ममता चाहती हैं ‘बंगाल मॉडल’ को भुनाना

कोलकाता, 26 अगस्त | पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी उसी राह पर चलना चाह रही हैं, जिस पर नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान चले थे। मोदी ने विकास के ‘गुजरात मॉडल’ को जमकर भुनाया था। ममता भी राष्ट्रीय राजनीति में प्रभाव बढ़ाने के लिए ‘बंगाल मॉडल’ को भुनाने की फिराक में हैं।

साल 2011 और 2016 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में विपक्ष की जो दुर्दशा हुई, उसकी वजह से वह अभी तक राज्य में अव्यवस्था की स्थिति में घिरा हुआ है। जबकि, तृणमूल कांग्रेस दिल्ली में खुद को राजनीतिक जगत की एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाने की कवायद में तेजी से लगी हुई है। भाजपा, कांग्रेस और अन्नाद्रमुक के बाद तृणमूल लोकसभा की चौथी सबसे बड़ी पार्टी है। उसके 34 सांसद हैं।

राजनीतिक विश्लेषक अनिल कुमार जाना ने आईएएनएस से कहा, “जिस तरह से वह (ममता) अपनी खास सामाजिक-आर्थिक परियोजनाओं को और विकास की बातों को पेश कर रही हैं, उससे साफ है कि वह मोदी की तरह राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में बंगाल मॉडल को पेश करने की कोशिश कर रहीं हैं।”

उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय स्तर पर खुद को स्थापित करने के लिए मोदी ने गुजरात मॉडल का सहारा लिया था। ममता यही बंगाल में कर रहीं हैं। इसका एक उदाहरण उनका हाल का त्रिपुरा का अभियान है।”

कांग्रेस के विधायकों के पाला बदलने की वजह से अब तृणमूल त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी दल है।

वामपंथियों के गढ़ त्रिपुरा में अपनी पहली रैली में ममता ने बंगाल के विकास को जोरशोर से उठाया। उन्होंने कहा कि लड़ाई विकास और उपेक्षा के बीच है। उन्होंने त्रिपुरा की वाम मोर्चा सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया।

तृणमूल नेतृत्व का कहना है कि त्रिपुरा पार्टी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा का एक हिस्सा भर है।

तृणमूल के लोकसभा सांसद सुलतान अहमद ने आईएएनएस से कहा, “यह पूरी दुनिया देख रही है कि कैसे तृणमूल ने महज पांच साल में बंगाल को बदल दिया है। इसलिए लोगों ने हम पर विश्वास जताया।”

उन्होंने कहा, “अभी हमारा ध्यान त्रिपुरा पर है। लेकिन, बड़ी योजना यह है कि हम राष्ट्रीय स्तर पर रचनात्मक भूमिका निभाना चाहते हैं और एक मजबूत भाजपा विरोधी मोर्चा बनाना चाहते हैं।”

रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा, “कांग्रेस तेजी से राष्ट्रीय स्तर पर प्रासंगिकता खो रही है। विपक्षी खेमे में खालीपन देखा जा सकता है। तमाम कोशिशों के बावजूद तृणमूल खुद को भाजपा विरोधी के रूप में स्थापित नहीं कर सकी है। यह वह बात है जिसका वाम मोर्चा और कांग्रेस ने फायदा उठाने की कोशिश की है। इसलिए पार्टी अब पूरी तरह से मोदी की मुखालफत कर रही है। पार्टी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मजबूत भाजपा विरोधी की छवि अनिवार्य है।”

खुद ममता बनर्जी कहती रही हैं कि वह प्रधानमंत्री बनने का कोई ख्वाब नहीं देख रही हैं। लेकिन, उन्होंने कहा है कि वह भाजपा विरोधी मोर्चे के गठन में अपने ‘मित्रों’ की मदद करेंगी।

अपने दूसरे कार्यकाल में ममता उन मुद्दों पर निर्णायक रूप से बात कर रही हैं, जो लंबे समय से तृणमूल के लिए समस्या रही हैं और जिनकी वजह से पार्टी निशाने पर रही है। इन मुद्दों में अवैध सिंडीकेट का मुद्दा भी शामिल है।

विश्लेषक बिमल शंकर नंदा का कहना है कि अब ममता का जोर सुशासन पर है और वह अपने लोगों के खिलाफ कार्रवाई से भी नहीं हिचकिचा रही हैं।–अनुराग डे