भारत और विश्व स्वास्थ्य संगठन के बीच ऐतिहासिक समझौता

जिनेवा, 14 मई (जनसमा)। आयुष मंत्रालय, भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने परंपरागत और पूरक चिकित्सा में गुणवत्ता, सुरक्षा और सेवा प्रावधान की प्रभाविता को बढ़ावा देने में सहयोग के लिए एक ऐतिहासिक परियोजना सहयोग समझौता (पीसीए) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस पीसीए पर आयुष मंत्रालय में सचिव अजीत एम शरण और डब्ल्यूएचओ सहायक महानिदेशक, स्वास्थ्य प्रणालियां और नवाचार, डॉ मैरी किनी ने 13 मई, 2016 को जिनेवा में हस्ताक्षर किए।

इस ऐतिहासिक समझौते पर आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीपाद येसो नाइक और विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ मार्गरेट चान की उपस्थिति में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुख्यालय में हस्ताक्षर हुए।

उन्होंने भारत और विदेशों में परंपरागत चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा दी गई उच्च प्राथमिकता का उल्लेख करते हुए भारत में राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों और सार्वभौम स्वास्थ्य कवरेज के लिए आयुष को क्रियात्मक रूप से एकीकृत करने के लिए की गई अनेक पहलों का जिक्र किया।

नाइक ने विश्व स्वास्थ्य संगठन परंपरागत चिकित्सा रणनीति 2014-2023 की तरह देश में भारत द्वारा की गई पहलों और गतिविधियों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत ने वास्तव में बहुलवादी स्वास्थ्य देखभाल वितरण प्रणाली को अपनाकर विशिष्ट उदाहरण स्थापित किया है जो प्रत्येक मान्यता प्राप्त चिकित्सा प्रणाली को विकसित होने और उसमें प्रेक्टिस करने की अनुमति देती है ताकि एकीकृत और समग्र स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं उपलब्ध हो सकें।

पीसीए को विश्व स्वास्थ्य संगठन और आयुष, भारत 2016-2020 के परंपरागत और पूरक चिकित्सा के क्षेत्र में गुणवत्ता, सुरक्षा और सेवा के प्रावधान की प्रभाविता को बढ़ावा देने के बारे में सहयोग’ का शीर्षक दिया गया है। इस का उद्देश्य ‘परंपरागत और पूरक चिकित्सा रणनीति : 2014-2023’ के विकास और कार्यान्वयन में डब्ल्यूएचओ की मदद करना है और यह अनुबंध चिकित्सा की भारतीय प्रणालियों को वैश्विक रूप से बढ़ावा देने में भी योगदान देगा।

2016-2020 अवधि के लिए पीसीए पहली बार योग में प्रशिक्षण के लिए तथा आयुर्वेद, यूनानी और पंचकर्म में प्रेक्टिस के लिए डब्ल्यूएचओ बेंचमार्क दस्तावेज़ प्रदान करेगा। इससे परंपरागत चिकित्सा उत्पादों और राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में उनके एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए नियामक ढाँचे स्थापित करने सहित परंपरागत चिकित्सा की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभाविता को सुनिश्चित करने में राष्ट्रीय क्षमताओं को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा।