भोपाल, 15 सितंबर | मध्य प्रदेश में 1 हजार में 70 बालिकाएं पूरी नहीं करती पांच वर्ष की उम्र! मध्य प्रदेश देश के उन राज्यों में से एक है, जो बालिका जन्म को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है, मगर यह भी उतना ही सच है कि इसी राज्य में प्रति हजार बेटियों में 70 बालिकाएं अपनी जिंदगी के पांच वर्ष की आयु भी पूरा नहीं कर पाती हैं। यह खुलासा किया है रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे ने।
किसी भी देश या राज्य के लिए मृत्यु दर काफी अहमियत रखती है, क्योंकि यह ऐसा संकेतक होता जो उस राज्य के स्वास्थ्य विभाग के लिए काफी मददगार होता है। नवजात शिशुओं की मृत्युदर, पांच वर्ष की आयु तक के बच्चों की मृत्युदर और शिशु मृत्युदर को ध्यान में रखकर ही सरकारों द्वारा जनहितकारी योजनाओं को अमली जामा पहनाया जाता है।
शिशु, नवजात और पांच साल की आयु से कम के बच्चों की मौत के मामलों ने राज्य सरकार की नींद उड़ा दी है। राज्य सरकार के प्रवक्ता डॉ. नरोत्तम मिश्रा का कहना है कि मृत्युदर को लेकर सरकार चिंतित है, इसीलिए स्वास्थ्य और महिला बाल विकास विभाग की संयुक्त समिति बनाई गई है। यह समिति स्थितियों का अध्ययन करने के साथ आगामी रणनीति बनाएगी।
सर्वे रिपोर्ट 2014 बताती है कि शिशु मृत्युदर अर्थात एक वर्ष की आयु तक के सबसे ज्यादा बच्चे मध्यप्रदेश में ही मरते है। प्रति हजार में 52 बच्चे अपना पहला जन्म दिन ही नहीं मना पाता है। इस मामले में राज्य पूरे देश में अव्वल है। इसी तरह नवजात शिशुओं की मौत के मामले में मध्यप्रदेश देश में दूसरे नंबर पर है। यहां प्रति हजार में 35 नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है। इस मामले में ओडिशा पहले नंबर पर है, जहां प्रति हजार 36 नवजात शिशुओं की मौत होती है।
वही पांच वर्ष की आयु तक के बच्चों की मौत के आंकड़े को देखें तो पता चलता है कि मध्य प्रदेश 22 राज्यों में दूसरे नंबर पर है। यहां प्रति हजार में 65 बच्चे ऐसे हैं, जो जिंदगी का पांचवां जन्म दिन ही नहीं मना पाते हैं। इस मामले में असम अव्वल है जहां प्रति हजार 66 बच्चों की मौत पांच वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही हो जाती है। जबकि देश में औसत मृत्यु 45 है।
मध्य प्रदेश में पांच वर्ष की आयु पूरा करने से पहले मरने वाले बच्चों की संख्या पर गौर करें, तो एक बात साफ हो जाती है कि इसमें बालिकाओं की संख्या ज्यादा है। प्रति हजार में 70 बालिकाएं और 60 बालक पांच वर्ष से पहले ही काल के गाल में समा जाते हैं। ग्रामीण इलाकों का हाल ज्यादा बुरा है, जहां प्रति हजार में 72 की मौत हो जाती है और इसमें लड़कियां 79 और लड़के 66 हैं।
इस मामले में शहरी स्थितियां कुछ बेहतर है, जहां प्रति हजार में सिर्फ 37 बच्चे पांच वर्ष की आयु पूरी नहीं कर पाते है। इनमें लड़के और लड़कियों की संख्या समान है।
राज्य में पांच वर्ष की आयु पूरा करने से पहले मरने वाले बच्चों में लड़कियों की संख्या ज्यादा होना चिंता का विषय है, क्योंकि यहां की राज्य सरकार बालिका जन्म को प्रोत्साहित करने के लिए लाडली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, साइकिल योजना जैसी अनेक योजनाएं चला रही है। इन योजनाओं को कई अन्य राज्यों ने भी अपनाया हैं।
सामाजिक संगठन जन स्वास्थ्य अभियान के वरिष्ठ कार्यकर्ता अमूल्य निधि का कहना है कि राज्य सरकार बालिका कल्याण की बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती है, मगर हकीकत इससे कोसों दूर है। राज्य के अधिकांश ऐसे गांव है जहां बालिकाओं को बचाने के ही इंतजाम नहीं है, मसलन स्वास्थ्य सुविधाएं अस्त-व्यस्त है, स्त्रीरोग चिकित्सक तक नहीं है। ऐसे में बेटियां मरेंगी नहीं तो क्या होगा। –संदीप पौराणिक
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