भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) की स्थापना की 88 वीं वर्षगांठ पर जानिये कुछ महत्पपूर्ण बातें ।
भारतीय वायु सेना 8 अक्टूबर, 2020 को अपनी 88 वीं वर्षगांठ मना रही है। वायु सेना की स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को हुई थी।
इस अवसर पर जानिये कि भारत में वायु सेना का विकास किन हालातों में हुआ और भारत के विभाजन के बाद वायुसेना ने सीमा पार के दुश्मनों से मुकाबला करते हुए विषम परिस्थितियों में अपने को सक्षम बनाया और देश की अस्मिता और गौरव की रक्षा करके शानदार इतिहास रचा।
भारतीय वायु सेना : कुछ तथ्य
- भारतीय वायु सेना का आधिकारिक तौर पर गठन 8 अक्तूबर 1932 को किया गया।
- पहली वायुयान उड़ान 1 अप्रैल 1933 को भरी गर्ई।
- तीस के दशक के मध्य में नई दिल्ली के ऊपर फ्लाइट, नं 1 स्क्वाड्रन नेके वापिती वायुयानों (IAF wapiti II) ने उड़ान भरी
- साढ़े चार वर्ष के बाद ‘ए’ फ्लाइट ने बागी भिट्टानी जनजाति के लड़ाकों के विरुद्ध भारतीय सेना की ऑपरेशनो मे सहायता की और उत्तरी वजीरिस्तान में मिरानशाह से पहली बार किसी लड़ाई में भाग लिया।
- अप्रैल 1936 में पुराने वापिती वायुयानों से एक ‘बी’फ्लाइट गठित की गई।
- जून 1938 में ‘सी’फ्लाइट का गठन
- द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू होने तक यही एकमात्र भारतीय वायु सेना फार्मेशन रही
- वायुसेना कार्मिकों की संख्या अब तक बढ़कर 16 अफसरों और 662 वायुसैनिकों तक हो़ गई थी।
- 1939 में चैटफील्ड समिति द्वारा भारत की रक्षा से संबंधित समस्याओं का फिर से मूल्यांकन किया गया।
- भारतीय वायु सेना की एक वॉलंटियर रिजर्व की पांच फ्लाइटें गठित की गई– नं-1 का मद्रास में, नं-2 का मुम्बई में, नं-3 का कोलकाता में, नं-4 का कराची में और नं-5 का कोचीन में। नं-6 फ्लाइट का गठन बाद में विशाखापट्टनम् में किया गया।
- मार्च 1941 के अंत में नं-1 और नं-3 तटीय रक्षा फ्लाइट (सी डी एफ) ने अपने वापिती वायुयान दे दिए जिनकी अगले महीने अप्रैल 1941 पेशावर में गठित की जा रही नं-2 स्क्वाड्रन के लिए मांग की गई थी।
- कोलकाता के दक्षिण में स्थित सुंदरबन डेल्टा क्षेत्र की शगत में प्रयोग किए गए आर्मस्ट्रॉंग व्हिटवर्थ अटलांटा परिवहन वायुयान जारी किए गए।
- भारत में एक पर्शिक्षण ढांचा तैयार किया गया।
- ब्रिटिश इंडिया के सात और विभिन्न रजवाड़ों के दो उड़ान क्लबों में १९४१ के अंत तक ३६४ प्रशिक्षणार्थियों को प्रारंभिक उड़ान पर्शिक्षण का प्रबंध किया गया।
- अगस्त 1941 में कुछ हद तक आधुनिक सुविधाएं शामिल करने की शुरुआत हुई जब द्रिग रोड में नं-1 स्क्वाड्रन में वेस्टलैंड लाईसैन्डर वायुयान शामिल किए जाने लगे
- नवंबर 1941 में यूनिट को पेशावर में बॉम्बे वार गिफ्ट फंड से 12 लाईसैन्डर वायुयानों की स्थापना की गई।
- सितंबर 1941 में नं-2 स्क्वाड्रन वापिती वायुयानों के स्थान पर ऑडैक्स वायुयानों से लैस हो चुकी थी और इसी तरह ऑडैक्स वायुयानों से लैस नं-3 स्क्वाड्रन 01 अक्तूबर को पेशावर में गठित की गई।
- द्वितीय विश्व यु़द्ध के शुरू में भारतीय वायु सेना वॉलंटियर रिजर्व (वी आर) को अब नियमित भारतीय वायु सेना में शामिल कर लिया गया।
- दिसंबर 1941 जापान के युद्ध में शामिल होने पर नं-4 फ्लाइट को चार वापिती और दो ऑडैक्स वायुयानों के साथ मॉलमीन से ऑपरेट करने के लिए बर्मा भेज दिया गया।
- दुर्भाग्यवश फ्लाइट के छह में चार वायुयान जापान द्वारा की गई बमबारी में नष्ट हो गए और जनवरी 1942 के अंत में मॉलमीन में नं-3 फ्लाइट ने नं-4का स्थान ले लिया।
- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति तक रॉयल इंडियन एयर फोर्स में कार्मिकों की संख्या बढ़कर 28,0500 हो गई थी इसमें लगभग 1600 अफसर शामिल थे।
- अगस्त 1945 में नं. 4 स्क्वाड्रन को जापान में ब्रिटिश राष्ट्रमंडल कब्जा जमाने वाले बलों की एक घटक यूनिट नामित किया गया और अक्तूबर में इसे Spitfire Vllls वायुयानों के स्थान पर Mk XlVs वायुयानों से लैस किया गया
- ये स्क्वाड्रन 23 अप्रैल 1946 को एच एम एस वेन्जिएंस वायुयानों द्वारा जापान पहुंची।
- वर्ष 1945 के अंत से हरिकेन वायुयानों से लैस आर आई ए एफ की योजना लड़ाकू स्क्वाड्रनें कोहट, सामुंगली और रिसालपुर में स्पिटफायर वायुयानों से लैस होने लगीं
- वर्ष 1946 के मध्य तक आर आई ए एफ का समस्त लड़ाकू बल स्पिटफायर वायुयानों से लैस हो गया।
- वर्ष 1946 में आर आई ए एफ की पहली परिवहन यूनिट नं. १२ स्क्वाड्रन की स्थापना भी हुई जिसका दिसंबर १९४५ में कोहट में स्पिटफायर वायुयानों के साथ गठन किया गया
- वर्ष 1946 के अंत में पानागढ़ में इसे सी-47 डकोटा वायुयान प्रदान किए गए।
- लड़ाकू स्क्वाड्रनों को टेम्पेस्ट II से लैस करने का निर्णय भी लिया गया और 1946 के आरंभ में इस निर्णय पर काम करना शुरू किया गया।
- पहले कोलार स्थित नं.3 स्क्वाड्रन और इसके बाद 1946 में नं. 10 स्क्वाड्रन इन वायुयानों से लैस की जाने वाली स्क्वाड्रनें बनीं।
- अक्तूबर 1946 की स्थिति के अनुसार उन्होंने आर आई ए एफ की मौजूदा दस स्क्वाड्रनों का विस्तार करके इसे बीस लड़ाकू, बमबारी और परिवहन स्क्वाड्रनों वाले एक संतुलित बल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई। परंतु तेजी से बदल रही राजनीतिक स्थिति के कारण उत्पन्न घटनाक्रम में भारत के रक्षा क्षेत्र के सरोकार से संबंधित निर्णय स्वतंत्र भारत की नई सरकार के लिए छोड़ दिए गए।
- जापान से भारत वापस आने पर नं. 4स्क्वाड्रन टेम्पेस्ट II वायुयानों पर परिवर्तित हो गई और 1947 के ग्रीष्मकाल में नं.7 और 8 स्क्वाड्रन ने अपने स्पिटफायर वायुयानों को छोड़कर और अधिक प्रभावशाली टेम्पेस्ट लड़ाकू वायुयानों को अपनाया।
- इसी समय नं. 1 और 9 स्क्वाड्रनों ने भी टेम्पेस्ट II वायुयानों को अपना लिया लेकिन 15 अगस्त 1947 को भारत और इसकी सशस्त्र सेनाओं के विभाजन के साथ ही ये यूनिटें भी हट गई
- विभाजन के साथ ही टेम्पेस्ट लड़ाकू वायुयान नवगठित रॉयल पाकिस्तान एयर फोर्स को हस्तांतरित कर दिए गए।
- विभाजन के समय आर आई ए एफ के प्रमुख घटक टेम्पेस्ट II वायुयानों से लैस नं. 3,4,7,8 और 10 स्क्वाड्रन, स्पिटफायर वायुयानों से लैस नं.2स्क्वाड्रन, सी – 47 वायुयानों से लैस नं. 12 स्क्वाड्रन और नं. 1 एयर ऑब्जर्वेद्गान फ्लाइट थीं जिसकी ए ओ पी ऑस्टर 4, 5 और6 वायुयानों के साथ स्क्वाड्रनों की स्थापना स्वतंत्रता के साथ-साथ हुई।
- द्रिग रोड में स्पिटफायर वायुयानों की जगह सी-47 वायुयानों से लैस होने की प्रक्रिया में शामिल नं. 6स्क्वाड्रन हट गई और इसके परिवहन वायुयान पाकिस्तान को हस्तांतरित कर दिए गए।
- देश के विभाजन के परिणामस्वरूप आर आई ए एफ को कई स्थायी बेस और अन्य स्थापनाएं गंवानी पड़ीं और विभाजन से मिले जख़्म को भरने का इसे कोई समय भी नहीं मिला ।
- असामन्य परिस्थिति में संसाधनों के बँट जाने के बावजूद आज़ादी के तुरंत बाद ही नवगठित भारतीय वायुसेना को तुरंत तत्परता से बिना किसी योजना या टोह के 27अक्तूबर 1947 को नं. 12 स्क्वाड्रन ने पालम से पहले सिख योद्धाओं को हवाई मार्ग से ले जाकर श्रीनगर की कठोर और धूल-मिट्टी भरी हवाई पट्टी पर उतारने का उल्लेखनीय कार्य शुरू किया।
- ३० को अंबाला स्थित एडवांस्ड फ्लाइंग स्कूल से स्पिटफायर वायुयानों की पहली टुकड़ी श्रीनगर पहुंची और पट्टन से आगे हमलावरों पर छिपकर गोलाबारी करने में जुट गई। एक सप्ताह के भीतर नं. ७ स्क्वाड्रन के टेम्पेस्ट वायुयान द्योलातांग की लड़ाई में निर्णायक भूमिका में आ गए और यहां घुसपैठियों को आगे बढ़ने से रोक दिया गया।
- लड़ाई 15 महीनों तक जारी रही और पूरे समय इसमें आर आई ए एफ की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रही।
- 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम हुआ, लेकिन इस पूरी अवधि में लगातार ओपरेशन संबंधी भूमिका में लगे रहने के बावजूद इसका पुनर्गठन और आधुनिकीकरण निर्बाध रूप से जारी रहा।
- इसी दौरान नई दिल्ली में वायु सेना मुख्यालय की स्थापना की गई।