नई दिल्ली, 13 अप्रैल (जनसमा)। मंगलवार को नई दिल्ली में आयोजित टाईगर रेंज देशों के मंत्रियों की बैठक के उदघाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अतिथियों को संबोधित करते हुए कहा, “भारत में बाघ एक वन्य जीव से कहीं अधिक है। हमारे मिथकों में मां प्रकृति की प्रतीक मां दुर्गा को बाघ पर सवार दिखाया गया है। वास्तव में हमारे अधिकतर देवता व देवियां किसी न किसी प्राणी, वृक्ष या नदी से जुड़े हैं। कभी-कभी तो इन प्राणियों को देवता और देवियों के बराबर रखा जाता है। बाघ हमारा राष्ट्रीय प्राणी है। मुझे विश्वास है कि बाघ श्रृंखला देशों में भी बाघ से जुड़ी सांस्कृतिक गाथा और विरासत होगी।
फोटोः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 12 अप्रैल, 2016 को नई दिल्ली में बाघ संरक्षण पर तीसरे एशिया मंत्रीस्तरीय सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर। इस अवसर पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर भी उपस्थित हैं।
बाघों की लुप्त हो रही प्रजाति और उनके संरक्षण के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने कहा, “बाघ ने हम सभी को एक साथ ला दिया है। यह बैठक प्रमुख विलुप्त प्रजाति के संरक्षण पर विचार के लिए महत्वपूर्ण है। आपकी उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि प्रजातियों की इस छतरी को आपका देश कितना महत्व देता है। मैं बाघ श्रृंखला देशों द्वारा बाघ संरक्षण कार्य में किए गए प्रयासों की सराहना करता हूं। इस प्रयास के लिए मैं आप सबका अभिनंदन करता हूं। विश्व बाघ कार्यक्रम तथा परिषद के जरिये किए जा रहे प्रयासों की भी प्रशंसा करता हूं।”
उन्होंने कहा कि वास्तव में बाघ संरक्षण के अनेक लाभ हैं, लेकिन इनका पूरा लाभ उठाया नहीं जा सका है। हम आर्थिक संदर्भ में इसकी मात्रा निश्चित नहीं कर सकते। प्रकृति का मूल्य लगाना कठिन है। प्रकृति की तुलना धन से नहीं की जा सकती क्योंकि प्रकृति ने वन्य प्राणियों को आत्म रक्षा की शक्ति दी है। इसलिए यह हमारा दायित्व है कि हम उनका संरक्षण करें।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, “हम सभी जानते हैं कि पारिस्थितिकी पीरामिड तथा आहार श्रृंखला में बाघ सबसे बड़ा उपभोक्ता है। बाघ के लिए बड़ी मात्रा में आहार और अच्छा वन आवश्यक है। इस तरह बाघ की सुरक्षा करके हम समूचे पारिस्थितिकी प्रणाली (ईको सिस्टम) तथा पारिस्थिकी की रुक्षा करते हैं। ये मानव जाति के कल्याण के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।”
मोदी ने कहा कि भारत में बाघ संरक्षण का सफल ट्रैक रिकार्ड रहा है। हमने 1993 में बाघ परियोजना लॉंच की। इसका कवरेज प्रारंभिक 9 बाघ संरक्षित क्षेत्रों से बढ़कर 49 बाघ संरक्षित क्षेत्र हो गया है। बाघ सरंक्षण भारत सरकार तथा राज्यों की सामूहिक जिम्मेदारी है। मैं इस दिशा में अपनी राज्य सरकारों के प्रयासों की सराहना भी करता हूं, लेकिन सरकार के प्रयास तब तक सफल नही हो सकते जब तक उन्हें जनता का समर्थन न हो। हमारी सांस्कृतिक विरासत करुणा और सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करती है और इसने बाघ परियोजना की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे सामूहिक प्रयासों के कारण बाघों की संख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह संख्या 2010 के 1706 से बढ़कर 2014 में 2226 हो गई।
उन्होंने कहा कि मेरा दृढ़ विश्वास है कि बाघ संरक्षण और प्रकृति संरक्षण विकास की राह में बाधा नहीं हैं। दोनों पूरक रूप में साथ-साथ चल सकते हैं। हमारी आवश्यकता यह है कि हम उन क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति को नया रूप दें जिन क्षेत्रों का लक्ष्य बाघ संरक्षण नहीं है। यह कठिन कार्य है, लेकिन किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा, “मुझे विश्वास है कि हम संरक्षण के लिए उद्योगजगत की सक्रिय भागीदारी के लिए रूपरेखा बना सकते हैं। प्राकृतिक पर्यावरण प्रणाली भंडार का संकेत देने वाली पूंजी को अन्य पूंजी उत्पादों के बराबर माना जाना चाहिए। हमें अपनी अर्थव्यवस्था को प्राकृतिक संसाधनों तथा पर्यावरण प्रणाली सेवाओं की बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में देखने की जरूरत है।”
उन्होंने कहा कि देश के रूप में वैश्विक बाघ आबादी का 70 प्रतिशत हमारे पास है। भारत अन्य बाघ श्रृंखला देशों की पहलों का संपूरक बनने के लिए संकल्पबद्ध है। चीन, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के साथ हमारी द्विपक्षीय व्यवस्थाएं हैं। हम बाघ के लिए अपनी पारस्परिक चिंता के विषयों के हल का प्रयास जारी रखते हैं।
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