एस्ट्रोसैट

भारत के एस्ट्रोसैट ने अति तीव्र परा बैंगनी प्रकाश में आकाशगंगा की खोज की

भारत के एस्ट्रोसैट (AstroSat) ने अति तीव्र परा-बैंगनी प्रकाश में पहले की आकाशगंगाओं में से एक आकाशगंगा की खोज की तथा एक महत्‍वपूर्ण उपलब्धि अर्जित की है।

भारत का पहला बहु तरंगदैर्घ्‍य उपग्रह, एस्ट्रोसैट में पाँच अद्वितीय एक्स-किरण तथा पराबैंगनी दूरबीन अनुबद्ध रूप से कार्यरत हैं तथा उसने पृथ्वी से 9.3 अरब प्रकाश वर्षों की दूरी पर स्थित ए.यू.डी.एफ.एस.01 नामक आकाशगंगा से अति तीव्र पराबैंगनी किरण का संसूचन किया है।

खगोल विज्ञान एवं खगोल भौतिकी अंतर विश्वविद्यालय केंद्र (आइ.यू.सी.ए.ए), पुणे में डॉ. कनक साहा के नेतृव में खगोलशास्त्रियों के अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा यह खोज की गई है तथा यह नेचर एस्ट्रनॉमी में उल्‍लेखित है। इस टीम में भारत, स्विटज़रलैंड, फ्रांस, यू.एस.ए., जापान तथा नेदरलैंड से वैज्ञानिक शामिल थे।

बिग-बैंग के पश्चात ब्रम्हांड, कणों का ऊष्म तरल द्रव था (जैसे: प्रोटॉन, न्यूट्रॉन तथा इलेक्ट्रॉन)। जैसे ही ब्रम्हांड शीतल होने लगा प्रोटॉन और न्यूट्रॉन हाइड्रोजन के आयनन परमाणुओं के साथ जुड़ने लगे (और संभवत: कुछ हीलियम)। हाइड्रोजन और हीलियम के ये आयनन परमाणु निष्प्रभावी परमाणु बनने के लिए इलेक्ट्रॉन के साथ जुड़ गए – जिससे पहली बार प्रकाश मुक्त रूप से प्रवाहित हुआ, क्‍योंकि इस प्रकाश में मुक्त इलेक्ट्रॉनों का प्रकीर्णन नहीं था। यह ब्रम्हांड अपारदर्शी नहीं रहा। लेकिन वहाँ पर न तारे थे और ना ही आकाशगंगाएं और ब्रम्हांड अंधकारमय ही था। बिग-बैंग के पश्चात कुछ सौ मिलियन वर्षों में पहली बार तारों और आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ तथा उनमें से निकलने वाली ऊर्जा/फोटॉनों ने पुन: प्रोटॉनों और इलेक्ट्रॉनों में परिवर्तित होने के लिए हाइड्रोजन और हीलियम का आयनन किया। इस काल को सामान्यरूप से पुनरायननीकरण युग कहा जाता है।

डॉ. साहा और उनके टीमने एस्ट्रोसैट के माध्यम से हब्बल तीव्र गहन क्षेत्र में स्थित आकाशगंगा का प्रेक्षण किया। चूंकि, पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा पराबैंगनी विकिरण अवशोषित किए जाते हैं, अत: इसका केवल अंतरिक्ष से ही प्रेक्षण किया जाता है। डॉ. साहा ने बताया कि “इस अद्वितीय उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए एस्ट्रोसैट/यू.वी.आइ.टी. सक्षम रहा, क्योंकि हब्बल अंतरिक्ष दूरबीन की तुलना में /यू.वी.आइ.टी. संसूचक में पृष्ठभूमिक रव बहुत ही कम है।” प्रोफेसर टंडन ने कहा कि “इस अत्यंत कमजोर स्रोत के संसूचन की कुंजी उत्तम स्थानिक विभेदन और उच्च संवेदन, दशकों से यू.वी.आइ.टी. मुख्य टीम की कड़ी मेहनत का योगदान था।”

खगोलशास्त्री आरंभिक ब्रम्हांड का पुनरायनन करने वाले स्रोतों को ढूंढ रहे हैं। इसके लिए पहले खगोलिय पिंड विशेषरूप, से नवजात लघु आकाशगंगाओं पर प्राय: संदेह है। लेकिन इन स्रोतों से आयनन विकिरण को प्रेक्षित करना लगभग असंभव है। होस्ट आकाशगंगा से तीव्र पराबैंगनी फोटॉनों के भागों का बाहर निकलना तथा उसे पृथ्वी पर स्थित दूरबीन द्वारा देखे जाने की संभाव्यता प्रायोगिक रूप से शून्य है, क्योंकि ये फोटॉन आकाशगंगा की गैस अथवा आकाशगंगा के इर्द-गिर्द की गैस अथवा आकाशगंगा और पृथ्वी के बीच के पदार्थ द्वारा अवशोषित किए जा सकते हैं।

सह लेखक डॉ. आकियो इनोऊ, प्रोफेसर, वासेडा, यूनर्विसीटी, जापान ने कहा कि, लेकिन यह एक रहस्य है कि कैसे कुछ फोटॉन इन सभी बाधाओं को पार कर लेते हैं और पृथ्वी पर पहुँच जाते हैं। अंतरमंदाकिनीय माध्यमों में होने वाला अवशोषण इतना तीव्र होता है कि पुनरायनन युग में आयनन फोटॉनों का सीधा प्रेक्षण असंभव है। इसके पश्चात के युग में, अंतरमंदाकिनीय अवशोषक घट गए और हमें ऐसे फोटॉनों का संसूचन करने का अवसर प्राप्त हुआ, लेकिन यह अभी भी एक लॉटरी के समान है।

यू.वी.आई.टी. प्रेक्षण के साथ, ए.यू.डी.एफ.एस.01 भारी आकृति वाला तथा 60 नैनोमीटर पर रिसनेवाले आयनन विकिरण सहित आकाशगंगा का उदाहरण बना। ए.यू.डी.एफ.एस.01 इस अति तीव्र पराबैंगनी क्षेत्र, जहाँ तारकीय मॉडल सबसे ज्‍यादा बेमेल हैं, प्रेक्षणात्‍मक रुकावट पैदा करता है। जेनेवा वेधशाला, स्विटजरलैंड की प्रोफेसर डॉ. ऐनी वरहैम का कहना है कि आगे की खोजों से, ऐस्‍ट्रोसैट ब्रहमांडीय पुन: आयनन के परिप्रेक्ष्‍य को हमारी समझ को परिष्किृत बनाएगा।

ए.यू.डी.एफ.एस.01 रेडशिफ्ट रेंज (0.4 से 2.5) के मध्‍य में है, जहाँ पहले किसी समान स्रोत का पता नहीं लगाया गया था। यह आकाशगंगा वर्तमान में न केवल निम्‍न तथा उच्‍च रेडशिफ्ट क्षेत्र की दूरी को कम कर रहा है, बल्कि यह अति तीव्र पराबैंगनी तंरगदैर्घ्‍य में तारों को सृजित करने वाली आकाशगंगा की नई खोज की ओर एक शुरुआत भी है। 2.5 से बड़े रेडशिफ्ट के ब्रहमांड में फोटॉन के आयनन के प्रेक्षण के लिए बृहत द्वारक केक, वी.एल.टी. तथा सुबारु जैसे भूमि आधारित दूरबीन का प्रयोग किया जा सकता है। परंतु, इस रेडशिफ्ट से नीचे, ऐस्‍ट्रोसैट एक अद्भुत सुविधा बन जाती है। आई.यू.सी.ए.ए. के एक पोस्‍ट डॉक्‍टोरल अध्‍येता डॉ. अभिषेक पासवान, जोकि सह लेखक हैं, का कहना है कि “पुन: आयनन के युग की गहराइयों को प्रकट करने में वास्‍तव में यू.वी.आई.टी. एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभायेगा”। अंशुमान बोरगोहेन, जोकि सह लेखक एवं तेज़पुर विश्‍वविद्यालय में पी.एच.डी. छात्र हैं, का कहना है कि “ऐसे टीम में शामिल होना मेरा सौभाग्‍य है, जिसने इतनी महत्‍वपूर्ण खोज की है। यह तथ्‍य कि भारत में उपलब्‍ध सुविधाओं को प्रयोग करके हम इतना उत्‍कृष्‍ट कार्य कर सकते हैं, सच में देश के युवा वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है”।

डॉ. सोमक रायचौधरी, जोकि आई.यू.सी.ए.ए. के निदेशक हैं, का कहना है कि “यह ब्रह्माण्ड के अंधकारमय युग के खत्‍म होने तथा ब्रहमांड में प्रकाश की उपस्थिति को बताने वाली एक महत्‍वपूर्ण कड़ी है। हमें यह जानने की आवश्‍यकता है कि इसकी शुरुआत कब हुई, परंतु प्रकाश के आरंभिक स्रोतों के बाद में पता लगाना बहुत मुश्किल था। मुझे बहुत गर्व है कि मेरे सहकर्मियों ने इतनी महत्‍वपूर्ण खोज की है”।

आई.यू.सी.ए.ए. के डॉ. साहा, जिन्‍होंने इस अनुसंधान की अगुवाई की, का कहना है कि “हमें पता था कि अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय को यह समझाना कि यू.वी.आई.टी. ने इस आकाशगंगा से अति तीव्र पराबैंगनी उत्‍सर्जन को रिकॉर्ड किया है, जबकि उससे भी अधिक शक्तिशाली एच.एस.टी. यह नहीं कर पाए, एक कठिन कार्य होगा”। एस्‍ट्रोसैट द्वारा ए.यू.डी.एफ.एस.01 की यह खोज हमें आशावान बनाती है तथा शायद यह बस शुरुआत है।

यह लेख https://www.nature.com/articles/s41550-020-1173-5 पर उपलब्‍ध है।

यू.वी.आई.टी. तथा एस्‍ट्रोसैट पर और अधिक जानकारी

एस्‍ट्रोसैट को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा पाँच प्रमुख वैज्ञानिक उपकरणों सहित 28 सितंबर 2015 को प्रमोचित किया गया था। 28 सेंमी व्‍यास वाला यू.वी.आई.टी., जोकि प्रेक्षण के विस्‍तृत क्षेत्र सहित एक साथ दूर तथा निकट पराबैंगनी बैंडों में प्रतिबिंबन में सक्षम है, का विकास इसरो के पूर्ण सहयोग से श्‍याम टंडन, पूर्व अवकाश प्राप्‍त प्रोफेसर, आई.यू.सी.ए.ए. के नेतृत्‍व में भारत के आर्इ.आर्इ.ए., आई.यू.सी.ए.ए. तथा टी.आई.एफ.आर. टीमों तथा कनाडा के सी.एस.ए. द्वारा किया गया था।

अनुसंधान टीम (देश-वार एक साथ समूह के तौर पर)

कनक साहा, श्‍याम टंडन एवं अभिषेक पासवान (सभी आई.यू.सी.ए.ए., भारत से) अंशुमन बोरगोहेन (तेज़पुर विश्‍वविद्यालय, भारत); ऐन वरहेम, चार्लाट साइमंड्स एवं डैनियम सैहरीर (सभी जेनेवा वेधशाला, स्विटजरलैंड से); फ्रैंककॉइज कॉम्‍बस (ऑबज़रवेटरी टी पेरिस, एल.ई.आर.एम.ए., फ्राँस); माइकल सत्‍वोस्‍की (मिनेसोटा स्‍टेट यूनिवर्सिटी-मेनकाटो, यू.एस.ए.); ब्रूस एल्मेग्रीन (आइ.बी.एम. रिसर्च डिवीजन, यू.एस.ए.); डेबरा एल्मेग्रीन (डिमार्टमेंट ऑफ फिजिक्‍स एंड एस्‍ट्रोनॉमी, वसार कॉलेज, यू.एस.ए.); एकिओ इनोव (वासेडा रिसर्च इंस्‍टीट्यूट ऑफ साइंस एंड इंजीनियरिंग, जापान), माइके पालवास्‍ट (लेडियन ऑब्जर्वेटरी, दी नीदरलैंडस)।

इमेज के बारे में: ”एस्‍ट्रोसैट पराबैंगनी गहन क्षेत्र (ए.यू.डी.एफ.) से लिये गए चार संयुक्‍त रंगों वाला प्रतिबिंब। लाल और हरा रंग का प्रतिबिंब एच.एस.टी. से लिया गया, जबकि फिरोजी और गहरे नीले रंग का प्रतिबिंब एस्‍ट्रोसैट से लिया गया। ए.यू.डी.एफ.01 वर्गागार बॉक्सों में है। नीचे बॉक्‍सों में रेखांकित प्रतिबिंब एच.एस.टी. और एस्‍ट्रोसैट से लिये गए हैं। प्रतिबिंब साभार: कनक साहा (आई.यू.सी.ए.ए.)

(भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ‘ISRO’ द्वारा इस रिपोर्ट को बिना संपादन के अपलोड किया गया है -संपादक)