भोपाल, 29 जून| राज्य सरकार आनंद मंत्रालय बनाने जा रही है। सवाल उठ रहा है कि क्या यह मंत्रालय वाकई समस्याग्रस्त लोगों के जीवन को आनंदित कर पाएगा या सिर्फ प्रचार का जरिया बनकर रह जाएगा।
राज्य में गुरुवार को मंत्रिमंडल का विस्तार संभव है और इस दौरान आनंद मंत्रालय का मंत्री भी तया हो सकता है। मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बनने जा रहा है, जहां आनंद मंत्रालय होगा। इससे पहले बेनेजुएला, यूएई में आनंद मंत्रालय बन चुके हैं। वर्ष 2016 की वर्ल्ड हैप्पीनेस रपट के मुताबिक डेनमार्क सबसे प्रसन्न देश है। भूटान भी वह देश है, जो हैप्पीनेस मंत्रालय के कारण चर्चा में रहा है।
आनंद मंत्रालय को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है “प्रदेश की जनता के चेहरे मुस्कुराते रहें। जिन्दगी बोझ नहीं, वरदान लगे। इसके लिए प्रदेश में आनंद मंत्रालय का गठन किया जा रहा है। इसमें रोटी, कपड़ा, मकान, आध्यात्म, योग और ध्यान के साथ ही कला, संस्कृति और गान भी होगा।”
समाजशाास्त्री डॉ. एस. एन. चौधरी सरकार की इस पहल को एक अच्छा कदम बताते हैं। वह कहते हैं, “लेकिन इसके लिए गंभीर प्रयास की जरूरत होगी, समाज से जुड़े उन लोगों की मदद लेनी होगी, जो समाज को समझते हैं। समाज को लाफ्टर क्लब, योग, सुबह की सैर के लिए प्रेरित करना होगा, तभी यह कोशिश कामयाब होगी।”
राज्य सरकार की ओर से बजट सत्र के दौरान विधानसभा में पेश किए गए जवाबों पर ही गौर किया जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि राज्य में 396 दिनों में कुल 10,664 लोगों ने आत्महत्याएं की है। यानी हर रोज 27 लोग आत्महत्या करते हैं, वहीं छह किसानों ने हर दिन आत्महत्या की है। इसी तरह 365 दिनों में 4744 महिलाएं दुष्कर्म का शिकार बनीं। वहीं 446 दिनों में 26,997 महिलाएं गायब हुईं।
एक तरफ जहां बढ़ती हताशा में लोग मौत को गले लगा रहे हैं, वहीं महिलाएं भी सुरक्षित नहीं हैं। दूसरी ओर यूनिसेफ की 28 जून को आई ‘दुनिया में बच्चों की स्थिति 2016’ रपट बच्चों के विकास व कल्याण की स्थिति से पर्दा हटाती है।
रपट बताती है कि राज्य में जन्म से पांच वर्ष तक की आयु के प्रति हजार बच्चों में 69 की मौत हो जाती है। शिशु मृत्यु दर प्रति हजार 52 है। पांच वर्ष की आयु तक के बच्चों में से 379 बच्चे हर रोज मौत का शिकार बन रहे हैं। वहीं देश में हर रोज मरने वाले बच्चों की संख्या 3287 है।
यहां शिक्षा की स्थिति भी अच्छी नहीं है। यूनिसेफ की रपट के मुताबिक, राज्य के दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले 60.3 प्रतिशत बच्चे ही ऐसे हैं, जो अक्षर पहचानते हैं, वहीं तीसरी के 32.2 प्रतिशत बच्चे ही शब्द पढ़ पाते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर का कहना है, “अपराध रहित समाज की कल्पना तो की नहीं जा सकती, क्योंकि समाज में अच्छे, बुरे और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग भी होते हैं। मगर जीवन को आनंदमय बनाया जा सकता है। आनंद मंत्रालय को लेकर राज्य सरकार की क्या सोच है, यह स्पष्ट नहीं है, मगर सांस्कृतिक जड़ों को पुर्नजीवित करके और लोगों को हताशा में जाने से रोकने के लिए काउंसलिंग देकर जीवन को आनंदित किया जा सकता है।”आईएएनएस
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