भारत चीन समझौता : नई दिल्ली, 12 फरवरी। रक्षा मंत्रालय ने आज भारत और चीन की सेनाओं बीच हुए समझाौते के बारे में एक बयान जारी कर कहा है कि भारत ने इस समझौते के परिणामस्वरूप किसी भी क्षेत्र को नहीं खोया है।
इसके विपरीत, भारत ने एलएसी का पालन और सम्मान सुनिश्चित किया है तथा यथास्थिति में एकतरफा ढंग से किए गए किसी भी बदलाव को रोका है ।
बयान इस प्रकार है:
रक्षा मंत्रालय ने पैंगोंग त्सो में वर्तमान में जारी फौजों की वापसी के संबंध में मीडिया और सोशल मीडिया पर बढ़ा-चढ़ा कर पेश की जा रही कुछ ग़लत और भ्रामक टिप्पणियों पर संज्ञान लिया है।
सबसे पहले रक्षा मंत्रालय यह दोहराता है कि रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने संसद के दोनों सदनों में दिए गए अपने वक्तव्यों में तथ्यात्मक स्थिति की स्पष्ट सूचना दे दी है।
हालांकि, ग़लत ढंग से समझी गई सूचना के कुछ दृष्टांतों को देखते हुए उनका खंडन करना एवं उनके बारे में स्थिति स्पष्ट करना आवश्यक है जिनको मीडिया एवं सोशल मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।
भारतीय क्षेत्र फिंगर 4 तक होने का दावा स्पष्ट रूप से ग़लत है। भारत का क्षेत्र भारत के नक्शे द्वारा दर्शाया गया है और इसमें 1962 से चीन के अवैध कब्जे में वर्तमान में 43,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक का क्षेत्र शामिल है।
यहां तक कि भारतीय धारणा के अनुसार वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) भी फिंगर 8 पर है, फिंगर 4 पर नहीं। यही कारण है कि भारत ने चीन के साथ मौजूदा समझ सहित फिंगर 8 तक गश्त करने का अधिकार लगातार बनाए रखा है।
पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर दोनों पक्षों की स्थायी चौकियां पुरानी तथा सुस्थापित हैं। भारत की ओर से यह फिंगर 3 के पास धन सिंह थापा पोस्ट और चीन की ओर से फिंगर 8 के पूर्व में है। वर्तमान समझौते में दोनों पक्षों द्वारा आगे तैनाती की समाप्ति और इन स्थायी चौकियों पर निरंतर तैनाती का प्रावधान है।
रक्षा मंत्री के वक्तव्य में यह भी स्पष्ट किया गया कि हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और देपसांग सहित शेष समस्याओं का समाधान किया जाना है। इन सभी शेष मुद्दों को पैंगोंग त्सो में फौजी डिसइंगेजमेंट पूरा होने के 48 घंटे के भीतर उठाया जाना है।
भारत चीन समझौता के संदर्भ में यह भी कहा गया है कि पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में हमारे राष्ट्रीय हित और क्षेत्र की प्रभावी सुरक्षा इसलिए हुई है क्योंकि सरकार ने सशस्त्र बलों की क्षमताओं पर पूरा विश्वास जताया है। जो लोग हमारे सैन्य कर्मियों द्वारा बलिदान देकर अर्जित की गई उपलब्धियों पर संदेह करते हैं, वे वास्तव में उनका अनादर कर रहे हैं।
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