इम्फाल, 28 मई | मणिपुर के 323 सरकारी स्कूलों में से 73 स्कूलों में 10वीं की परीक्षा के विद्यार्थियों की सफलता का प्रतिशत शून्य पाया गया है। इस परीक्षा के परिणाम मंगलवार को जारी किए गए थे। यही नहीं, इन 73 स्कूलों का एक भी विद्यार्थी (जो कुल विद्यार्थियों का 22.6 फीसदी है) मणिपुर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (एचएसएलसी) में पास नहीं हो पाया, जिसकी परीक्षा एक मार्च से 19 मार्च तक ली गई थी।
मणिपुर के 323 सरकारी स्कूलों के कुल 6,484 विद्यार्थियों ने परीक्षा में भाग लिया था, जिनमें से केवल 2,781 विद्यार्थी ही सफल हो पाए, जो 42.8 फीसदी हैं।
एचएसएलसी 2016 में राज्य के सफल विद्यार्थियों का प्रतिशत 61.52 फीसदी है। यही नहीं, कुल 28 सरकारी स्कूलों में केवल एक-एक विद्यार्थी ही इस परीक्षा में सफल हो पाया है। यहां तक कि शीर्ष के 20 सफल विद्यार्थियों में से सरकारी स्कूल का एक भी विद्यार्थी नहीं है।
इसका सीधा अर्थ यह है कि करदाताओं के लाखों रुपये खर्च कर चलाए जा रहे सरकारी स्कूलों का प्रदर्शन निजी स्कूलों के मुकाबले कमतर रहा है।
एक उच्च पदस्थ सूत्र ने कहा, “सरकार ने सरकारी स्कूलों के खराब प्रदर्शन को काफी गंभीरता से लिया है। इसका एक ही समाधान है कि इन सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया जाए, ताकि विद्यार्थी निजी स्कूलों में पढ़ने जाएं।”
आधिकारिक रपट के मुताबिक, साल दर साल स्थिति खराब होती जा रही है। जहां 2013 में 28 सरकारी स्कूल ऐसे थे, जिनका एक भी विद्यार्थी एचएसएलसी परीक्षा में सफल नहीं हो पाया। वहीं, 2014 में ऐसे स्कूलों की संख्या बढ़कर 48 हो गई और 2015 में 70 हो गई।
इस परीक्षा परिणाम से विद्यार्थी और अभिभावक दोनों निराश हैं।
रोमेन चिंगथम ने अपने बेटे को सरकारी स्कूल में भेजा था। उन्होंने आईएएनएस से कहा कि वे इस परीक्षा में अपने बेटे के फेल होने से निराश हैं।
उन्होंने कहा, “मैंने अपने बेटे को इसलिए सरकारी स्कूल में भेजा कि मंहगे निजी स्कूल में पढ़ाने की मेरी हैसियत नहीं है।”
सरकारी अधिकारियों ने सरकारी स्कूलों के निराशाजनक प्रदर्शन पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। सरकार इस समस्या का समाधान सरकारी स्कूलों को बंद करने में देख रही है।
उदाहरण के लिए इम्फाल शहर के बीच स्थित टोमबिसाना हाईस्कूल को बंद कर दिया गया है और अब वहां एक बाजार का निर्माण कार्य चल रहा है।
बंगाली हाईस्कूल की इमारत को भी तोड़ दिया गया और वहां अब रामकृष्ण मिशन स्कूल बनाया जा रहा है।
अमीर लोग तो अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में बहुत पहले से पढ़ाना छोड़ चुके हैं। वहां अब केवल गरीब परिवारों के बच्चे ही पढ़ने के लिए जाते हैं।
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