूसरे राज्यों की शराब भी बरामद होती है। इससे यह साफ जाहिर होता है कि इस धंधे से जुड़े लोगों का नेटवर्क कितना तगड़ा है। पुलिस लाख दावा करे, लेकिन यह कारोबार फिलहाल थमने वाला नहीं है, क्योंकि पुलिस की मोटी कमाई का भी यह जरिया बन गया है।

इस पूरे मामले पर जब हमने जिला आबकारी अधिकारी रामसजीवन से संपर्क किया तो उनका दावा था कि जिले में शराब की फैक्ट्रियां नहीं हैं। ईंट-भट्ठों पर छापेमारी की जाती है। इस तरह का धंध महानगरों में होता है।

उन्होंने बताया, “हमारे पास केवल 60 एक्साइज एक्ट का कानून है उससे अधिक हम कुछ कर नहीं सकते हैं। लोग पकड़े जाने के बाद कुछ दिन काम बंद रखते हैं और बाद में जेल से छूटने के बाद फिर शुरू कर देते हैं।”

यह पूरे उत्तर प्रदेश की स्थिति है, जबकि पड़ोसी राज्य बिहार में पूर्ण शराबंदी लागू है।

आबकारी अधिकारी का दावा है कि जिले में 200 से 400 लीटर अवैध शराब की हर माह खपत है, जबकि यह सफेद झूठ है। पुलिस की एक दिन छापेमारी में जहां 45 लीटर तैयार शराब बरामद हुई है। वहीं एक क्विंटल लाहन को पुलिस ने नष्ट किया है। बाहर से जहरीली शराब आने के बाद इस तरह की घटनाएं होती हैं।                            –आईएएनएस