नई दिल्ली, 27 जून| अमेरिका ने सोमवार को फिर कहा कि वह भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में शामिल करने का समर्थन करता है। उसका यह बयान पिछले हफ्ते सियोल में संपन्न एनएसजी के पूर्ण अधिवेशन में भारत की सदस्यता की कोशिश नाकाम होने के बाद आया है। भारत में अमेरिका के राजदूत रिचर्ड वर्मा ने भारत-अमेरिका के व्यापारिक रिश्ते पर एक चर्चा के दौरान यह बात कही।
उन्होंने कहा, “भारत का रिकार्ड मजबूत है और यह एनएसजी में शामिल होने का अधिकार रखता है। यही कारण है कि बराक ओबामा प्रशासन ने हाल में सियोल में संपन्न एनएसजी के पूर्ण अधिवेशन में भारत की सदस्यता सुनिश्चित करने के लिए मिलकर प्रयास किया। इनमें ह्वाइट हाउस और विदेश विभाग के अधिकारी भी शामिल हैं।”
उन्होंने कहा, “हमें निराशा हुई कि भारत हाल के सत्र में इसमें शामिल नहीं हो पाया। लेकिन, हम भारत और एनएसजी के सभी सदस्यों के साथ रचनात्मक ढंग से काम करते रहेंगे ताकि आने वाले महीनों में भारत इसमें शामिल हो जाए।”
राजदूत ने कहा, “छह साल पहले राष्ट्रपति ओबामा ने पहली बार भारत को एनएसजी की सदस्यता देने के लिए समर्थन का इजहार किया था। उसी समय से हम लोगों ने सदस्यता के मामले में सहायता करने के लिए भारतीय समकक्षों एवं एनएसजी के सदस्यों के साथ काम किया है।”
एनएसजी की सदस्यता के लिए भारत के ताजा प्रयास को चीन ने इस आधार पर नाकाम कर दिया कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनटीपी) पर हस्ताक्षर नहीं किया है। एनएसजी की सदस्यता से भारत को परमाणु सामग्री और प्रौद्योगिकी के व्यापार की अनुमति मिल जाती।
इस बीच, भारत सोमवार को मिसाइल टेक्नोलोजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) का 35वां सदस्य बन गया। यह उन देशों का संघ है जो मिसाइल और व्यापक संहार के स्वचालित हथियारों की आपूर्ति के प्रसार को नियंत्रण करता है।
भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग का हवाला देते हुए वर्मा ने कहा कि दोनों पक्ष छह वेस्टिंगहाउस रिएक्टर बनाने की की एक परियोजना पर आगे बढ़े हैं जो करीब छह करोड़ लोगों के लिए बिजली पैदा करेगी।
उन्होंने कहा कि करीब 10 साल से लंबित इस परियोजना के फलीभूत होने के करीब देखकर हम खुश हैं।
भारत-अमेरिका के व्यापार की कुछ बाधाओं के संदर्भ में वर्मा ने द्विपक्षीय निवेश समझौता (बीआईटी) को पूरा करने के लिए आगे बढ़ने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि करीब आठ साल बाद भी हमारे समझौते के लिए हमारे प्रयास जारी हैं। मुझे डर है कि चीजें थोड़ी और मुश्किल हो गई हैं।
उन्होंने कहा कि भारत के हाल के बीआईटी के मसौदे में उस ऊंचे मानदंड को छोड़ दिया गया है, जो हम लोगों ने भारत को अन्य करारों में करते देखा था। उदाहरण के तौर पर जापान या दक्षिण कोरिया के साथ हुए करारों को देखा जा सकता है।
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