रांची, 19 अक्टूबर| पार्टी के अंदर विरोध झेलने के बाद झारखंड की भाजपा नीत सरकार ने जनतातीय और मूल निवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए ब्रिटिशकाल में बनाए गए दो भूमि कानूनों में प्रस्तावित बदलाव पर अपना रुख नरम करने का संकेत दिया है। रघुवर दास के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) की सरकार ने इस साल जुलाई में छोटानागपुर काश्तकारी कानून (सीएनटी) और संथालपरगना काश्तकारी कानून (एसपीटी) में बदलाव करने के लिए एक अध्यादेश लाया था।
झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने अध्यादेश को राष्ट्रपति के पास भेज दिया और केंद्र सरकार से एक सलाह की इच्छा जाहिर की।
केंद्र सरकार ने अध्यादेश को राष्ट्रीय जनजाति आयोग के पास भेज दिया, जिसने राज्य सरकार के प्रस्ताव के खिलाफ अपना सुझाव दिया।
अध्यादेश राष्ट्रपति के पास लंबित है। यह अफवाह भी है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अध्यादेश लौटा दिया है, लेकिन इसकी अधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
अध्यादेश को हरी झंडी मिलने पर झारखंड सरकार कृषि भूमि का अधिग्रहण गैर कृषि उद्देश्यों जैसे सड़क निर्माण, उर्जा परियोजनाओं और मॉल के निर्माण के लिए कर सकती है।
भाजपा के सहयोगी अखिल झारखंड छात्र संघ(आजसू) समेत विपक्षी पार्टियों ने अध्यादेश का विरोध किया था। इतना ही नहीं, बड़ी संख्या में भाजपा के जनजातीय विधायकों ने भी इस अध्यादेश का विरोध किया था।
सूत्रों के अनुसार, प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक मंगलवार को शुरू हुई। भाजपा नेता सौदान सिंह ने इस मुद्दे पर पार्टी विधायकों की राय जानने की इच्छा जाहिर की।
भाजपा सूत्रों के अनुसार, सिंह अध्यादेश पर चरणबद्ध ढंग से विधायकों की आपत्ति जानना चाहते थे।
सिंह ने जनजातीय विधायकों से सुझाव भी मांगा कि कैसे जनजातीय लोगों के अधिकारों की रक्षा की जाए और ठीक उसी समय भूमि कानूनों में संशोधन भी किया जाए, ताकि भूमि अधिग्रहण किया जा सके।
मुख्यमंत्री भी जनजातीय विधायकों की राय को समायोजित करने पर सहमत थे।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, झारखंड सरकार विधानसभा के शीतकालीन सत्र विधेयक पेश करने के लिए एक नया मसौदा तैयार कर सकती है। –आईएएनएस
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