मध्यप्रदेश की कई खूबियों में प्रदेश का शरबती गेहूं भी है। राज्य में पैदा होने वाले शरबती गेहूं की खासियत इसकी पौष्टिकता और इसका स्वाद है। यही कारण है कि शरबती गेहूं नाम से बाजार में बिकता है। अब इस गेहूं को मान्यता दिलाने के लिए प्रदेश सरकार ने भी तैयारी शुरू कर दी है।
बासमती चावल को लेकर उपजे विवादों से सबक लेते हुए राज्य सरकार भौगोलिक पंजीयक, चेन्नई में इसका पंजीयन कराएगी। इसके लिए पिछले सौ साल के रिकार्ड तलाशे जा रहे हैं ताकि यह साबित किया जा सके कि ये किस्म सिर्फ मध्यप्रदेश में ही पैदा होती है। पंजीयन होने के बाद कोई भी दूसरा राज्य शरबती के नाम पर गेहूं का कारोबार नहीं कर सकेगा।
देर से ही सही प्रदेश की इस बेहतरीन किस्म को बचाने की पहल सराहनीय है। अनुमान है सरकार अप्रैल 2016 तक भौगोलिक पंजीयक, चेन्नई के यहां किसान संगठनों के माध्यम से अपना दावा कर सकती है।
पंजीयक के समक्ष बासमती के उत्पादन क्षेत्र पंजीयन का मामला भी विचाराधीन है। प्रदेश ने दावा किया है कि राज्य के कुछ हिस्सों में बासमती धान की खेती बरसों से हो रही है लेकिन इस दावे पर पाकिस्तान के धान उत्पादक समूहों से लेकर कई संगठनों की आपत्ति है और इसे लेकर मामला कानूनी पेंच में फंसा हुआ है।
इन स्थितियों को ध्यान में रखते हुए शरबती गेहूं का पंजीयन कराना अब जरूरी भी हो गया है। शरबती गेहूं की गुणवत्ता, इसकी पौष्टिकता और बाजार में इसकी मांग को देखते हुए किसान भी गेहूं की इस किस्म को अपना रहे हैं।
किसी समय गिनती के जिलों में होने वाला शरबती गेहूं का उत्पादन अब सीहोर, विदिशा, होशंगाबाद, हरदा से बढ़कर और जिलों तक पहुंच गया है। शरबती गेहूं का पंजीयन कराना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि दूसरे राज्य भी इस किस्म की पैदाकर को अपने यहां के शरबती के नाम से बेचकर बाजार में चुनौती दे सकते हैं। इसका नुकसान प्रदेश के किसान और व्यापारियों को होगा।
दरअसल शरबती गेहूं में पाया जाने वाला प्रोटीन गेहूं की अन्य किस्मों की तुलना में अधिक होता है। यही कारण है कि यह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभप्रद है। देश और दुनिया के कई हिस्सों में इसे मध्यप्रदेश के गेहूं के नाम से जाना जाता है और हाथों हाथ इसकी बिक्री होती है।
स्वाद और गुणवत्ता के कारण मध्य प्रदेश के शरबती गेहूं की महानगरों में सबसे ज्यादा मांग है। इस किस्म के गेहूं की कीमत भी सबसे ज्यादा है। इसे मुंबई, पुणे, अहमदाबाद और हैदराबाद जैसे महानगरों के थोक और खुदरा बाजारों में गोल्डन या प्रीमियम गेहूं के नाम से जाना जाता है।
वहीं, उत्तर भारत के शहरों और दिल्ली के बाजार में इसे एमपी का गेहूं नाम से भी जाना जाता है। दूसरे किस्म के गेहूं की तुलना में इसका उत्पादन कम है लेकिन किसान को कीमत अधिक मिलती है।
कानूनी प्रावधानों के चलते सरकार इस मामले में खुद भोगौलिक पंजीयन के यहां दावा नहीं कर सकती है, इसलिए किसानों के समूहों के जरिए भौगोलिक पंजीयक, चेन्नई में दावा कराने की तैयारी की जा रही है। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए सरकार की ओर से एक विस्तृत अध्ययन भी कराया गया था जिसमें पाया गया कि प्रदेश में अब उच्च कोटि के गेहूं का अधिकतम उत्पादन किया जा रहा है।
(नवोत्थान लेखसेवा, हि.स.)
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