harkhand Chief Minister Raghubar Das. (File Photo: IANS)

भूमि अधिग्रहण को लेकर सुलग रहा ‘निवेशक अनुकूल’ झारखंड

झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास जिस समय अमेरिका में निवेशकों को राज्य में निवेश के लिए आमंत्रित करने गए थे, उसी समय राज्य हिंसा से ग्रस्त था और एनटीपीसी की पनकरी बरवाडीह परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे चार ग्रामीणों की हत्या कर दी गई थी।

सरकारी रोड शो या निवेश अभियान के दावे चाहे जो हों, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ग्रामीण सरकारी और अन्य परियोजनाओं के लिए अपनी पैतृक भूमि को अधिग्रहित होने से बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

कुल मिलाकर ‘निवेशक अनुकूल’ झारखंड में बेहद अराजकता और अशांति की स्थिति है और राज्य के लोग उसे ‘झारखंड का सिंगूर’ कहने को बाध्य हैं, जो कि पड़ोसी राज्य बंगाल में टाटा की छोटी कार परियोजना नैनो के लिए तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार द्वारा किए गए भूमि अधिग्रहण के विरोध का प्रतीक है। इसी सिंगूर के कारण बंगाल में तीन दशकों से सत्ता पर काबिज रहे वाम मोर्चा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था।

एक अक्टूबर को एनटीपीसी के बड़कागांव परियोजना स्थल पर चार ग्रामीणों की हत्या ने ग्रामीणों के रोष को बढ़ा दिया है और इसके चलते विपक्षी पार्टियों को स्थिति का लाभ उठाने का मौका मिल गया है। ठीक उसी तरह जिस तरह सिंगूर में हुआ था और टाटा को अपनी छोटी कार परियोजना वापस लेनी पड़ी थी।

घटना के कारण झारखंड पुलिस को फिर से बर्बर और असंवेदनशील होने का तमगा मिला है, क्योंकि एक महीने के भीतर ही यह दूसरा मौका था, जब पुलिस ने लोगों पर गोलियां बरसाई।

पिछली घटना में रामगढ़ जिले के गोला में भी भूमि अधिग्रहण के मुद्दे को लेकर दो लोग मारे गए थे।

रविवार को अमेरिका की 10 दिवसीय यात्रा से लौटे मुख्यमंत्री रघुबर दास ने तथ्यों की पड़ताल के लिए एक समिति गठित की है, जिसमें अपर मुख्य सचिव एन.एन. पांडे और कैबिनेट सचिव एस.एस. मीणा शामिल हैं। इसमें क्षेत्रीय आयुक्त और डीआईजी भी सहायता करेंगे।

हालांकि लोगों का मानना है कि यह जांच केवल एक दिखावा है और हत्या के दोषियों की जांच उनके विभागों के वरिष्ठ ही करेंगे।

विभिन्न हलकों से स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच कराने और मृतकों के करीबियों को 25 लाख रुपये का मुआवजा और नौकरियां देने की मांग उठ रही है।

ग्रामीणों का कहना है कि राज्य सरकार उनकी आवाज दबाने की कोशिश कर रही है और उनकी मर्जी के बिना उनकी भूमि अधिग्रहित कर रही है।

विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता योगेंद्र साव ने कहा, “राज्य सरकार एनटीपीसी परियोजना के लिए जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण करने की कोशिश कर रही है। भूमि की दर स्पष्ट नहीं है। वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को जबरदस्ती भगाया जा रहा है, ताकि वन भूमि एनटीपीसी को दी जा सके।”

विपक्षी दलों ने पुलिस गोलीबारी की न्यायिक जांच की मांग की है। वे एनटीपीसी के विरोध में एकजुट हैं। बाबूलाल मरांडी और सुबोध कांत सहाय जैसे वरिष्ठ नेताओं ने ग्रामीणों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए परियोजना स्थल का दौरा भी किया है।

2004 में 1.3 करोड़ टन उत्पादन क्षमता वाले पनकरी बारवाडीह, छत्ती बरियातू और केरेदारी कोयला ब्लॉकों की पहचान की गई थी। परियोजना के लिए 8,100 एकड़ भूमि के अधिग्रहण की जरूरत थी, जिसमें से 4,000 एकड़ रैयतों से, 2,900 एकड़ वन भूमि से और 1,200 एकड़ सरकारी जमीन से अधिग्रहित करने की योजना थी।

इससे 8,745 परिवारों के प्रभावित होने का अंदेशा था और इसके लिए आठ लाख रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा तय किया गया था।

लोगों के विरोध के कारण 2004 में भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में अड़चन आ गई।

2007 में दो बार -जनवरी और जून- फिर से विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके चलते सैकड़ों ग्रामीणों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।

विरोध प्रदर्शन बार-बार चलते रहे। जुलाई 2013 में जब लोगों ने निर्माण स्थल पर काम रोकने की कोशिश की तो पुलिस ने गोलीबारी शुरू कर दी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।

14 अगस्त, 2015 को पुलिस और ग्रामीणों के बीच फिर से झड़पें शुरू हो गईं, जब उन्होंने ढेगा बस्ती में निर्माण कार्य रोकने की कोशिश की। उस समय उत्तेजित भीड़ ने निजी और सरकारी वाहनों में आग लगा दी, पुलिस की गोलीबारी में छह ग्रामीण घायल हो गए।

उसके बाद कई दौर की बातचीत के बाद मुआवजे की रकम आठ लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दी गई।

नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री और हजारीबाग से सांसद जयंत सिन्हा ने एक संवाददाता सम्मेलन में इस संबंध में घोषणा की कि जो लोग पुनर्वास और पुनस्र्थापन (आर एंड आर) कॉलोनियों में नहीं रहना चाहते, वे मुआवजे के तौर पर नौ लाख रुपये लेकर अपनी पसंद की जगह पर घर बना सकते हैं।

सिन्हा ने हर परिवार के एक व्यक्ति को खनन कंपनियों में नौकरी देने का भी आश्वासन दिया था। लेकिन यह सब होता, उससे पहले ही शनिवार को स्थिति फिर बिगड़ गई, जब पुलिस ने बड़कागांव की विधायक निर्मला देवी की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे ग्रामीणों पर गोलीबारी शुरू कर दी।

विधायक अभी तक लापता हैं। पुलिस का कहना है कि ग्रामीण उन्हें एक पुलिस वाहन से जबरदस्ती निकाल ले गए, जबकि उनके पति योगेंद्र साव का कहना है कि वह अभी भी उनकी खोजबीन कर रहे हैं। योगेंद्र का आरोप है कि पुलिस ने उन्हें किसी अज्ञात स्थान पर रखा हुआ है।-नित्यानंद शुक्ला, आईएएनएस