संदीप पौराणिक===
भोपाल, 12 जून । मध्य प्रदेश के राज्यसभा के चुनाव में आखिरकार कांग्रेस के विवेक तन्खा तीसरी सीट पर जीतने में कामयाब रहे हैं, तन्खा तो जीत गए मगर सवाल उठ रहा है कि आखिर हारा कौन है। भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार विनोट गोटिया या कोई और।
फोटो: कांग्रेस नेता विवेक तन्खा 30 मई, 2016 को राज्यसभा के लिए अपना नामांकन फाइल करते हुए। (आईएएनएस)
राज्य में विधायकों की संख्या के हिसाब से राज्यसभा में भाजपा के दो सदस्यों अनिल माधव दवे व एम.जे. अकबर का चुना जाना तय था, और ऐसा ही हुआ, वहीं कांग्रेस के पास एक विधायक की कमी थी, मगर बसपा का समर्थन मिलने से कांग्रेस उम्मीदवार विवेक तन्खा की जीत तय हुई।
वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर का मानना है कि भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार गोटिया की हार किसी एक की नहीं भाजपा के सभी लोगों की हार है, क्योंकि हार तो पहले से तय थी, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने कांग्रेस की सामान्य जीत को भी बड़ी जीत बना दिया है। इस चुनाव के लिए राज्य इकाई तैयार ही नहीं थी, मगर केंद्रीय नेतृत्व के आगे किसी की नहीं चली।
इस चुनाव के नतीजों से राज्य की राजनीति पर पड़ने वाले सवाल पर गिरिजा शंकर का कहना है कि राज्य की राजनीति पर असर तो चुनाव से पहले ही पड़ने लगा था, जब संगठन मंत्री अरविंद मेनन को राज्य के नेताओं की इच्छा के विपरीत हटाया गया था और निर्दलीय उम्मीदवार को चुनाव लड़ाया गया था।
राज्य की तीसरी सीट पर कब्जा करने के लिए भाजपा ने निर्दलीय के तौर पर गोटिया को मैदान में उतारा और उसके लिए केंद्रीय नेतृत्व के निर्देश पर राज्य स्तर पर सत्ता और संगठन ने हर संभव प्रयास किए, निर्दलीय से लेकर बसपा विधायकों से भी संपर्क किया गया, मगर बात नहीं बन पाई और गोटिया के हाथ हार लगी।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, “भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य इकाई और सरकार से जुड़े लोगों को साफ तौर पर निर्देश दिए थे कि कांग्रेस उम्मीदवार की किसी भी हाल में जीत नहीं होनी चाहिए, यही कारण था कि एक तरफ बसपा विधायकों से संपर्क किया गया, तो दूसरी ओर कांग्रेस की कमजोर कड़ी को तलाशने का दौर जारी रहा।
भाजपा की ओर से निर्दलीय उम्मीदवार के नामांकन भरने के बाद से ही चौंकाने वाले नतीजे आने के दावे होते रहे। भाजपा के प्रदेश कार्यालय से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक बैठकों का दौर चलता रहा, मगर बसपा के पत्ते खोलने के बाद भाजपा की कोशिशों पर तुषारापात हो गया था।
राज्यसभा की तीन में से दो सीटें जीतने के बाद भाजपा ने पार्टी दफ्तर में शनिवार की रात को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और अन्य मंत्रियों की मौजूदगी में जश्न मनाया। पार्टी के एक नेता का कहना है, “जीत का जश्न जरूर हमने मनाया मगर हम सभी उस तरह से खुश नहीं हैं, जो जीत की होती है। तीनों सीटें जीतते तो बात कुछ और होती।”
भाजपा के वरिष्ठ नेता गोविंद मालू का कहना कि तीसरी सीट भी जीतते तो अच्छा होता। भाजपा राज्यसभा में संख्या बल बढ़ाना चाहती है, ताकि देश के विकास की योजनाओं में किसी तरह की बाधा न आ सके।
राजनीति के जानकारों की माने तो राज्यसभा चुनाव में भाजपा की जिस राज्य इकाई ने दिलचस्पी ली, वहां से भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार जीत के आए हैं। मध्य प्रदेश में ऐसा करने की कोशिश ही नहीं हुई, क्योंकि राज्य इकाई और सरकार दोनों ही कांग्रेस के उम्मीदवार तन्खा के मुकाबले निर्दलीय उम्मीदवार उतारने के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि कई लोगों की तन्खा से नजदीकियां हैं। मगर केंद्रीय नेतृत्व के दवाब में निर्दलीय उम्मीदवार उतारा गया।
एक तरफ जहां राज्य के भाजपा नेता अनमने मन से निर्दलीय उम्मीदवार को जिताने का प्रयास करते रहे, वहीं कांग्रेस नेताओं दिग्जिवय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव ने जीत के लिए हर संभव प्रयास किए। इसी का नतीजा सामने है।
ज्ञात हो कि राज्य से राज्यसभा के तीन सदस्यों का निर्वाचन हुआ, प्रत्येक उम्मीदवार को जीत के लिए 58 विधायकों का समर्थन आवश्यक था। राज्य विधानसभा में कुल 230 विधायक हैं, इनमें से भाजपा के 164 विधायक (विधानसभाध्यक्ष सहित) ने मतदान में हिस्सा लिया। इस तरह दो सीटों पर भाजपा की जीत तय है और तीसरी सीट जीतने के लिए उसे आठ विधायकों के समर्थन की जरूरत रही, वहीं कांग्रेस के पास 57 विधायक है और उसे एक वोट की जरूरत थी। बसपा का साथ मिला तो तन्खा की जीत आसान हो गई। भाजपा के दवे व अकबर को 58-58 और तन्खा को 62 वोट मिले, वहीं निर्दलीय गोटिया 50 वोट ही हासिल कर सके, जिसमें 48 भाजपा और दो निर्दलीय के वोट हैं। –आईएएनएस
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